tag:blogger.com,1999:blog-46072756563731609152024-03-14T05:21:10.230-07:00विचार-बिगुलवर्तमान समय मूल्यों के पतन का है। ऐसे समय में रचनाकारों का दायित्व बन जाता है कि वे अपने युगधर्म का निर्वाह करें। यह ब्लॉग रचनाधर्मिता को समर्पित है। मेरा मानना है-
युग बदलेगा आज युवा ही भारत देश महान का।
कालचक्र की इस यात्रा में आज समय बलिदान का।डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.comBlogger132125tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-61502024582881452202012-04-12T09:29:00.002-07:002012-04-12T09:33:23.130-07:00शिक्षा के अधिकार विषय पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला<span style="font-size:130%;">शिक्षा के अधिकार विषय पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला पूंजीपतियों को रास नहीं आ रहा। यह सच है कि आजकल शिक्षा एक दुधारू और मुनाफाबटोरू धंधा हो गया है और शिक्षा की दुकानों के मालिकान अरबों, खरबों के मालिक <span>है</span>। सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि 25 फीसदी गरीबों का आरक्षण पूंजीपतियों की मनमानी का शिकार न बन जायेगा अपितु इस पर प्रभावी अमल होना चाहिए। सरकार की संस्तुति पर ही इन कालेजों में गरीबों के दाखिले दिये जाने चाहिए और ऐसे बच्चों की सूची सार्वजनिक होनी चाहिए जिससे इस मामले में पारदर्शिता बनी रहे। इसी प्रकार निजी अस्पतालों में भी गरीबों के इलाज की बाध्यता है लेकिन चिकित्सा दुकानदारों ने उसे मजाक बना दिया है।<br /></span>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-40394740060967139372012-04-12T09:25:00.003-07:002012-04-12T09:27:42.935-07:00इन्द्रधनुष ने सम्मानित किए दो व्यक्तित्व<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPk5Bv1D6BVFAh-4QbQhTgoUMe_4EZ2I1TSTJTGpAR6Wse9SynF67zZEJMXR4LJnvEhb3yFBAYwvZ_Dv6VOVMTH80TJ1dJWuk21fyqumFCmj6WdJPwkjoKAe842CSinzcQ7DG4-UP5u0pX/s1600/cd+vimochan.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPk5Bv1D6BVFAh-4QbQhTgoUMe_4EZ2I1TSTJTGpAR6Wse9SynF67zZEJMXR4LJnvEhb3yFBAYwvZ_Dv6VOVMTH80TJ1dJWuk21fyqumFCmj6WdJPwkjoKAe842CSinzcQ7DG4-UP5u0pX/s320/cd+vimochan.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5730551509035556978" border="0" /></a><br /><div style="text-align: center;"><span style="font-size:180%;"><span>इन्द्रधनुष</span> <span>ने</span> <span>सम्मानित</span> <span>किए</span> <span>दो</span> <span>व्यक्तित्व</span></span><br /></div>आगरा। पहले विचार का प्रादुर्भाव होता है, वही बाद में कलम अथवा तूलिका के माध्यम से समाज को संदेश देता है, कालांतर में वही विचार किसी क्रांति का उद्घोष करते हैं। यह विचार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था इन्द्रधनुष के विनय नगर स्थित कार्यालय पर प्रख्यात भूगोलविद् डॉ. चन्द्रभान एवं कवि शिवसागर के सम्मान समारोह में वक्ताओं ने व्यक्त किये। समारोह की अध्यक्षता स्क्वा.लीडर एच.के. बघेल ने की। कार्यक्रम का आरंभ नरेन्द्रसिंह नीरेश की सरस्वती वंदना से हुआ।<br /> सम्मान समारोह के संयोजक डॉ. महाराज सिंह परिहार ने कहा कि इन्द्रधनुष द्वारा अभिनंदित द्वय विद्वान अपने क्षेत्रों में अग्रणी हैं, जहां डॉ. भान को भूगोल के क्षेत्र में विश्वव्यापी ख्याति मिली है वहीं दूसरी ओर अपने मधुर गीत और ब्रजभाषा के काव्य के माध्यम से शिवसागर ने आगरा का नाम हिंदी काव्य जगत में रौशन किया है। कार्यक्रम के मध्य डॉ. चन्द्रभान एवं कवि शिवसागर का पगड़ी बांधकर एवं माल्यार्पण कर अभिनंदन किया गया। इस मौके पर शिवसागर शर्मा के गीतों की सीडी का भी विमोचन हुआ।<br /> इस अवसर पर काव्य समारोह में कविता के इन्द्रधनुषी रंग बिखरे। देवास से पधारे कवि डॉ. राजकुमार रंजन ने कर्णधारों से सवाल किये-<br /> कब तक आजादी की दुल्हन, दूल्हा के घर जायेगी<br /> कब तक इन छद्म कहारों से डोली लूटी जायेगी<br />गीतकार डॉ. त्रिमोहन तरल ने प्यार की फुहारों को इस प्रकार बयां किया-<br /> छूकर तेरा बदन सुगंधित होने लगे बयार<br /> सजनिया, तू कितनी दमदार, सजनिया<br />ब्रजभाषा के कवि डॉ. बृजबिहारी बिरजू ने चिठिया मैं कैसे बांचू रे, नहीं मैं ओलम जानू तथा राजकुमार राज ने कितने बदल गये हैं गांव के माध्यम से ग्रामीण जीवन की वेदना को व्यक्त किया। डॉ. महाराज सिंह परिहार ने झूठ फरेबों की नदिया में, गोते खूब लगाता चल, ब्ंाधु आगे बढ़ता चल, सबका माल पचाता चल के माध्यम से भ्रष्टाचार पर चोट की। इस काव्य संध्या में शिवसागर शर्मा, स्क्वा.लीडर एचके बघेल, डॉ. सुषमा सिंह, डॉ. आरएस पाल, रमा वर्मा, जितेन्द्र जिद्दी, अषोक सक्सैना एवं युवा शायर अरविन्द समीर व राजकुमारी उपाध्याय ने काव्यपाठ किया। आभार ज्ञापित केपी सिंह व संचालन डॉ. महाराज सिंह परिहार ने किया। समारोह में मंजू माहेश्वरी, डॉ. आरएस पाल, डीपी सिंह एडवोकेट, जेपी सिंह, ओमप्रकाश पाल, दुर्गेश परिहार, किताब सिंह यादव आदि मौजूद थे।<br />डॉ. महाराज सिंह परिहार, संयोजक- 9411404440डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-10361510442813687962011-11-26T23:21:00.000-08:002011-11-26T23:21:56.566-08:00SECOND OPINION<a href="http://navopinion.blogspot.com/2011/05/normal-0-false-false-false_03.html?showComment=1322378456766#c3781370332787921408">www.vichar-bigul.blogspot.com</a>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-78096286407272005272011-10-05T16:45:00.000-07:002011-10-05T17:12:21.027-07:00आगरा की रामलीला में किराये का रावण<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj050H3nU1_gzLkXYt_7_XfYb-K9XJl2iS5YdiiY670osYgRxIbfNdnNoXEXwcQujEBfOBSM_L2qC-aQY7m7Mw1zcZEyyaF0zO4ALbqLiIsLJ_nNpQaWevws8Jiy9CoPRvG6N3YS1YsPAIG/s1600/05upn.63.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 219px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj050H3nU1_gzLkXYt_7_XfYb-K9XJl2iS5YdiiY670osYgRxIbfNdnNoXEXwcQujEBfOBSM_L2qC-aQY7m7Mw1zcZEyyaF0zO4ALbqLiIsLJ_nNpQaWevws8Jiy9CoPRvG6N3YS1YsPAIG/s320/05upn.63.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5660165187822940210" border="0" /></a><br /><span style="font-size:180%;"><span style="font-weight: bold;">रामलीला </span><span style="font-weight: bold;">की</span><span style="font-weight: bold;"> 147 </span><span style="font-weight: bold;">वर्ष</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">की</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">शानदार</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">परम्परा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">टूटी</span> <span style="font-weight: bold;">दशहरा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">किराये</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">का</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">रावण</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">मरेगा</span> <span style="font-weight: bold;">लोकनाट्य</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">रामलीला</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">से</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">लोकजन</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">गायब</span> <span style="font-weight: bold;">रामलीला</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कमेटी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">का</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">जातिवादी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">चेहरा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">बेनकाब</span> </span><br /><div style="text-align: justify;"><span style="font-size:130%;"><span>आगरा।</span> उत्तर भारत की प्रमुख रामलीला के लिए आज का दिन शर्मनाक होगा जब रामलीला कमेटी की विवेकशून्यता और जातिवादी मानसिकता के कारण दशहरा पर किराये का रावण मर्यादा पुरुषोत्तम राम के बाणों से धराशायी होगा। 147 साल से लगातार आगरा का कुशवाहा परिवार जो रामलीला में रावण परिवार का अभिनय करता था। वह नदारद रहेगा।<br />कभी इस शहर में रामलीला की धूम रहती थी। इसे एक लोकपर्व के रूप में नगर ही नहीं अपितु जिले के लोग मनाते थे। रामलीला के तहत राम बरात को देखने के लिए शहर में आस-पास के जिलों के <span>लोग भी</span><span></span> मेहमान के रूप में आते थे और पूरी रात राम बरात का आनंद लेते थे। लेकिन बदलते परिवेश ने रामलीला के परम्परागत स्वरूप को नष्ट</span> <span style="font-size:130%;"> कर दिया है। कभी इस लोकनाट्य में लोक की भागीदारी होती थी लेकिन वह अब समाप्त हो गई है। अब यह विशुद्ध राजनैतिक अखाड़े में तबदील हो गई है।<br />वह जमाना याद आता है कि जब आगरा के बच्चे ही रामलीला के विभिन्न पा़त्रों के रूप में अभिनय करते थे। जिस मोहल्ले के बच्चे राम, लक्ष्मण, सीता, भरत या श़त्रुघ्न बनते थे। वहां के लोगों में उत्साह का समंदर ठाठ मारता था। एक गर्व और स्वाभिमान की अनुभूति होती थी। पूरा मोहल्ला बिना किसी धर्म जाति के भेदभाव के रामलीला देखने जाता था और अपने आप-पास के बच्चों को जब वह अभिनय और मंचन करते देखता तो यकायक ही उनके मुंह से निकल जाता था ‘‘सियावर रामचंद्र की जय‘।<br />लेकिन अब नजारा बदल गया है। विगत 147 वर्षों से रामलीला में रावण दल का अभिनय करने वाले लोग मंच से नदारद हो गये हैं। पूरे शहर की रामलीला मुट्ठी भर लोगों की गिरफ़त में आ गई है। अब रामलीला में मा़त्र औपचारिकताएं ही पूरी हो रहीं हैं। उसे देखने वालो जनसैलाब गायब हो गया है। मंच के आस-पास रामलीला कमेटी से जुड़े लोग व उनके परिजन ही मंडराते दिखाई देते हैं। उसमें शहर की आम जनता की भागीदारी समाप्त हो गई है।<br />यह आगरा का दुर्भाग्य रहा कि यहां की लगभग सभी लोककलाएं व्यापारियों ने अपने कब्जे में कर लीं। यहां की जीवंत कला भगत के साथ भी यह हुआ। वह दूसरी बात है कि रंगलीला के माध्यम से इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास जारी है। यह कलाकारों की नगरी आगरा के लिए दुर्भाग्य और शर्म की बात है कि इसमें मंचन करने वाले कलाकार पेशेवर हैं और उन्हें लगभग छह लाख रुपये देकर बुलाया गया है। रावण की भूमिका अदा करने वाले वीरेन्द्र कुमार उर्फ राजू को रामलीला कमेटी की हठधर्मिता और जातिवादी मनोवृत्ति के कारण अलग होना पड़ा। इस आलेख का लेखक इस बात का साक्षी है कि विगत कई वर्षों से रावण दल का अपमान रामलीला कमेटी कर रही है। वह नजारा कितना शर्मनाक लगता था जब दिग्विजयी रावण जल संस्थान के टेंकर से अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी पीते थे और उधर किराये के कलाकारों को ससम्मान मिनरल वाटर की बोतलें उपलब्ध करायीं जाती हैं।<br />वर्तमान संदर्भ में रामलीला और जनकपुरी कमेटी के टकराव को देखते हुए लगता है कि इस लोकनाट्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वैसे एक बात की तारीफ की जानी चाहिए कि पहली बार जनकपुरी कमेटी ने रामलीला कमेटी के वर्चस्व को चुनौती दी है। रावण दल द्वारा इस रामलीला से अपने को अलग कर लेने से इसका लोकस्वरूप एवं लोकव्यापकता समाप्त हो गई है।<br />देखने से पता चलता है कि रामलीला कमेटी में जाति विशेष के तथा दल विशेष के लोगों का ही वर्चस्व है। इस कमेटी में अधिकांश लोग व्यापारी हैं और जैसी कि इस वर्ग की मानसिकता केवल मुनाफा कमाने में होती है। वहां के हर फैसले इसी तथ्य को ध्यान में रखकर किये जाते हैं। इस कमेटी में शहर की बहुसंख्यक आबादी दलित व पिछड़ों को दूर रखा जाता है। हां अपने स्वार्थों के लिए अथवा प्रशासन पर दबाव डालने के लिए प्रभावशाली दल के राजनेताओं अवश्य अध्यक्ष पद पर सुशोभित कर दिया जाता है। राम के नाम पर जनकपुरी के लिए खुलेआम बोली लगती है। जो मर्यादा पुरुषोत्तम राम मर्यादा और पिता के वचन का पालन करने के लिए वनवास गये। वहां उन्हें समाज के शोषित वर्गों का समर्थन और सहायता मिली। यह स्पष्ट है कि उन्होंने भीलनी के जूठे बेर खाये। वानर आदिवासियों ने उनकी रावण युद्ध में पूरी सहायता की। केवट ने उनकी जलयात्रा में पर्याप्त मदद की। भगवान राम के इन्हीं विशिष्ट सहयोगियों के वंशजों को रामलीला कमेटी कमतर आंकती आ रही है और इनका अपमान और उपेक्षा करने से भी पीछे नहीं रहती।<br />जब सभी क्षेत्रों में पुरानी परम्पराओं के स्थान पर मानववादी दृष्टिकोण हावी है। जब सभी लोग समान है तो फिर रामलीला कमेटी से दलित और पिछड़े गायब क्यों हैं ? आगरा के कलाकारों को इस महत्वपूर्ण लोकनाट्य में अभिनय और मंचन करने का अवसर क्यों नहीं मिलता ? रामलीला के नाम पर वर्ष भर जो चंदा होता है, क्या उसका लेखा परीक्षण हुआ ? क्या रामलीला कमेटी ने यह साहस किया कि वह अपने आय-व्यय को सार्वजनिक करे ? इन सब सवालों का जबाव यही है कि वर्चस्ववादी लोग किसी भी कीमत पर इस महत्वपूर्ण लोकनाट्य में आम जनता की भागीदारी नहीं चाहते ? इसके लिए शहर के बुद्धिजीवियों, कलाकारों, साहित्यकारों, स्वतंत्र चिंतकों और समाजसेवियों को आगे आना होगा और इस महत्वूपर्ण लोकनाट्य रामलीला के भविष्य का नये सिरे से ताना बाना बुनना होगा। बिना लोक के लोकनाट्य कैसा ?<br /><br /><br /><br /></span></div>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-56538895116990851152011-08-25T17:57:00.000-07:002011-08-25T17:57:13.067-07:00विचार-बिगुल: अन्ना की हठ और उसके दुष्परिणाम लेखक डॉ. चन्द्रभान<a href="http://vichar-bigul.blogspot.com/2011/08/blog-post_25.html?spref=bl">विचार-बिगुल: अन्ना की हठ और उसके दुष्परिणाम लेखक डॉ. चन्द्रभान</a>: अन्ना की हठ और उसके दुष्परिणाम
<br />लेखक डॉ. चन्द्रभान
<br />
<br />अन्ना का जनलोकपाल बिल, जो पाँच व्यक्तियों ने तैयार किया है, 30 अगस्त तक संसद पास हो...डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-58183043123142566942011-08-25T17:11:00.000-07:002011-08-25T17:33:36.026-07:00अन्ना की हठ और उसके दुष्परिणाम लेखक डॉ. चन्द्रभान<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhWscBPrTLuYB3y4w6zpXTORuvh4EhBJvoF52RtkhxPGBACEMoM_yh_R5VF7tDNcXnhdfv_2EgyxRQ0DVqjKnwF_bbltthsJv-lTn40aetSnFar-ukIyY5BWujoRAVwriY_PxFIaoZojGN/s1600/drchandra01.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 310px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhWscBPrTLuYB3y4w6zpXTORuvh4EhBJvoF52RtkhxPGBACEMoM_yh_R5VF7tDNcXnhdfv_2EgyxRQ0DVqjKnwF_bbltthsJv-lTn40aetSnFar-ukIyY5BWujoRAVwriY_PxFIaoZojGN/s320/drchandra01.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5644956249467316610" border="0" /></a>
<br /> <span style="font-size:130%;">अन्ना की हठ और उसके दुष्परिणाम
<br />लेखक डॉ. चन्द्रभान
<br /></span>
<br /><div style="text-align: justify;">अन्ना का जनलोकपाल बिल, जो पाँच व्यक्तियों ने तैयार किया है, 30 अगस्त तक संसद पास हो जाना चाहिए अन्यथा अन्नाजी रामलीला मैदान नही छोड़ेगे और अपना आमरण अनशन जारी रखेंगे। यह जिद सरकार के लिये बहुत बड़ी धमकी और देश के प्रजातन्त्रीय प्रणाली के लिये बड़ा खतरा।
<br />हमारे संविधान जिसके रचियता श्री अम्बेदकर सहित डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू, अच्युत पटवर्धन, हरिविष्णु कामथ, हृदयनाथ कुंजरू जैसे कई विद्वान थे, ने केवल जनता के चुने हुये सदस्यों को ही यह अधिकार दिया है कि वे संसद में जनता के मुद्दो पर चर्चा करें और कानून बनायें। जिन लोगों ने अन्ना का बिल तैयार किया है। उनमें से एक भी जनता का नुमायन्दा नहीं फिर भी वे चाहते है कि उनका बिल संसद पास करे और वह भी उनके फरमान के अनुसार 30 अगस्त तक। इसका तात्पर्य यह हुआ कि अन्नाजी जनता के द्वारा चुने गये सांसदों पर्याप्त समय देने को भी तैयार नहीं ताकि उस बिल पर गहराई से विचार विमर्श या चर्चा कर सकें। सीधे-सीधे अन्नाजी संसद को धमकी दे रहे है कि या तो मेरा बिल पास करो नहीं तो मैं खाना पीना त्यागकर आत्महत्या कर लूँगा और मेरे समर्थक देश में अराजकता का ताण्डव फैला देंगे। अन्ना जी की इस जिद्द का सीधा तात्पर्य यह है कि सिविल सोसायटी के पाँच सदस्य संसद से भी ऊपर हैं। पाँच सदस्यों की अन्ना की यह चौकड़ी देश की निर्वाचित संसद से ज्यादा शक्तिशाली है। उनकी निगाह में असली संसद बौनी और पंगु है।
<br />इस समय कुछ भ्रष्ट मंत्रियों की काली करतूतों के कारण सरकार सहमी हुई है। उसने इन्हें जेल का रास्ता दिखाकर प्रशंसनीय कार्य किया है। लोकपाल बिल सदन में पेश कर भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी कटिबद्धता का परिचय दिया है। लेकिन कॉमनवैल्थ और 2जी के घोटालों ने सरकार का मनोबल तोड़कर रख दिया है। ऐसी परिस्थितियों में सरकार अन्ना से निपटने के लिये कोई साहसिक कदम उठाने की हिम्मत नहीं कर पा रही है।
<br />विपक्ष मौके का फायदा उठाने के लिये तैयार बैठा है। जो लोग वोटों से सत्ता हासिल नहीं कर पायें, वे अब अन्ना को मुखौटा बनाकर देश की कुर्सी हथियाना चाहते है। लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम है कि दबाब में आकर अन्ना ने अपना बिल अगर पास करा लिया तो वह विरोधी पार्टियों के लिये भी उतना ही घातक सिद्ध होगा, जितना कि सत्ताधारी पार्टी के लिये। संसद कमजोर पडेगी और देश कमजोर होगा। सरकार और संसद अपना बिल पास करने की अधिकार खो बैठेगी। अन्ना स्वयं कहते है कि यह केवल एक बिल की बात नही है। अभी<span></span> बहुत से मुद्दे है जिसपर लड़ाई लड़नी है। इससे स्पष्ट है अन्ना दूसरे बिलों का मसौदा भी अपने चन्द लोगों से ही तैयार करायेंगे और संसद को ढेंगा दिखाते हुये पास भी करायेंगे। ऐसी कठपुतली और लाचार संसद देश का और समाज का कितना भला कर सकेगी। यह विचारणीय विषय है।
<br />संसद कमजोर तो देश कमजोर। बाहरी शक्तियाँ तो यह चाहती हैं कि प्रगति की ओर बढ़ते हुये इस देश को कैसे रोका जाय। ये लोग तो ऐसे अवसरों की ताक में बैठे रहते हैं। यही कारण है कि हमारी प्रगति से जलने वाले देश अपने अखबारों के माध्यम से अन्ना का समर्थन कर रहे हैं। अफसोस है कि हमारा भ्रमित युवक विदेशी शत्रुओं की चाल को समझ नही पा रहे है कि अन्ना जी की मुहिम के पीछे बहुत से ऐसे लोग है जो स्वयं भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुये हैं। कर्नाटक में भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री आज अन्ना के समर्थन में भूख हड़ताल करने जा रहे हैं। क्या ऐसे लोगों के समर्थन से भ्रष्टाचार समाप्त होगा?
<br />बात केवल भ्रष्टाचा के मुद्दे की नहीं है। बात संसद एवं संसद की गरिमा की है। संसद के संवैधानिक अधिकारों की है। आज एक अन्ना है और उसकी हठ है। कल कोई दूसरा अन्ना होगा। एक अरब 25 करोड़ की आबादी वाले देश में दूसरा अन्ना तैयार करने में कितना समय लगेगा ? पूंजीपतियों के लिये तो यह काम बहुत आसान है। बस कुछ करोड़ रुपये खर्च कीजिये बहुत से तथाकथित समाज सेवियों की सेना तैयार हो जायेगी। उनमें से कोई भी कुछ करोड़ों के लालच में आकरअनशन करने को तत्पर हो जायेगा। पड़ोसी देश में आतंकवादी संगठन इसी प्रकार से लोगों को आत्मघाती बना रहे हैं। कसाब इसका जीता-जागता उदाहरण है। उसके परिवार को कुछ करोड़ रुपये दे दिये गये थे। और कसाब मुम्बई पर हमला कर, स्वयं मौत के मुँह में जाने को तैयार हो गया।
<br />यदि कुछ अति-संपन्न लोग चाहते हैं कि कोई बिल ऐसा बने जिसमें उनके ही हितों की रक्षा हो तो वे किसी भी व्यक्ति को लालच देकर राजी कर लेंगे और जंतर-मंतर पर जाकर कुछ किराये के टट्टुओं की मदद से भूख हड़ताल पर बैठा देंगे। कुछ टीवी चैनल्स को पटा लेंगे और अपने मनमाफिक बिल पास करा लेंगे। वर्तमान परिस्थितियों में देश के समक्ष अनेक ज्वलंत विषय हैं। इनमें से बहुत से विषय ऐसे है जिनसे कुछ लोग वर्षों से दुखी हैं। उदाहरणार्थ उच्च वर्ग के अधिकांश लोग आरक्षण के बहुत खिलाफ हैं। वे चाहते हैं कि सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी और ओबीसी का आरक्षण समाप्त होना चाहिए। अन्ना प्रकरण से उनकी राह बहुत आसान हो जायेगी। बस किसी नामी गिरामी आदमी को अनशन करने के लिए इस शर्त पर राजी करलें कि वह अपना अनशन तब तक नहीं तोड़ेंगे जब तक संसद आरक्षण समाप्त करने का बिल पास न कर दे। अन्ना जी का बिल पास हो जाने पर शायद नक्सलवादी भी प्रेरणा लेंगे और अपने हजारों, लाखों युवक-युवतियों को अनशन पर बैठा देंगे और शर्त रखेंगे कि उनका अनशन तब तक जारी रहेगा जब तक लाल कॉरीडोर को एक स्वतंत्र राष्ट्र नहीं बन जायेगा। माओवादी संगठन में तो हजारों युवक-युवतियां इस मुद्दे पर बलिदान देने को भी सहर्ष तत्पर हो जायेंगे। किसी भी सरकार की यह कहने की हिम्मत नहीं होगी कि यह अनशन असंवैधानिक है।
<br />मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ<span></span> माना जाता है। जनता तक सही बात पहुंचाने की उनकी जिम्मेदारी के साथ पुनीत कर्तव्य भी है। अन्ना के आंदोलन में हमारे पत्रकार एवं टीवी चैनल्स का जोश देखते ही बनता है। इनकी रिपोर्टिंग में निष्पक्षता की कमी है। सावंत कमीशन की रिपोर्ट में अन्ना के खिलाफ लगाये सभी आरोप सिद्ध पाये गये लेकिन किसी भी समाचार पत्र ने इसे छापने का साहस नहीं किया। क्या भारत की जनता को यह जानने का अधिकार नहीं है कि अन्ना और उनके साथियों के ट्रस्ट अथवा एनजीओ के बारे में सुप्रीम कोर्ट जज की क्या राय है। अन्ना साहब के खिलाफ लगे चार्जों की छानबीन करने में जस्टिस सावन्त को तीन वर्षों का समय लगा। क्या ये चार्ज मामूली हो सकते हैं ? टी0वी0 चैनल ने देश के जाने माने व्याक्तियों से राय मांगी और जनता के सामने रखा। पत्रकारिता के इन धुरन्धरों ने यह क्यों नहीं उचित समझा कि जस्टिस सावन्त का टीवी पर साक्षात्कार लिया जाय और उनकी राय को उतना ही कवरेज दिया जाये जितना अन्ना और उसके सहयोगियों को दिया जा रहा है। क्या यह पत्रकारिता की गरिमा और मर्यादा के लिए उचित है कि एक ही पक्ष जनता के सामने परोसा जाय।
<br />इस आंदोलन के बारे में हमारे समाचार पत्रों और टी0वी0 चैनल्स <span>ही भ्रम</span> फैला रहे हैं। हर शहर का स्थानीय अखबार कह रहा है कि पूरा शहर अन्ना के साथ है। इसी प्रकार सभी अखबार और चैनल्स दावा कर रहे हैं कि पूरा देश अन्ना के साथ है। यह तो मीडिया की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को खतरे में डालकर इनके मालिकान टीआरपी अथवा अखबारों का प्रसार बढ़ा रहे हैं। अन्नाजी रिहाई पर तिहाड़ जेल के सामने केवल 4-5 हजार समर्थक मौजूद थे। मशाल मार्च में 15 हजार दर्शक तथा समर्थक थे। रामलीला मैदान में भी इतने ही लोग मौजूद हैं। जबकि दिल्ली एनसीआर की आबादी लगभग एक करोड़ से अधिक है। इस प्रकार एक करोड़ में से केवल 10-15 हजार अन्ना जी के समर्थन में सड़कों पर आये। क्या इसे जनता का सैलाब कहना उचित है। यह तो दिल्ली की कुल जनसंख्या का आधा प्रतिशत भी नहीं बैठता। एक चर्चित टीवी चैनल ने 16 नगरों में एक सर्वेक्षण किया जिसमें केवल 8 हजार व्यक्ति से अन्ना के आंदोलन सम्बंधी प्रश्न पूछे गये। प्रश्नों के आधार पर निष्कर्ष निकाल लिया गया कि देश की 70 फीसदी जनता अन्ना का समर्थन करती है। क्या 8 हजार लोगों को सम्पूर्ण देश की जनता की राय का प्रतीक माना जा सकता है ? क्या इस प्रकार के आंकड़े देश की सही तस्वीर प्रस्तुत कर रहे हैं ? वस्तुत: सैटेलाइट चैनल्स द्वारा देश की जनता को गुमराह किया जा रहा है। इस प्रकार से दुष्प्रचार से प्रजातंत्र तथा समाज दोनों को क्षति पहुंचत रही है। अत: देश के युवकों को सावधान रहना चाहिए और सही दिशा में कदम उठाना चाहिए।
<br />प्रत्येक नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझे तथा भ्रष्टाचार को मिटाने में सहयोग करे। भ्रष्टाचार एक जटिल मसला है। इसकी जड़े बहुत गहरी हैं। अनशन के दवाब में एक बिल के पास हो जाने यह मिटने वाला नहीं है। जो लोग भ्रष्टाचार के वृक्ष को वर्षों से सींच रहे हैं, वे लोग बहुत शक्तिशाली एवं शातिर हैं। अन्ना के सहारे वे अपनी पकड़ सरकार और समाज पर मजबूत करते जा रहे हैं । विचारणीय विषय है कि इस आंदोलन पर करोड़ों रुपया फूंका जा चुका है और कितने ही करोड़ रुपये और स्वाहा होने जा रहे हैं। कुछ खास कारपोरेट घराने इसमें महत्वूपर्ण योगदान दे रहे हैं। यह प्रश्न ही विचलित करता है कि केवल मुनाफे पर निगाह रखने वाला पूंजीपति इस आंदोलन पर अपना धन क्यों लुटा रहा है ? अपने चहेते लोगों के हाथों देश की सत्ता सौंपकर यह लोग भोली-भाली जनता से वसूल करेंगे जो आज भ्रष्टाचार से मुक्ति पाना चाहती है। सपने दिखाना बहुत आसान है परंतु साकार करना बहुत ही दुश्कर है7 ऐसा न हो कि हमारी संवैधानिक व्यवस्था की भी बलि चढ़ जाये और भ्रष्टाचार का भूत और अधिक भयावह हो जाये।
<br />वस्तुत: संसद पर अपना फैसला थोपना और अनशन की धमकी से बिल पारित कराना देश के संवैधानिक ढांचे को तहस-नहस कर देगा।
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<br />लेखक चिंतक व विचारक एवं आरबीएस महाविद्यालय आगरा के पूर्व भूगोलविभागाध्यक्ष हैं ।
<br />मोबाइल - 9411400657
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<br />डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-50408587665809559182011-08-13T05:07:00.000-07:002011-08-13T05:15:26.985-07:00प्रख्यात आल¨चक नामवर सिंह ने किया उषा यादव का सम्मान<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEIL2IazILulke8BfHCPUFoFuh_W6Vg_d0lOAE7IXCXrgNj-aYMqGJRt3I28tEGkCMuzdq2g9LrcXkOYw4ZcI7sJIEDQOP_Cu6pXr7mWW-CEX-dWei55wu5lxZnHtK0CjvvkHNik4rYEz3/s1600/meera+samman+samaroh.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 340px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEIL2IazILulke8BfHCPUFoFuh_W6Vg_d0lOAE7IXCXrgNj-aYMqGJRt3I28tEGkCMuzdq2g9LrcXkOYw4ZcI7sJIEDQOP_Cu6pXr7mWW-CEX-dWei55wu5lxZnHtK0CjvvkHNik4rYEz3/s400/meera+samman+samaroh.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5640312862930827266" border="0" /></a>
<br /><div style="text-align: justify;"><span style="color: rgb(255, 255, 0);font-size:130%;" >प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह ने किया उषा यादव का सम्मान</span>
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<br /><span style="font-size:130%;">आगरा। प्रख्यात साहित्यकार एवं केएम मुंशी हिंदी विद्यापीठ, डा. भीमराव अम्बेडकर विश्घ्वविद्यालय आगरा की पूर्व प्रोफेसर एवं साहित्यिक संस्था इन्द्रधनुष की अध्यक्ष डा. उषा यादव का विगत दिवस मीरा फाउंडेशन के तत्वावधान में कला संगम, उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र इलाहाबाद में आयोजित भव्य समारोह में मीरा स्मृति सम्मान 2011 प्रख्यात आलोचक डा. नामवर सिंह ने प्रदान किया। समारोह के मुख्य अतिथि प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डा. राकेशधर त्रिपाठी व विशिष्ट अतिथि केन्द्रीय हिंदी संस्थान के कुलसचिव डा. चन्द्रकांत त्रिपाठी थे। इस अवसर पर डा. नामवर सिंह ने डा. उषा यादव के साहित्यिक अवदान की </span>
<br /><span style="font-size:130%;">भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा उनके साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। समारोह में न्यायमूर्ति प्रेमशंकर गुप्ता, प्रख्यात साहित्यकार दूधनाथ सिंह, ममता कालिया, आउटलुक के संपादक नीलाभ सहित प्रदेश के वरेण्य साहित्यकार उपस्थित थे। कार्यक्रम का संयोजन डा. पृथ्वीनाथ पाण्डेय व संचालन डा. विजय अग्रवाल ने किया। डा. उषा यादव के सम्मानित होने पर पद्मश्री डा. लाल बहादुर सिंह चैहान, डा. राजकिशोर सिंह, डा. महाराज सिंह परिहार, शिवसागर, डा. सुषमा सिंह, डा. राजकुमार रंजन आदि ने हर्ष व्यक्त किया है।</span>
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<br /><span style="font-size:130%;">फोटो परिचय- इलाहाबाद के कला संगम-उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र् पर आगरा की साहित्यकार डा. उषा यादव का सम्मान करते प्रख्यात आलोचक डा. नामवर सिंह</span>
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<br /></div>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-24271158952546975092011-08-07T09:15:00.000-07:002011-08-07T09:36:52.476-07:00अन्ना मौन क्यों हैं निजी क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार पर<div style="text-align: justify;"><span style="font-size:130%;">अन्ना हजारे व उनकी कथित सिविल सोसायटी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का ऐलान किया और उनकी इस मुहिम में सक्रिय भागीदारी की तथाकथित नवधनाढ्य और प्रोफेशनल्स ने। इस दौरान सरकारी भ्रष्टाचार की तो खुलकर बातें की गई, विदेशों में जमा काले धन पर सरकार को कोसा गया लेकिन निजी क्षेत्र में अजगर की भांति फैल गये भ्रष्टाचार पर किसी ने चर्चा करना भी उचित नहीं समझा। क्या कारण है कि कल के मामूली व्यापारी आज करोड़ो और अरबों में खेल रहे हैं। शिक्षा के निजीकरण के नाम पर भ्रष्टाचाररूपी अवैध कमाई को मुनाफे का नाम दिया जा रहा है। इसी तरह चिकित्सा को व्यापारियों के हाथों सौंपने से आम आदमी बिना इलाज के मर रहा है। सरकारी अस्पताल में तो मरीज को केवल बाहर से दवा लाने पर विवश किया जाता है लेकिन निजी अस्पताल तो मरीजों का घर और खेत सहित जेबर भी बिकवा रहे हैं। किसान का आलू जब खेत में होता है तो दो रुपये किलो बिकता है लेकिन जब वह धन्ना सेठ के गोदामों में पहुंच जाता है तो वह 15-20 रुपये किलो क्यों हो जाता है ? </span><br /><span style="font-size:130%;">किसानों से कौडि़यों के भाव जमीन खरीदकर कौन कुबेरपति बन जाता है ? अन्ना हजारे टीम के प्रिय वकील क्या गरीब, शोषित और ईमानदार लोगों का मुकदमा ल़ड़कर सम्पन्नतम हुए हैं। इस आंदोलन के दौरान आरक्षण हटाओ-भ्रष्टाचार मिटाओ का नारा भी दिया गया लेकिन सवाल यह है कि निजी क्षेत्र में तो आरक्षण नहीं है फिर वहां भ्रष्टाचार का नंगा नाच क्यों हो रहा है ? अन्ना की इस सिविल सोसायटी में कोई गरीब, मजदूर, किसान, दलित, पिछड़ा या अल्पसंख्यक क्यों नहीं है ? चंद सफेद कॉलर वाले व पूर्व नौकरशाह इस देश के अघोषित नियंता नहीं बन सकते। निजी क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार पर अन्ना हजारे और बाबा रामदेव क्यौं चुप हैं ? क्या निजी क्षेत्र जनलोकपाल के दायरे में नहीं आना चाहिए ? </span><br /><span style="font-size:130%;">वस्तुतः निजी क्षेत्र को भी सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत लाना चाहिए, तभी देश से भ्रष्टाचार की खात्मे की शुरूआत होगी। इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि भ्रष्टाचार की ज़डे काफी गहरी हैं। केवल लोकपाल विधेयक पास होने से देश में भ्रष्टाचार समाप्त होने की बात सोचने वाले लोग कल्पनालोक में विचरण कर रहे हैं। जब कोई बुराई कार्यालय और दुकान अथवा कार्यस्थल तक सीमित हो तो उसे रोका जा सकता है लेकिन अब भ्रष्टाचार ने घरों में प्रवेश कर लिया है। किसी भी माता-पिता ने अपनी संतान से इस कारण रिश्ता नहीं तोड़ा कि उसका पुत्र अथवा पुत्री भ्रष्ट है और रिश्वत अथवा कालाबाजारी में लिप्त हैं। किसी पत्नी ने इस बात पर अपने पति को तलाक नहीं दिया है कि उसका पति भ्रष्ट तरीके से पैसे बना रहा है। घर में घुसे भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए न कानून काम आयेगा और न ही अन्ना हजारे का अनशन। </span><br /><span style="font-size:130%;">जरूरत इस बात की है भ्रष्टाचार के खिलाफ जनांदोलन शुरू हो। इसकी शुरूआत हमें अपने घर, गली, मोहल्ले व शहर से करनी होगी। अपने मित्रों और रिश्तेदारों से करनी होगी। मेरा अभिमत है कि भ्रष्टाचार को केवल सरकारी प्रयासों से समाप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि लोकतांत्रिक पद्धति में चुनाव होते हैं और चुनाव बेहद खर्चीले होते है। अतः केवल राजनेताओं और सरकारी मशीनतरी से भ्रष्टाचार समाप्ति की उम्मीद करना पर्याप्त नहीं है। वैध स्त्रोतों से अधिक अर्जित संपत्ति को अगर जब्त किया जाये। भ्रष्ट और कालाबाजारियों के साथ उनके परिजनों को भी आरोपी माना जाना चाहिए क्योंकि आदमी अपनी पत्नी, बच्चों और परिवार के लिए ही भ्रष्ट तरीके से कमाई करता है। जब उसका परिवार हराम की कमाई से गुलछर्रे उड़ा सकता है तो इस अपराध से उसे वंचित क्यों किया जाना चाहिए। अगर ऐसा होता है कि हर पत्नी और बच्चों की निगाह अपने बाप पर होगी कि उनकी गलत कमाई से उन्हें भी जेल की हवा खाना पड़ सकती है। इस तरह का कानून बनना चाहिए कि जिसके अंतर्गतं हर व्यक्ति के आय-व्यय का हिसाब रखा जाये तो सहज ही भ्रष्टाचार दिखाई देने लगेगा। वैसे भ्रष्टाचार का मतलब केवल सरकारी रिश्वत नहीं है। अपितु जनता का दोहन करने वाली हर इकाई दोषी है। भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अन्ना के अनशन से काम नहीं चलेगा और न ही पूंजीवादी मीडिया के अर्नगल प्रलाप से। हमें समाज के हर क्षे़त्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना होगा। वह क्षे़त्र चाहे मीडिया का हो, एनजीओ का हो अथवा व्यापार का। अन्ना हजारे का यह जान लेना चाहिए कि जो संपन्न और सक्रिय वर्ग उनके साथ है, वह दिल से कभी नहीं चाहेगा कि भ्रष्टाचार समाप्त हो। जिस भ्रष्टाचार की बुनियाद पर वह शीर्ष पर हैं। सत्ता और धन के शिखर पर बैठे व्यक्ति कभी नहीं <span>चाहेंगे</span> कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आर-पार की ल़ड़ाई हो।</span><br /><br /><br /><br /><br /></div>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-84956603328311457632011-08-07T09:11:00.000-07:002011-08-07T09:13:26.253-07:00सावन का मस्त गीतसावन का मस्त महीना, रिमझिम पड़ती फुहार मन को तरंगित और आल्हादित कर देता है! लेकिन यह बेदर्दी बरसात नायिका की विरह को नहीं समझ पाती! आइए पढि़ये मेरा सावन गीत-<br /><br />धीरे धीरे बरसियों बदरवा रे।<br />भीगे भीगे रे मोरों अचरवा रे।।<br /><br />संग सखिन बागन में जाऊं<br />तौऊ मन में मै अकुलाऊं<br />फूल गुलाब देखि इतरावै<br />संग भंवरन वो रास रचावै<br /><br />मेरे प्यासे से रहि गये अधरवा रे<br />धीरे धीरे बरसियों बदरवा रे।<br /><br />रैन दिना मोहे चैन न आवै<br />जियरा मेरौ पिउ पिउ गावै<br />छोटौ दिवरा ऊ इठलावै<br />रंग रास मोहे कछु न भावै<br /><br />मेरौ धक धक करत करेजवा रे<br />धीरे धीरे बरसियो बदरवा रे<br /><br />चूनर धानी पहिरै माटी<br />करी रतियां जांय न काटी<br />बैरिन कोयलिया बौरावै<br />और पानी में अगन लगावै<br /><br />आज बेदर्दी है गयौ जमनवा रे<br />धीरे धीरे बरसियो बदरवा रे<br /><br />ननद जिठानी बोली मारै<br />पिया तेरौ कहूं नैन लड़ावै<br />मोहे यापै सांच न आवै<br />प्यारे बलमा चौ तडफावै<br /><br />मेरौ काबू में नाहें जोवना रे<br />धीरे धीरे बरसियो बदरवा रेडा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-66336719899220326912011-06-05T02:37:00.000-07:002011-06-05T02:41:18.322-07:00जनसंदेश टाइम्स में महाराज सिंह परिहार के दो गीत<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhyTcFlNflqFLg4qRQxWgoac2vKI14kDyn-cIMpeEkfyc6gLGX3_YUERb1SmEISIkd9X43yUplvLC6HZ1K3VcSZCJRcoM5X9k_JD43zmzFgLhwuSgPEsV9rd8L0KuJFUdW4gwGguxRoj_xm/s1600/parihar+ke+do+geet.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 140px; height: 400px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhyTcFlNflqFLg4qRQxWgoac2vKI14kDyn-cIMpeEkfyc6gLGX3_YUERb1SmEISIkd9X43yUplvLC6HZ1K3VcSZCJRcoM5X9k_JD43zmzFgLhwuSgPEsV9rd8L0KuJFUdW4gwGguxRoj_xm/s400/parihar+ke+do+geet.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5614668162122828466" border="0" /></a>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-75738037325009131342011-05-31T05:14:00.000-07:002011-05-31T05:26:27.996-07:00काहे री नलिनी उपन्यास पर उषा यादव को मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी पुरस्कार<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilcIM9SO5IQwLFJSEjeLmRz6yOU3LpFuweM4e_WiGfFsUmUgP-xTQMlAMKopC252sDL2E51f5HsitdO5yMKps0urs3-PTT2CLuS_lj8stYREd2PuCLxqmdkUxe4HeQ8FImBHCqRLKHCP77/s1600/usha+yadav+puraskar.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 290px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilcIM9SO5IQwLFJSEjeLmRz6yOU3LpFuweM4e_WiGfFsUmUgP-xTQMlAMKopC252sDL2E51f5HsitdO5yMKps0urs3-PTT2CLuS_lj8stYREd2PuCLxqmdkUxe4HeQ8FImBHCqRLKHCP77/s400/usha+yadav+puraskar.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5612855050795953282" border="0" /></a><br /><span style="font-size:130%;"><span>काहे</span> <span>री</span> <span>नलिनी</span> <span>उपन्यास</span> <span>पर</span> <span>उषा</span> <span>यादव</span> <span>को</span><br /><span>मध्य</span> <span>प्रदेश</span> <span>साहित्य</span> <span>अकादमी</span> <span>पुरस्कार</span><br /></span><br /><div style="text-align: justify;"><span style="font-size:130%;"><span>आगरा।</span> <span>बहुमुखी</span> <span>लेखन</span> <span>की</span> <span>अप्रितम</span> <span>साहित्यकार</span> <span>डॉ</span>. <span>उषा</span> <span>यादव</span> <span>को</span> <span>मध्य</span> <span>प्रदेश</span> <span>साहित्य</span> <span>अकादमी</span> <span>ने</span> <span>उनके</span> <span>उपन्यास</span> <span>काहे</span> <span>री</span> <span>नलिनी</span> <span>को</span> <span>अखिल</span> भारतीय <span>वीरसिंह</span> <span>देव</span> <span>पुरस्कार</span> <span>देने</span> <span>का</span> <span>फैसला</span> <span>लिया</span> <span>है।</span> <span>साहित्य</span> <span>अकादमी</span> <span>के</span> <span>इस</span> <span>निर्णय</span> <span>से</span> <span>शहर</span> <span>के</span> <span>साहित्यकर्मियों</span> <span>में</span> <span>उत्साह</span> <span>और</span> <span>हर्ष</span> <span>की</span> <span>लहर</span> <span>दौड़</span> <span>गई।</span> <span>केन्द्रीय</span> <span>हिंदी</span> <span>संस्थान</span> <span>आगरा</span> <span>एवं</span> <span>डॉ</span>. भीमराव अम्बेडकर <span>विश्वविद्यालय</span> <span>के</span> <span>संस्थान</span> <span>कन्हैयालाल</span>, <span>माणिकलाल</span> <span>मुंशी</span> <span>हिंदी</span> <span>एवं</span> भाषा <span>विज्ञान</span> <span>विद्यापीठ</span> <span>के</span> <span>पूर्व</span> प्रोफेसर <span>डॉ</span>. <span>यादव</span> <span>को</span> <span>उत्तर</span> <span>प्रदेश</span> <span>हिंदी</span> <span>संस्थान</span> <span>लखनऊ</span> <span>से</span> <span>बाल</span> <span>साहित्य</span> <span>का</span> <span>सर्वोच्च</span> <span>सम्मान</span> <span>बालसाहित्य</span> भारती <span>तथा</span> <span>विश्वविद्यालय</span> <span>स्तरीय</span> <span>सम्मान</span> <span>प्राप्त</span> <span>हो</span> <span>चुका</span> <span>है।</span> <span>सूचना</span> <span>व</span> <span>प्रसारण</span> <span>मंत्रालय</span>, भारत <span>सरकार</span> <span>द्वारा</span> <span>उन्हें</span> भारतेन्द्रु <span>हरिश्चंद्र</span> <span>पुरस्कार</span> <span>मिला</span> <span>है।</span> <span>उनका</span> <span>बाल</span> <span>उपन्यास</span> <span>पारस</span> <span>पत्थर</span> <span>चिल्ड्रन</span> <span>बुक</span> <span>ट्रस्ट</span> <span>से</span> <span>पुरस्कृत</span> <span>हुआ</span> <span>है।</span><br /><span>देश</span> <span>के</span> <span>वरिष्ठ</span> <span>बाल-साहित्यकार</span> <span>कानपुर</span> <span>निवासी</span> <span>चन्द्रपाल</span> <span>सिंह</span> <span>यादव</span> <span>मयंक</span> <span>की</span> <span>सुपुत्री</span> <span>एवं</span> <span>केआर</span> <span>महाविद्यालय</span> <span>मथुरा</span> <span>के</span> <span>पूर्व</span> <span>प्राचार्य</span> <span>तथा</span> <span>उत्तर</span> <span>प्रदेश</span> <span>उच्च</span> <span>शिक्षा</span> <span>आयोग</span> <span>के</span> <span>सदस्य</span> <span>डॉ</span>. <span>राजकिशोर</span> <span>सिंह</span> <span>की</span> <span>धर्मपत्नी</span> <span>डॉ</span>. <span>उषा</span> <span>यादव</span> <span>टुकड़े</span> <span>टुकड़े</span> <span>सुख</span>, <span>सपनों</span> <span>का</span> <span>इन्द्रधनुष</span>, <span>जाने</span> <span>कितने</span> <span>कैक्टस</span>, <span>चुनी</span> <span>हुई</span> <span>कहानियां</span>, <span>सुनो</span> <span>जयंती</span>, <span>चांदी</span> <span>की</span> <span>हंसली</span> <span>आदि</span> <span>कहानी</span> <span>संग्रह</span> <span>तथा</span> <span>प्रकाश</span> <span>की</span> <span>ओर</span>, <span>एक</span> <span>ओर</span> <span>अहल्या</span>, <span>धूप</span> <span>का</span> <span>टुकड़ा</span>, <span>आंखों</span> <span>का</span> <span>आकाश</span>, <span>कितने</span> <span>नीलकंठ</span>, <span>कथान्तर</span>, <span>अमावस</span> <span>की</span> <span>रात</span>, <span>काहे</span> <span>री</span> <span>नलिनी</span> <span>आदि</span> <span>उपन्यास</span> <span>एवं</span> <span>सपने</span> <span>सच</span> <span>हुए</span>, <span>हिंदी</span> <span>साहित्य</span> <span>के</span> <span>इतिहास</span> <span>की</span> <span>कहानी</span>, <span>राजा</span> <span>मुन्ना</span>, <span>अनोखा</span> <span>उपहार</span>, <span>कांटा</span> <span>निकल</span> <span>गया</span>, <span>लाख</span> <span>टके</span> <span>की</span> <span>बात</span>, <span>जन्म</span> <span>दिन</span> <span>का</span> <span>उपहार</span>, <span>दूसरी</span> <span>तस्वीर</span>, <span>दोस्ती</span> <span>का</span> <span>हाथ</span>, <span>मेवे</span> <span>की</span> <span>खीर</span>, <span>खुशबू</span> <span>का</span> <span>रहस्य</span>, <span>पारस</span> <span>पत्थर</span>, <span>नन्हा</span> <span>दधीचि</span>, <span>लाखों</span> <span>में</span> <span>एक</span>, <span>राधा</span> <span>का</span> <span>सपना</span>, भारी <span>बस्ता</span>, <span>तस्वीर</span> <span>के</span> <span>रंग</span> <span>व</span> <span>सांगर</span> <span>मंथन</span> <span>आदि</span> <span>बाल</span> <span>साहित्य</span> <span>की</span> <span>पुस्तकें</span> <span>देश</span> <span>के</span> <span>लब्ध</span> <span>प्रतिष्ठित</span> <span>प्रकाशनों</span> <span>से</span> <span>प्रकाशित</span> <span>हुई</span> <span>हैं।</span><br /><span>आपकी</span> <span>तर्पण</span> <span>कहानी</span> <span>का</span> <span>अंग्रेजी</span>, <span>सपनों</span> <span>का</span> <span>इन्द्रधनुष</span> <span>का</span> <span>उड़िया</span>, <span>मरीचिका</span> <span>कहानी</span> <span>का</span> <span>तेलगू</span>, <span>सुनो</span> <span>कहानी</span> <span>नानक</span> <span>बानी</span> <span>का</span> <span>पंजाबी</span> भाषा <span>में</span> <span>अनुवाद</span> <span>हुआ</span> <span>है।</span> <span>राजस्थान</span> <span>शिक्षा</span> <span>परिषद</span> <span>की</span> <span>कक्षा</span> 6 <span>की</span> <span>पाठ्य</span> <span>पुस्तक</span> <span>में</span> <span>उनकी</span> <span>कहानी</span> <span>दीप</span> <span>से</span> <span>दीप</span> <span>जले</span>, <span>महाराष्ट्र</span> <span>हायर</span> <span>सैकेंड्री</span> <span>बोर्ड</span> <span>की</span> <span>नवीं</span> <span>कक्षा</span> 9 <span>के</span> <span>पाठ्यक्रम</span> <span>में</span> <span>ऊंचे</span> <span>लोग</span> <span>कहानी</span> <span>संकलित</span> <span>है।</span><br /><span>डॉ</span>. <span>उषा</span> <span>यादव</span> <span>साहित्यिक</span> <span>एवं</span> <span>सांस्कृतिक</span> <span>संस्था</span> <span>इन्द्रधनुष</span> <span>की</span> <span>अध्यक्ष</span> <span>एवं</span> <span>प्राच्य</span> <span>शोध</span> <span>संस्थान</span> <span>की</span> <span>सचिव</span> भी <span>हैं।</span> <span>शहर</span> <span>की</span> <span>इस</span> <span>बहुआयामी</span> <span>लेखन</span> <span>की</span> <span>धनी</span> <span>लेखिका</span> <span>को</span> <span>मध्यप्रदेश</span> <span>साहित्य</span> <span>अकादमी</span> <span>पुरस्कार</span> <span>मिलने</span> <span>पर</span> <span>पदमश्री</span> <span>डा</span>. <span>लालबहादुर</span> <span>सिंह</span> <span>चौहान</span>, <span>चौ</span>. <span>सुखराम</span> <span>सिंह</span>, <span>डा</span>. <span>त्रिमोहन</span> <span>शाक्य</span> <span>तरल</span>, <span>डॉ</span>. <span>सुषमा</span> <span>सिंह</span>, <span>शिव</span> <span>सागर</span>, <span>डॉ</span>. <span>राजकुमार</span> <span>रंजन</span>, <span>डॉ</span>. <span>चन्द्रशेखर</span> <span>राठौड</span>, <span>कैलाश</span> <span>चौहान</span> <span>मायावी</span>, <span>डॉ</span>. <span>महाराज</span> <span>सिंह</span> <span>परिहार</span>, <span>डॉ</span>. <span>शशि</span> <span>तिवारी</span>, <span>जितेन्द्र</span> <span>रघुवंशी</span> <span>आदि</span> <span>ने</span> <span>हर्ष</span> <span>व्यक्त</span> <span>किया</span> <span>है।</span><br /></span></div>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-32444774105773672522011-05-29T17:16:00.000-07:002011-05-29T17:48:22.196-07:00<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgTf_N6QM5JBNTVxVfT7xDy_QuCl-iwX4f4KOJGA5CbsvE1yYf2yEessQjl7DytH7m3yjyhnGPjZuUj8spTdyE8K2BVBc-eFRME409YfNfx6sZd6OWIxXcPQmyMmNOxvzsSZYXSc5zu66Om/s1600/som+thakur+photo.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 276px; height: 183px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgTf_N6QM5JBNTVxVfT7xDy_QuCl-iwX4f4KOJGA5CbsvE1yYf2yEessQjl7DytH7m3yjyhnGPjZuUj8spTdyE8K2BVBc-eFRME409YfNfx6sZd6OWIxXcPQmyMmNOxvzsSZYXSc5zu66Om/s400/som+thakur+photo.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5612303936099557186" border="0" /></a><br /><div style="text-align: justify;"> <span style="font-size:130%;">मंचों पर सुंदरता और गलेबाजी का बोलवाला - सोम ठाकुर<br />हिंदी मंच का एक ऐसा नाम जो 1953 से आजतक अपनी कविता की सुगंध बिखेर रहा है। छह दशक के बाद भी उनके गीतों में आज भी वही ताजगी और रवानगी बरकरार है। नीरज जी के बाद वही कवि सम्मेलन में मंचों के शहंशाह हैं। आज भले ही हास्य कलाकारों ने हिंदी मंच का अवमूल्यन किया हो लेकिन सोम ठाकुर ने अपनी रचनाओं में हिंदी की अस्मिता और जीवन के शाश्वत मूल्यों को आत्मसात किया है। उनकी रचनाधर्मिता के संदर्भ में जनसंदेश टाइम्स की ओर से डॉ. महाराज सिंह परिहार इस प्रख्यात गीतकार से रूबरू हुए।<br /><br /><span style="font-weight: bold;">आप</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कई</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">दशकों</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">से</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हिंदी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">मंच</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हैं।</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">क्या</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">परिवर्तन</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">देखते</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हैं</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">आप</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पहले</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">की</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">अपेक्षा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">अब</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">के</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हिंदी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">मंच</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पर</span><span style="font-weight: bold;"> ? </span><span style="font-weight: bold;">क्या</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कारण</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">रहा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">आपका</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">काव्य</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">मंचों</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">से</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">जुड़ने</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;"><span>का।<br /><br /></span></span>पहले से आमूलचूल परिवर्तन आया है कवि सम्मेलनी मंच पर। पहले कविता पढ़ी जाती थी तो कवि को नाम मात्र का पारिश्रमिक मिलता था लेकिन आज मंचों पर भरपूर पैसा है। मेरा मंचों पर आने का प्रमुख कारण आर्थिक रहा। मेरे चार पुत्रियां और दो पुत्र थे जिनका अच्छा पालन-पोषण कालेज की प्राध्यापकी नौकरी में संभव नहीं था। उन दिनों डिग्री कालेज की नौकरी से अधिक पारिश्रमिक कवि सम्मेलनों में मिलता था। इसीलिए मैंने पहले आगरा कालेज, फिर सेंट जौंस कालेज तत्पश्चात नेशनल पोस्ट डिग्री कालेज भोगांव में <span>हिंदी </span>विभागाध्यक्ष की नौकरी छोड़कर काव्य पाठ को अपने <span>जीवन-यापन</span> का माध्यम बनाया।<br /><br /><span style="font-weight: bold;">आपको</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कोई</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">अफसोस</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">है</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कि</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">आपने</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">प्रोफेसरी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">के</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">स्थान</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">काव्य</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पाठ</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">को</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">ही</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">अपना</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कैरियर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">बनाया</span><span style="font-weight: bold;">?</span><br /><br />नहीं, मुझे कोई अफसोस नहीं अपितु गर्व है कि मैंने कविता को ही अपना कैरियर बनाया। देश में अब तक लाखों डिग्री कालेजों के शिक्षक हैं लेकिन क्या किसी को सोम ठाकुर जैसी अपार लोकप्रियता मिली है। इसी कविता ने मुझे राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाई। महामहिम राष्ट्रपति और महामहिम राज्यपाल से सम्मानित कराया। देश-विदेशों का भ्रमण कराया। मैं प्रोफेसर सोम ठाकुर की अपेक्षा कवि सोम ठाकुर के रूप में गर्व और आनंद का अनुभव करता हूं।<br /><br /><span style="font-weight: bold;">कवि</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">सम्मेलनों</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">में</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कैसी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">रचनाएं</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पसंद</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">की</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">जाती</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हैं।</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">क्या</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">अच्छा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">रचनाकार</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">मंचों</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">वाह</span><span style="font-weight: bold;">-</span><span style="font-weight: bold;">वाही</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">बटोर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">सकता</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">है</span><span style="font-weight: bold;">?</span><br /><br />वास्तविकता यह है कि मंचों पर ब्रांड नेम ही चलते हैं, अच्छी रचनाएं नहीं। मंचों पर मशहूर ब्रांड नेम के कवियों को ही बुलाया जाता है और उन्हें ही भरपूर पारिश्रमिक दिया जाता है। बड़ा मुश्किल है किसी नवोदित रचनाकार का मंचों पर जम जाना। यहां भी स्थिति लेखक, पत्रकारों जैसी है। खुशवंत सिंह, कुलदीप नैयर कुछ भी लिखें, हर अखबार छापता है लेकिन नवोदित प्रतिभावान लेखकों को वह सम्मान नहीं मिलता।<br /><br /><span style="font-weight: bold;">क्या</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कारण</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">है</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कि</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हिंदी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">मंचों</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">से</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">साहित्यकार</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">विदा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हो</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">गये</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हैं</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">और</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">उनके</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">स्थान</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">केवल</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">मंचीय</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कवियों</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">ने</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">ले</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">लिया</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">है</span><span style="font-weight: bold;"> ?</span><br /><br />हां, यह सच्चाई है। पहले रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंशराय बच्चन, पंत, निराला और मैथिलीशरण गुप्त जैसे साहित्यकार मंचों पर काव्यपाठ करते थे लेकिन अब वह स्थिति नहीं है। अब मंचों पर भोंडा हास्य व द्विअर्थी तथाकथित कविताओं का बोलवाला होता जा रहा है। कविता साहित्य से हटकर विशुद्ध मनोरंजन में बदलती जा रही है।<br /><br /><span style="font-weight: bold;">हिंदी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">मंच</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">की</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">गिरावट</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">के</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">लिए</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कौन</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">जिम्मेदार</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">है।</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">आखिर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;"><br />इस</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">गिरावट</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">से</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कैसे</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">निपटा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">जा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">सकता</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">है।</span><br /><br />निश्चित रूप से मंच की गिरावट के लिए संयोजक जिम्मेदार हैं। वहीं विशुद्ध मनोरंजन करने वाले कवियों को बुलाते हैं। लेकिन इसके लिए संयोजकों की भी मजबूरी है। कवि सम्मेलन के लिए अधिकांश ऐसे पूंजीपति पैसा देते हैं जिनका साहित्य से कोई सरोकार नहीं होता और न ही समझ। उन्हें खुश करने और उनका मनोरंजन के लिए ही संयोजक को समझौता करना पड़ा है।<br /><br /><span style="font-weight: bold;">मंचों</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">अधिकांश</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">आकर्षक</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">और</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">सुंदर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">चेहरे</span><span style="font-weight: bold;">-</span><span style="font-weight: bold;">मोहरे</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">वाली</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कवयित्रियों</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">का</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">ही</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">बोल</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">वाला</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">रहा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">है।</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">वरिष्ठ कवियों</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">की</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;"></span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">अपेक्षा अनुभवी कवयित्रियां</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">दिखाई</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">नहीं</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पड़तीं</span><span style="font-weight: bold;">?</span><br /><br />महिलाओं का काव्य पाठ करना एक तरह से विजुअल आर्ट है। हर दर्शक आकर्षक और जवान महिला को देखना चाहता है। वैसे भी मंचों पर अधिकांश महिलाएं अपकी आकर्पक देहाष्ठि व गलेवाजी के कारण हैं। उनमें लेखन की प्रतिभा: नगण्य होती है। अधिकांश नामचीन कवि ही ऐसी काव्य गायिकाओं को प्रमोट करते हैं।<br /><br /><span style="font-weight: bold;">क्या</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कवि</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">के</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">लिए</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">वैचारिक</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">प्रतिवद्धता</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">आवश्यक</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">है</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">अथवा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">मात्र</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">लेखन</span><span style="font-weight: bold;"> ?</span><br /><br />बिना वैचारिक प्रतिवद्धता के लेखन निठल्ला<br />चिंतन में बदल जाता है। लेखन के माध्यम से ही एक रचनाकार एक नये संसार का सृजन करता है और उसे अपने शब्दों के माध्यम से परवान चढ़ाने का निरंतर प्रयास करता है। जहां तक मेरा लेखन है, वह समाजवाद की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है।<br /><br />जनसंदेश टाइम्स के पाठकों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे ?<br /><br />प्रदेश में तेजी से उभरता जनसंदेश टाइम्स निश्चित रूप से हाशिये पर पहुंचा दिये गये साहित्य और संस्कृति को प्रमुखता प्रदान कर रहा है, यह वर्तमान दौर में मीडिया के गिरावट के दौर में अच्छी शुरूआत है। यह पत्र साहित्य और जीवन के शाश्वत मूल्यों को प्रोत्साहित करे तथा नागरिकों को सुसंस्कृत करने का प्रयास जारी रखे। आज के भैतिकवादी युग में जब मूल्यों का स्थान स्वार्थपरता ने ले लिया है, ऐसे विषम समय में समाज का सही मार्गदर्शन करना ही किसी अखबार के लिए बडी चुनौती होता है।<br /><br /><span style="font-weight: bold;">सोम ठाकुर का <span>पता<br /></span> </span><span style="font-weight: bold;">अहीर पाडा, राजा की मंडी आगरा </span> <span style="font-weight: bold;">मोबा. 9412255604</span><br /></span></div>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-89445017084556690012011-05-05T05:48:00.000-07:002011-05-05T06:09:32.564-07:00निजी क्षेत्र में भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा - चुप क्यों हैं हजारे और रामदेव<div style="text-align: justify;"><span style="font-size:130%;"><span>निजी</span> <span>क्षेत्र</span> <span>में</span> <span>भ्रष्</span><span>टाचार</span> <span>की</span> <span>पराकाष्</span><span>ठा</span> - <span>चुप</span> <span>क्</span><span>यों</span> <span>हैं</span> <span>हजारे</span> <span>और</span> <span>रामदेव</span><br /></span><br /><span style="font-size:130%;">अभी दिल्ली में जंतर मंतर पर अन्ना हजारे व उनके कथित सिविल सोसायटी के लोगों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का ऐलान किया और उनकी इस मुहिम में भागीदारी की तथाकथित नवधनाढय और प्रोफेशनल्स ने। इस दौरान सरकारी भ्रष्टाचार की तो खुलकर बातें की गईं, विदेशों में काले धन पर सरकार को कोसा गया लेकिन निजी क्षेत्र में अजगर की भांति फैल गये भ्रष्टाचार की किसी ने चर्चा करना भी उचित नहीं समझा। क्या कारण है कि कल के मामूली व्यापारी आज करोडो और अरबों में खेल रहे हैं। शिक्षा के निजीकरण के नाम पर भ्रष्टाचाररूपी अवैध कमाई को मुनाफे का नाम दिया जा रहा है। इसी तरह चिकित्सा को व्यापारियों के हाथों सौंपने से आम आदमी बिना इलाज के मर रहा है। सरकारी अस्पताल में तो मरीज को केवल बाहर से दवा लाने पर विवश किया जाता है लेकिन निजी अस्पताल तो मरीजों के घर और खेत बिकवा रहे हैं। किसान का आलू जब खेत में होता है तो दो रुपये किलो बिकता है लेकिन जब वह धन्ना सेठ के गोदामों में पहुंच जाता है तो वह 10 रुपये किलों क्यों हो जाता है। किसानों से कौडियों के भाव जमीन खरीदकर कौन कुबेरपति बन रहा है। अन्ना हजारे के प्रिय वकील क्या गरीब, शोषितों, मेहनतकश और ईमानदार लोगों का मुकदमा लडकर सम्पन्नतम हुए हैं। इस आंदोलन के दौरान आरक्षण हटाओ-भ्रष्टाचार मिटाओं का नारा भी दिया गया। लेकिन सवाल यह है कि निजी क्षेत्र में तो आरक्षण नहीं है फिर वहां भ्रष्टाचार का नंगा नाच क्यों हो रहा है। अन्ना की इस सिविल सोसायटी में कोई गरीब, मजदूर, किसान, दलित, पिछडा या अल्पसंख्यक क्यों नहीं है। चंद सफेद कालर वाले व पूर्व नौकरशाह इस देश के अघोषित नियंता नहीं बन सकते। निजी क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार पर अन्ना हजारे और बाबा रामदेव क्यों चुप हैं, क्या निजी क्षेत्र जनलोकपाल के दायरे में नहीं आना चाहिए। वस्तुत निजी क्षेत्र को भी सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत लाना चाहिए तभी देश से भ्रष्टाचार के खात्मे की शुरूआत होगी।</span><br /></div>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-7545194159445506552011-04-18T08:54:00.000-07:002011-04-18T09:03:10.023-07:00पूरा समाज ही भ्रष्टाचार में लिप्तअन्ना हजारे के अनशन से ऐसा लगा कि अब तो भ्रष्टाचार का नाश करके ही चेन मिलेगा। सारे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ वातावरण बनने लगा। जगह जगह अनशन और गोष्ठियां हुई कि देश से भ्रष्टाचार समाप्त होना चाहिए। अखबारी समाचारों में अधिकांश भ्रष्ट लोग ही थे जो अन्ना हजारे जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। इन कार्यक्रमों के लिए चंदा दिया मुनाफाखोरों, कालाबाजारियों और घटतौली करने वालों ने। वैसे भी अगर लोकपाल विधेयक पास हो जाता है तो क्या भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी। लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। सब हीरों बनने के नाटक और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के फंडे हैं। आप विचार करिये कि देश में हत्या के खिलाफ कानून है लेकिन क्या कानून से हत्यारों का दौर समाप्त हो गया है। दहेज उन्मूलन कानून है लेकिन दहेज दानव कितनी वहुओं को निगल रहा है। सच तो यह है कि हमारा पूरा समाज भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ है। जहां तक राजनेताओं की बात है कि वह भी तो समाज के ही लोग हैं और लोग उन्हें चुन कर भेजते हैं। सवाल यह भी है कि क्या मुनाफाखोरी, कालाबाजारी, घटतौली भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं आते। समाज में संपन्न आदमी को सम्मान मिलता है लेकिन संपन्नता बिना भ्रष्टाचार के नहीं आती। कालाबाजारी करके, श्रमिकों को शोषण करके, सरकारी टैक्सों की चोरी करके ही अनाप शनाप मुनाफा कमाया जाता है। जब तक समाज में संपन्न लोगों यानी धनकुबेरों की पूजा होती रहेगी, भ्रष्टाचार को कोई माई का लाल नहीं मिटा सकता।डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-12697801931711813602011-03-19T17:34:00.000-07:002011-03-19T17:46:18.996-07:00होली के रंग में रंग विनय नगर<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiKfapNJ52cHFleWUDv1WkPo0CgZbRuttPDhGAawmf_ouk7IQjywP9RUKE-hb4waGD1J1f4CTxZ2Jhj_XMSTUnifwX9Ewe-It1OjpRs0dvmo_-ele1KR9bw3HPJTsDHhjmNT0wSCGG41fX8/s1600/kavi+sammelan+10.jpg"><img style="float: right; margin: 0pt 0pt 10px 10px; cursor: pointer; width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiKfapNJ52cHFleWUDv1WkPo0CgZbRuttPDhGAawmf_ouk7IQjywP9RUKE-hb4waGD1J1f4CTxZ2Jhj_XMSTUnifwX9Ewe-It1OjpRs0dvmo_-ele1KR9bw3HPJTsDHhjmNT0wSCGG41fX8/s320/kavi+sammelan+10.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5585956868047838770" border="0" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgcQ7wHhrYR9kzAxMXplnGyQX76INQQl3vXYQe681BmaxMusVXxV_s_NPHTke3au1QiFRa9W8caJGF-wSCgV7RGU-t2ORqV7OBCVANcsB350gmnkOh4bd0XBHFqQ1QCOxhmRdVMCbhQV4ZS/s1600/kavi+sammelan+06.jpg"><img style="float: right; margin: 0pt 0pt 10px 10px; cursor: pointer; width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgcQ7wHhrYR9kzAxMXplnGyQX76INQQl3vXYQe681BmaxMusVXxV_s_NPHTke3au1QiFRa9W8caJGF-wSCgV7RGU-t2ORqV7OBCVANcsB350gmnkOh4bd0XBHFqQ1QCOxhmRdVMCbhQV4ZS/s320/kavi+sammelan+06.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5585956688194767010" border="0" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTcX6h7hll93UI277pOcuUgG7RiUNWktlobHtuSWVFqsmoVJFKiVKaxbOl5myysF9NPcKKT9KGhbZuBLbVg12rbQfwus0tfiodbAdMW-Ushyphenhyphen3twtqD8iFESa1ewZGJFcsDNkebuQ3uXumc/s1600/kavi+sammelan+04.jpg"><img style="float: right; margin: 0pt 0pt 10px 10px; cursor: pointer; width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTcX6h7hll93UI277pOcuUgG7RiUNWktlobHtuSWVFqsmoVJFKiVKaxbOl5myysF9NPcKKT9KGhbZuBLbVg12rbQfwus0tfiodbAdMW-Ushyphenhyphen3twtqD8iFESa1ewZGJFcsDNkebuQ3uXumc/s320/kavi+sammelan+04.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5585956383223389090" border="0" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjaCZRkx22kDoIt1fdz_JrNSz5JFXeSNv7V1BpItyWlbnuUBlVjgfEwxynjrkRWPJPlrfI1NH1km1r7zWasp2rY05iEDdIHE8E9a-ohyphenhyphenOr3monctCAMcrLHNOgD0ANT5mJQiKAFpf2Pdgmv/s1600/kavi+sammelan+02.jpg"><img style="float: right; margin: 0pt 0pt 10px 10px; cursor: pointer; width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjaCZRkx22kDoIt1fdz_JrNSz5JFXeSNv7V1BpItyWlbnuUBlVjgfEwxynjrkRWPJPlrfI1NH1km1r7zWasp2rY05iEDdIHE8E9a-ohyphenhyphenOr3monctCAMcrLHNOgD0ANT5mJQiKAFpf2Pdgmv/s320/kavi+sammelan+02.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5585956158472867058" border="0" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjCY2EGNLmH0MJCQxNbAmGpDINNUNMUW8oEy_DmZfR-0J3z1YroMQgzxmMbIVI72t7nBo3Ol2PCtORUuSQWhbwZp_aBR64tYC204N8JiuouDIJ9CIdBGl3u8qCzZonT3IASZ9zM3v7OrXAy/s1600/kavi+sammelan+01.jpg"><img style="float: right; margin: 0pt 0pt 10px 10px; cursor: pointer; width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjCY2EGNLmH0MJCQxNbAmGpDINNUNMUW8oEy_DmZfR-0J3z1YroMQgzxmMbIVI72t7nBo3Ol2PCtORUuSQWhbwZp_aBR64tYC204N8JiuouDIJ9CIdBGl3u8qCzZonT3IASZ9zM3v7OrXAy/s320/kavi+sammelan+01.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5585955937074491234" border="0" /></a><br /><div style="text-align: justify;"><span style="font-size:130%;">होली</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">के</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">रंग</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">में</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">रंग</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">विनय</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">नगर</span><span style="font-size:130%;"><br /><br /></span><span style="font-size:130%;">आगरा</span><span style="font-size:130%;">, </span><span style="font-size:130%;">ब्रज</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">का</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">पवन</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">पर्व</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">होली</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">मिलन</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">समारोह</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">अवाम</span> <span style="font-size:130%;">कवि</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">सम्मलेन</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">विनय</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">नगर</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">कल्याण</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">समिति</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">के</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">तत्वाव्दन</span> <span style="font-size:130%;">में</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">हर्षोल्लास</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">के</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">साथ</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">मनाया</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">गया</span><span style="font-size:130%;">।</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">इस</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">कवि</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">सम्मलेन</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">में</span> <span style="font-size:130%;">गीतों</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">के</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">हिमालय</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">शिव</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">सागर</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">शर्मा</span><span style="font-size:130%;">, </span><span style="font-size:130%;">आगरा</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">कॉलेज</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">के</span> <span style="font-size:130%;">प्रोफ़ेसर</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">व्</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">हिंदी</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">के</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">श्रेष्ठ</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">गीतकार</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">डाक्टर</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">त्रिमोहम</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">शक्य</span> <span style="font-size:130%;">तरल</span><span style="font-size:130%;">, </span><span style="font-size:130%;">मैनपुरी</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">के</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">ओजस्वी</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">कवि</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">राजा</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">राम</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">आज़ाद</span><span style="font-size:130%;">, </span><span style="font-size:130%;">हास्य</span> <span style="font-size:130%;">कवि</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">जीतेन्द्र</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">जिद्दी</span><span style="font-size:130%;">, </span><span style="font-size:130%;">डाक्टर</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">ब्रज</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">बिहारी</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">बिरजू</span><span style="font-size:130%;">, </span><span style="font-size:130%;">राज</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">कुमार</span> <span style="font-size:130%;">राज</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">आदि</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">ने</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">कविता</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">के</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">विविध</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">रंगों</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">से</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">सबको</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">सराबोर</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">कर</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">दिया</span><span style="font-size:130%;">।</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">कवि</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">सम्मलेन</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">का</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">सञ्चालन</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">डाक्टर</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">महाराज</span> <span style="font-size:130%;">सिंह</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">परिहार</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">ने</span><span style="font-size:130%;"> </span><span style="font-size:130%;">किया</span><span style="font-size:130%;">.<br /></span></div>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-5439193657257460092011-02-28T18:09:00.000-08:002011-02-28T18:21:53.960-08:00बच्चों ने बिखेरे इन्द्रधनुषी रंग<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhAwLF2_n-bIX9Q4rABpgkChjavGKMnE1fv1UHetU7MYvLKYb3XhO1uidvyWCO8xexH3ArEcAeOyXiO-kFFrGaidOhS9-pNVVnWolWYvHWHG0-KEm751DV-LbtDsNUIGqkMwsaLZtuc7Tjs/s1600/prayas08.jpg"><img style="display: block; margin: 0px auto 10px; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhAwLF2_n-bIX9Q4rABpgkChjavGKMnE1fv1UHetU7MYvLKYb3XhO1uidvyWCO8xexH3ArEcAeOyXiO-kFFrGaidOhS9-pNVVnWolWYvHWHG0-KEm751DV-LbtDsNUIGqkMwsaLZtuc7Tjs/s320/prayas08.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5578929372850719666" border="0" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiIKzAVZc8qxH6UJOh3i8UP05mcos8Nef3nTwpIHu-eM7DTiChTVpIVrGxIeWaTcv8h1ACYYBpyK_Ei0tiTjUkNxmmCsk-Kp6joQnga_vgyydHaTSJM_x1YZESBSwXjhb6kVyYn8lB6CqfV/s1600/prayas07.jpg"><img style="display: block; margin: 0px auto 10px; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiIKzAVZc8qxH6UJOh3i8UP05mcos8Nef3nTwpIHu-eM7DTiChTVpIVrGxIeWaTcv8h1ACYYBpyK_Ei0tiTjUkNxmmCsk-Kp6joQnga_vgyydHaTSJM_x1YZESBSwXjhb6kVyYn8lB6CqfV/s320/prayas07.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5578929229571589954" border="0" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiwZYVMjDFLNRKw8W-o26_DM60WUjhW_b6CNT5PLYptDoLVO8n8E2LpUlh9UfGqBiw3BgjAX3RIvmq6J_bZCYY4YxNjCrIoeWwmA0y-G6BQfwwrDOGfSe2yCFRUJEvBn1gusHQK54Mn5U5A/s1600/prayas05.jpg"><img style="display: block; margin: 0px auto 10px; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiwZYVMjDFLNRKw8W-o26_DM60WUjhW_b6CNT5PLYptDoLVO8n8E2LpUlh9UfGqBiw3BgjAX3RIvmq6J_bZCYY4YxNjCrIoeWwmA0y-G6BQfwwrDOGfSe2yCFRUJEvBn1gusHQK54Mn5U5A/s320/prayas05.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5578929098298698674" border="0" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhH4v7M_effnO2b1Q7ywMWB6affx0xdxHARC65S0aUD9RO_PDi-ESP5nJPAvx81vzFqfWvkdldgwT1QDYoNFlx41UWrCFd4KlH2nzSN78rYMZPQGeJga-hnJESb4pXNMZ32wMgNTO7SJ7xZ/s1600/prayas04.jpg"><img style="display: block; margin: 0px auto 10px; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhH4v7M_effnO2b1Q7ywMWB6affx0xdxHARC65S0aUD9RO_PDi-ESP5nJPAvx81vzFqfWvkdldgwT1QDYoNFlx41UWrCFd4KlH2nzSN78rYMZPQGeJga-hnJESb4pXNMZ32wMgNTO7SJ7xZ/s320/prayas04.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5578928960603899986" border="0" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjXpi0bZC-Vv3rid1wrmV07ogbCwq6l57s_dY9esfKgd2Klp4fOmeUwOSjw0Qv6fha4EOAiZlf84JKrH7W5cKmzAQhJJuID_K4OulMYG1BWz3viytKZ5NPqcDor9uKm-B8edhjU_2bmE7bz/s1600/prayas03.jpg"><img style="display: block; margin: 0px auto 10px; text-align: center; cursor: pointer; width: 400px; height: 305px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjXpi0bZC-Vv3rid1wrmV07ogbCwq6l57s_dY9esfKgd2Klp4fOmeUwOSjw0Qv6fha4EOAiZlf84JKrH7W5cKmzAQhJJuID_K4OulMYG1BWz3viytKZ5NPqcDor9uKm-B8edhjU_2bmE7bz/s400/prayas03.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5578928753247994098" border="0" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBwK2bmSK82PD1N03WpY7w3SphZO43NGxvb9K0kltyEjvumZljBEwcc6R5A7-X5FopXxA6brc5FfiA9h2SxvXVHHyP6WK9azRji5cBW0bZwyddS1bxHyaknjHEu0qlo7nXvgF5OElRe_y6/s1600/prayas02.jpg"><img style="display: block; margin: 0px auto 10px; text-align: center; cursor: pointer; width: 400px; height: 300px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBwK2bmSK82PD1N03WpY7w3SphZO43NGxvb9K0kltyEjvumZljBEwcc6R5A7-X5FopXxA6brc5FfiA9h2SxvXVHHyP6WK9azRji5cBW0bZwyddS1bxHyaknjHEu0qlo7nXvgF5OElRe_y6/s400/prayas02.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5578928637458555074" border="0" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiGh4edn4LI2X4qfvNtFXSrbbDhNAsCgLTCzeIDTkxKIFkvyPlB0SovHmKS38DYbU3MtcqngsuaK1w9qfW7-kmIHQrxVS_bNsqkTS7eXpsi70cGKFuyFRA9ReVR4-O5CuJaZzIVUuLM69KS/s1600/prayas01.jpg"><img style="display: block; margin: 0px auto 10px; text-align: center; cursor: pointer; width: 400px; height: 300px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiGh4edn4LI2X4qfvNtFXSrbbDhNAsCgLTCzeIDTkxKIFkvyPlB0SovHmKS38DYbU3MtcqngsuaK1w9qfW7-kmIHQrxVS_bNsqkTS7eXpsi70cGKFuyFRA9ReVR4-O5CuJaZzIVUuLM69KS/s400/prayas01.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5578928417216103810" border="0" /></a><span style="font-size:130%;"><br /></span><div style="text-align: justify;"><span style="font-size:130%;"><span style="font-style: italic; font-weight: bold;">आगरा। शैक्षिक और सामाजिक क्षेत्र की अग्रणी संस्था प्रयास का वार्षिक सांस्कृतिक समारोह 27 न्यू सुभाष नगर, लॉयर्स कालोनी पर रेल मंत्रालय के पूर्व निदेशक डा. विजय कुमार मल्होत्रा की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि थे दैनिक जनसंदेश टाइम्स के आगरा ब्यूरो चीफ एवं साहित्यकार डा. महाराज सिंह परिहार। इस मौके पर बच्चों ने अपनी नैसर्गिक प्रतिभा का परिचय दिया। दोस्त हो तो कैसा, चूहा और शेर आदि नाटक तथा गोपाल कृष्ण कौल एवं सर्वेश्वर दया सक्सैना की कविताओं की संगीतमय प्रस्तुति ने लोगों को आल्हादित कर दिया। प्रयास की सचिव डा. बीना शर्मा ने संस्था का परिचय दिया। कार्यक्रम में सुधीर कुमार, सीमा, अश्विनी श्रीवास्तव आदि मौजूद थे। संचालन डा. अनुपम सारस्वत ने किया।</span></span><!--[if gte mso 9]><xml> <w:worddocument> <w:view>Normal</w:View> <w:zoom>0</w:Zoom> <w:punctuationkerning/> <w:validateagainstschemas/> <w:saveifxmlinvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:ignoremixedcontent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:alwaysshowplaceholdertext>false</w:AlwaysShowPlaceholderText> <w:compatibility> <w:breakwrappedtables/> <w:snaptogridincell/> <w:wraptextwithpunct/> <w:useasianbreakrules/> <w:dontgrowautofit/> </w:Compatibility> <w:browserlevel>MicrosoftInternetExplorer4</w:BrowserLevel> </w:WordDocument> </xml><![endif]--><!--[if gte mso 9]><xml> <w:latentstyles deflockedstate="false" latentstylecount="156"> </w:LatentStyles> </xml><![endif]--><!--[if gte mso 10]> <style> /* Style Definitions */ table.MsoNormalTable {mso-style-name:"Table Normal"; mso-tstyle-rowband-size:0; 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href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLhm59lwk-DdHzPWwis4SCflWVuEtaRgmqRff0K7kRWEjEuf3nPsAfvO0bfAVqS321OJrTuWdt2HoMJRZZEdws8dtWdMBHbKosgu0g9cWLc4tUFTAEG_vHrF7uB4m-LH6F4Z79L2qjhnq4/s1600/20+x1+0+final.jpg"><img style="display: block; margin: 0px auto 10px; text-align: center; cursor: pointer; width: 400px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLhm59lwk-DdHzPWwis4SCflWVuEtaRgmqRff0K7kRWEjEuf3nPsAfvO0bfAVqS321OJrTuWdt2HoMJRZZEdws8dtWdMBHbKosgu0g9cWLc4tUFTAEG_vHrF7uB4m-LH6F4Z79L2qjhnq4/s400/20+x1+0+final.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5561861800716857890" border="0" /></a><br /><br /><div style="text-align: justify;"><span style="font-size:130%;">आगरा, वरिष्ठ पत्रकार एवं कवि तथा विचार-बिगुल के ब्लोगर डाक्टर महाराज सिंह परिहार लखनऊ se प्रकाशित दैनिक जनसन्देश टाइम्स के आगरा ब्यूरो प्रमुख बनाये गए है। विदित रहे कि इसअखवार के संपादक डाक्टर सुभाष राय हैं। जो विचारक, संवेदनशील कवि होने के साथ चर्चित ब्लॉग बात-बेबात के ब्लोगर सहित अमर उजाला के आगरा संपादक भी रहे हैं। आगरा का कार्यभार डाक्टर राय ने ही डाक्टर परिहार को सौपा है। जनसन्देशटाइम्स आगरा का कार्यालय सुभाष पार्क के सामने, शाह पैलेस १०६, एम.जी, रोड पर है.</span><br /></div>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-77819236926646663112011-01-01T06:22:00.000-08:002011-01-01T06:24:32.017-08:00नया वर्ष-नयी चुनौतियां<div style="text-align: justify;">हर बार 365 दिनों के बाद नया साल आता है। इस दिन इंडिया में नये सपने संजोये जाते है। नया संकल्प किया जाता है। खूब मौज मस्ती होती है। होटलों में अनेकानेक कार्यक्रम होते है। पानी की तरह पैसा बहाया जाता है। लेकिन इसके विपरीत असली भारत अपनी बेबसी पर आंसू बहाता रहता है। वह सोचता है शायद नये साल में कुछ राहत मिले। पर कहां उन अभागों के नसीब, जो उन्हें दो जून की रोटी मुहैया करा सके। एक बात साफ है कि देश में गरीबों को जिंदा रहने का अधिकार लगभग अलिखित विधान के तहत छीना जा रहा है। कथित बुद्धिजीवियों से लेकर उद्योगपतियों तक, सबकी निगाहें सेंसेक्स पर टिकी रहती है। अब कहां गई शस्य शयामला देवभूमि, जिसमें कंक्रीट के जंगल रोपने की तैयारी जोरों पर है। कृषि भूमि पर खेती और गरीब की झोंपड़िया नहीें अपितु मॉल व रईसों के फार्म हाउस बन रहे हैं। लगता नहीं कि नये साल में कोई आमूलचूल परिवर्तन होगा। इस व्यक्तिवादी देश में न किसी को समाज की चिंता है और न ही देश की। जब व्यक्ति का उद्देश्य स्वार्थ में विलुप्त हो जाता है तो उससे अपेक्षा करता मूर्खता के अतिरिक्त कुछ नहीं है। इस देश में चाहे गांधीवादी हो चाहे श्रीरामवादी, समाजवादी हो या साम्यवादी। सभी बुनियादी मुद्दों से आंखें मूंदे नजर आते हैं। सत्ता के गलियारों में घुसने के लिए यह वाद उनके लिए सीढ़ी है न कि जीवन में आत्मसात करने की विचारधारा। लोगो ने बड़े धूमधाम से नया साल बनाया। देश के कर्णधारों ने नव वर्ष की शुभकामनाएं प्रेषित की। लेकिन अफसोस, कहीं भी उनका वह संकल्प दिखाई नहीं दिया जिससे लोगों के जीवन में भोर की किरण प्रवेश करे। वैसे भी नया साल रईसों के लिए सभी तरीके से कमाए पैसे फूंकने का त्यौहार बन चुका है। अच्छा होता कि नये वर्ष पर राजनेता और नौकरशाह यह कहते कि वह ईमानदार रहेगा। अपने परिवार से परे देश व समाज हित में संघर्ष करेगा। उस जनता के प्रति समर्पित रहेगा जिसने उसे पद, सम्मान व वैभव दिया है। काश! हम नये साल में सकंल्प ले पाते कि अब दहेज दानव की भेंट कोई बहिन नहीं चढ़ेगी। डा. लोहिया के ‘जाति तोड़ो’ आन्दोलन को हम जीवित करेंगे। भ्रष्टाचार के खिलाफ आर-पार की मुहिम चलाएंगे। गरीबों की अस्मत से खेलने वालों को हम नेस्तनाबूद करेंगे। किसी की मुस्कान रूपी दीप्ति छीनकर अपने आशियाने में हम उजाला नहीं करेंगे।<br /><br /></div>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-29443428291347733512010-12-28T07:06:00.000-08:002010-12-28T07:22:14.841-08:00राजाओं का ही इतिहास लिखा गया - डा. परिहार<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEga3Xx9s7eJes_qzKI8oP-LuYC5YSfT0sy5W0Z_C8ep3St4fWJ0uGs4UiLKhzGb2r5Px45KLVtsRCcSfN39Y4_q-kHGYys0QWG2Ip_7DH1WUGWzslWxzAoDrVk2XWKdMOnqNmFqfAWHuWk3/s1600/bhadoi6.jpg"><img style="float: right; margin: 0pt 0pt 10px 10px; cursor: pointer; width: 320px; height: 218px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEga3Xx9s7eJes_qzKI8oP-LuYC5YSfT0sy5W0Z_C8ep3St4fWJ0uGs4UiLKhzGb2r5Px45KLVtsRCcSfN39Y4_q-kHGYys0QWG2Ip_7DH1WUGWzslWxzAoDrVk2XWKdMOnqNmFqfAWHuWk3/s320/bhadoi6.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5555752138251174818" border="0" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUbQ0DmfuHsTtbHmsFRBtJCg6tFy9lC_Osatu9i3fKD54RhaHq0TxCCdyj0G-bnUk3eRCarYGOoEsi0re1AJI2dCbOoQMzbkum_J7azsVeuBT2WxNt8MRV47DglaIUgObe_S7IObCRhZlm/s1600/bhadoi5.jpg"><img style="float: right; margin: 0pt 0pt 10px 10px; cursor: pointer; width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUbQ0DmfuHsTtbHmsFRBtJCg6tFy9lC_Osatu9i3fKD54RhaHq0TxCCdyj0G-bnUk3eRCarYGOoEsi0re1AJI2dCbOoQMzbkum_J7azsVeuBT2WxNt8MRV47DglaIUgObe_S7IObCRhZlm/s320/bhadoi5.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5555751993952062770" border="0" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjSgKanopbEtdVvNokyDGZZls622l-22MHPGSs8ZkrEvK1lxB1aaWWyJMV9NpknBj_d7CVOBO8eyq4kFUS1ubwRks4D_dnR9ERKMCgMDesuRhMlKa1d1GQdYYE1x1c_3ZKKKC9smMHdBvxv/s1600/bhadoi4.jpg"><img style="float: right; margin: 0pt 0pt 10px 10px; cursor: pointer; width: 320px; height: 184px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjSgKanopbEtdVvNokyDGZZls622l-22MHPGSs8ZkrEvK1lxB1aaWWyJMV9NpknBj_d7CVOBO8eyq4kFUS1ubwRks4D_dnR9ERKMCgMDesuRhMlKa1d1GQdYYE1x1c_3ZKKKC9smMHdBvxv/s320/bhadoi4.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5555751821967822338" border="0" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi-xrZWl1po_PymcBqpGT4rUv1z0GxuIdvxN2wzaOFbebzxF-uu0sNOqzzG0b9Z7D2_6KZifsC7Y4YiLnMcrtSP1Q2DkvwgpXqKvQybUZ4IvDVrVyX2zgz2QRAYxPL0gPMriF_paDKWgjUv/s1600/bhadoi3.jpg"><img style="float: right; margin: 0pt 0pt 10px 10px; cursor: pointer; width: 320px; height: 307px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi-xrZWl1po_PymcBqpGT4rUv1z0GxuIdvxN2wzaOFbebzxF-uu0sNOqzzG0b9Z7D2_6KZifsC7Y4YiLnMcrtSP1Q2DkvwgpXqKvQybUZ4IvDVrVyX2zgz2QRAYxPL0gPMriF_paDKWgjUv/s320/bhadoi3.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5555751673037558466" border="0" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNRUyPdwBndwsWt4rSJ6bQYFX2e-tuJySV16E0mTD8SN3lMMu0BbcD0Q3JAfpVTT9PuSuHT5R8UYZCjK7LG6rESGYBZ7bx5jbSvvqX0IZaPOjc42qx364vDBQd8EI7tCQI0HVGnoU3HqRG/s1600/bhadoi2.jpg"><img style="float: right; margin: 0pt 0pt 10px 10px; cursor: pointer; width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNRUyPdwBndwsWt4rSJ6bQYFX2e-tuJySV16E0mTD8SN3lMMu0BbcD0Q3JAfpVTT9PuSuHT5R8UYZCjK7LG6rESGYBZ7bx5jbSvvqX0IZaPOjc42qx364vDBQd8EI7tCQI0HVGnoU3HqRG/s320/bhadoi2.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5555751488406842034" border="0" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3BaoKrny3LhtImJqaGGfG1I8u-UYhtA61ywjflEjZrusMwFfPl6Ai9FrTzoGACAFi0t3eSUBwaGQj8Z4_GRl3JP01HpwLvNuRoEF3GYjhyBBr5KiszUmgF9ZBhdcl07fUroozHaO0h6vu/s1600/bhadoi1.jpg"><img style="float: right; margin: 0pt 0pt 10px 10px; cursor: pointer; width: 320px; height: 273px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3BaoKrny3LhtImJqaGGfG1I8u-UYhtA61ywjflEjZrusMwFfPl6Ai9FrTzoGACAFi0t3eSUBwaGQj8Z4_GRl3JP01HpwLvNuRoEF3GYjhyBBr5KiszUmgF9ZBhdcl07fUroozHaO0h6vu/s320/bhadoi1.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5555751356321194722" border="0" /></a><br /><span style="font-size:130%;"><span style="font-size:180%;"><span>भदोही</span> <span>में</span> <span>मेधावी</span> <span>छात्र</span> <span>सम्मान</span> <span>समारोह</span></span><br />हमारे देश का इतिहास वस्तुतः राजाओं का इतिहास है। यही कारण है कि जंगे आजादी के अप्रतिम योद्धा और भदोही (संत रविदास नगर) की पावन माटी में जन्मे शीतल पाल का इसमें प्रमुखता से उल्लेख नहीं है। अगर राम, कृष्ण, युधिष्ठर, बहादुरशाह जफर, रानी झांसी आदि राजा अथवा रानी न हुए होते तो इतिहास में इनका नामोनिशान नहीं होता। यह उद्गार नया इन्द्रधनुष के प्रधान संपादक व विचार बिगुल के चर्चित ब्लॉगर डाक्टर महाराज सिंह परिहार ने पाल विकास समिति के तत्वावधान में विगत दिनों भदोही के ज्ञानपुर नगर में मुखर्जी उद्यान में संपन्न मेधावी छात्र सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किये। कार्यक्रम की अध्यक्षता आर० एन ० पाल ने की। विशिष्ट अतिथि थे प्रख्यात समाजसेवी सेवालाल पाल तथा दिवंगत आईएएस दशरथ प्रसाद पाल की धर्मपत्नी नीलम प्रसाद थीं.<br /></span> <div style="text-align: justify;"><span style="font-size:130%;"> इस मौके पर जिला पंचायत सदस्य श्रीमती सावित्री देवी सहित कई क्षेत्र पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधानों का मुख्य अतिथि ने शॉल ओढ़ाकर और माल्यार्पण करके अभिनंदन किया। प्रतिभाशाली हाईस्कूल, इंटरमीडिएट, स्नातक व स्नातकोत्तर छात्रों सहित विभिन्न सरकारी नौकरी में प्रतियोगिता द्वारा चयनित हुए युवाओं का मुख्य अतिथि डा। महाराज सिंह परिहार, विशिष्ट अतिथिद्वय सेवालाल पाल व श्रीमती नीलम प्रसाद ने शील्ड, मेडल प्रदान कर एवं मार्ल्यापण करके स्वागत किया। समारोह में श्रीमती नीलम प्रसाद, सेवालाल पाल, रमाशंकर पाल, डा. कमल, जयशंकर प्रसाद पाल, मुन्नालाल पाल, श्रीनाथ पाल आदि अनेक वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किये। संचालन संस्था के संरक्षक बी.एल. पाल ने किया। इस अवसर पर अनुभाग अधिकारी लक्ष्मण पाल, कर अधीक्षक आर.बी.पाल, बीनापाल, अनुपमा आदि उपस्थित थे। समारोह से पूर्व मुख्य अतिथि तथा विशिष्ट अतिथियों ने १८५७ के शहीद शीतल पाल की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया.<br /><br /></span></div>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-44608170027179685442010-12-28T06:29:00.000-08:002010-12-28T06:34:54.306-08:00सांसद निधि पर ज्वलंत सवाल<div style="text-align: justify;"><span style="font-size:130%;"><span></span>बिहार में नीतीश कुमार ने विधायक निधि समाप्त कर यह मांग पुरजोर तरीके से उठाई है कि सांसद निधि भी समाप्त की जाये। इस तरह की मांगे विगत कई वर्षो से उठाई जा रही हैं कि इस निधि का दुरुपयोग हो रहा है और सांसद अपनी मनमानी करके इसका उपयोग कर रहे हैं। वैसे जब 1993 में अल्पमत में आई पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहा राव ने इसे संभवतः इस उद्देश्य से आरंभ किया था कि इससे सांसदों को विकास के लिए प्रोत्साहन राशि मिल जाये। योजना के आरंभ में सांसद निधि की धनराशि पहले पचास लाख और फिर एक करोड़ रुपये थी जिसे राजग सरकार ने बढ़ाकर दो करोड़ रुपये कर दिया था। इस मन्तव्य भले ही विकास का रहा हो लेकिन इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि अपनी अल्पमत सरकार को बचाने का शायद यह लॉलीपॉप भी था। इस निधि में प्रतिवर्ष 1600 करोड़ सांसदों को आवंटित की जाती है। अब तक इस मद में 17000 करोड़ रुपये आवंटित हो चुके हैं। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस जनहित का मामला बताकर इस योजना को हरी झंडी दिखा दी। जबकि द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग तथा नेशनल कमीशन फॉर रिव्यू ऑफ द वर्किंग ऑफ कांस्टीट्यूशन अर्थात् एनसीआरडब्ल्यूसी और 2005 में सोनिया गांधी की अध्यक्षता में गठित नेशनल एडवायजरी कमेटी भी सांसद निधि खत्म करने की सिफारिश कर चुकी है। सांसदों की मांग थी कि सांसद निधि बढ़ाकर पांच करोड़ रुपये सालाना की जाये। इस पर केन्द्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के इस प्रस्ताव को योजना आयोग के उपाध्यक्ष डा. मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने ठुकरा दिया है। इस निधि के दुरुपयोग की शिकायतें आम हैं। यह वास्तविकता भी है कि सांसद-नौकरशाही और ठेकेदारों का गठजोड़ इस निधि का बंदरबांट करने से पीछे नहीं है। अधिकांश सांसदों ने इस राशि का उपयोग अपने निजी स्कूल व कॉलेज आदि में अधिक किया है। दुरुपयोग के संबंध में केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जायसवाल ने कहा कि हाल ही में उनके मंत्रालय ने एक रपट जारी करते हुए उन कार्यों का खुलासा किया था जो सांसद निधि के तहत चिन्हित नहीं हैं। ऐसे सांसदों से उनके द्वारा कराये गए गैर चिन्हित कामों की रकम वसूली के लिए सम्बंधित जिले के डीएम को कार्रवाई शुरू करने का कहा गया है। </span><br /><br /></div>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-73215050076178429432010-12-18T06:32:00.000-08:002010-12-18T06:35:22.997-08:00राज्यसभा की प्रासंगिकता<div style="text-align: justify;">मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यसभा को समाप्त करने की मांग करके एक नई बहस छेड़ दी है। इससे पहले भी इस सदन की प्रासंगिकता पर अक्सर सवाल उठाये जाते रहे हैं। इस मांग से हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के औचित्य और उपादेयता पर प्रश्न उठ खड़ा हुआ है। हमारी संसदीय प्रणाली दो सदनीय है। ब्रिटेन में भी हाउस ऑफ कॉमंस तथा हाउस ऑफ लार्डस तथा अमेरिका में भी कांग्रेस तथा सीनेट आदि दो सदनीय व्यवस्था है। राज्यसभा अर्थात् उच्च सदन का सभापतित्व उपराष्ट्रपति करते हैं। इस सदन का बनाने का उद्देश्य हमारे संविधान निर्माताओं के अनुसार संसद की बहस की तार्किकता और सूक्ष्म विश्लेषण के लिए था जिससे विधेयकों पर सारगर्भित बहस हो। लेकिन अमेरिकी सीनेट की ताकत राज्यसभा से अधिक है। उसके सदस्यों का चुनाव सीधे जनता द्वारा किया जाता है जबकि राज्यसभा में 238 सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। 12 उन सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करता है जो विज्ञान, साहित्य, कला और सामाजिक क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। यह स्थायी सदन है जो कभी विघटित नहीं होता और इसके एक तिहाई सदस्य हर दो वर्ष बाद पद से निवृत होते हैं। ब्रिटेन के हाउस ऑफ लार्डस की सदस्यता जीवनपर्यन्त होती है जबकि राज्यसभा में सदस्यों <span>का</span> कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। और वह देश का सर्वोच्च न्यायालय भी होता है। वस्तुतः राज्यसभा को कोई विशेषाधिकार नहीं होते। इस सदन में अगर सरकार अल्पमत में आ जाये तो भी उसकी सेहत पर फर्क नहीं पड़ता। वित्त विधेयक के बारे में इसकी स्थिति अत्यंत कमजोर है। इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह राजनीति के पिटे हुए मोहरों का केन्द्र बन गया है। लगभग हर दल लोकसभा चुनाव में हारे हुए अपने बड़े नेताओं को राज्यसभा में एडजस्ट करता है। वर्तमान राज्यसभा में ऐसे अधिकांश सदस्य हैं जिन्हें लोकसभा के चुनाव में मुुंह की खानी पड़ी थी। इसके अतिरिक्त बहुंत से राजनेता ऐसे भी हैं जो अपनी जुगाड़ और जोड़तोड़ करके इस सदन में प्रवेश कर जाते हैं। कला, समाजसेवा, साहित्य और विज्ञान के नाम पर सरकार राष्ट्रपति से उन्हीं को मनोनीत कराती है जो उसकी विचारधारा के हों। अब समय आ गया है कि इस मुद्दे पर गहन मंथन हो तथा वर्तमान परिवेश में इसकी आवश्यकता क्यों हैं, पर सार्थक देशव्यापी बहस छेड़ी जानी चाहिए।<br /><br /></div>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-35046609543635865892010-12-15T06:35:00.000-08:002010-12-15T06:37:23.459-08:00सरकारी और निजी सम्पत्ति की तोड़फोड पर अंकुश<div style="text-align: justify;">हमारी राजनीति इतने छिछले स्तर पर उतर आई कि अपनी मांगों के समर्थन में धरना, प्रदर्शन के दौरान सरकारी और निजी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने में अपने को गौरवान्वित महसूस करती है। वास्तविकता यह है कि जबसे हमारे हमारे राजनैतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का खात्मा हुआ है। राजनैतिक दर्शन और विचारधारा को तिलांजलि दे दी गई है। यही कारण है कि उनके विरोध का तरीका भी बदल गया है। सरकारी वाहनों को जलाना आम बात हो गई है। अपने धरने या प्रदर्शन के दौरान राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता उद्दंड हमलावरों में बदल जाते हैं और वहशियों की भांति अपनी हरकतों पर उतर आते हैं। वह उसी धरने और प्रदर्शन को सफल मानते हैं जिसमें निजी और सरकारी सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया हो। अब इलाहाबाद हाईकोर्ट उत्तर प्रदेश के गृह सचिव को दिये अपने निर्देश में स्पष्ट कर दिया है कि तोड़फोड़ करने वालों को चिन्हित कर उनसे प्रदर्शन और धरने के दौरान हुए नुकसान की भरपाई की जायेगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश सुधीर अग्रवाल ने अपने निर्देश में प्रदेश सरकार को कहा है कि वह राजनैतिक दलों के धरने व प्रदर्शन के दौरान हुए नुकसान की भरपाई नेताओं और उनके समर्थकों से करे। इस ऐतिहासिक निर्देश से प्रदेश की जनता ने राहत की सांस ली है जो आये दिन राजनैतिक दलों के प्रदर्शनों से नुकसान का शिकार होती है। इस निर्देश से राजनैतिक नेता और कार्यकर्ता लक्ष्मण रेखा का उल्लघंन करने से कतरायेंगे क्योंकि उन्हें पता है कि हर नुकसान की भरपाई उनसे की जायेगी। न्यायमूर्ति का यह निर्देश तो सही है लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि हमारा पुलिस प्रशासन ईमानदारी से अपने कार्य को अंजाम देगा। आम नागरिक इस सच्चाई से वाफिक है कि हमारी पुलिस और प्रशासन आये दिन न्यायपालिका के निर्देशों की अनदेखी करता है। कोर्ट के इस निर्देश की आड़ में निरपराध लोगों का सताना शुरू हो जायेगा। वस्तुतः इस निर्देश से पुलिस प्रशासन निरंकुश हो जायेगा। तोड़फोड़ के आरोप में वह ऐसे लोगों को भी चिन्हित कर सकता है जिनका इन घटनाओं से दूर-दूर का वास्ता नहीं होगा। <br />उच्च न्यायालय के इस निर्देश से निश्चित रूप से उन राजनेताओं के तेवर ढीले होंगे जो अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए तोड़फोड़ का सहारा लेते हैं। अब राजनेताओं को कोई भी धरना अथवा प्रदर्शन करने से पहले सोचना होगा कि उनके समर्थकों में कोई अराजक तत्व तो नहीं है। इससे राजनीतिक दलों में शांति और सद्भाव में आस्था रखने वाले कार्यकर्ताओं की पूछ बढ़ेगी। हो सकता है कि हाईकोर्ट के इस निर्देश से हमारी दिशाविहीन राजनीति पर लगाम लगेगी।<br />इस निर्देश के आलोक में सवाल यह उठता है कि आखिर धरने और प्रदर्शन के दौरान तोड़फोड़ की प्रेरणा आखिर राजनैतिक कार्यकर्ताओं को किससे मिलती है ? उत्तर साफ है कि यह प्रेरणा उन्हें सांसदों और विधायकों से मिलती है जो सदन में माइक आदि तोड़ते हैं। सरकारी कागजातों की चिंदी-चिंदी करके उन्हें पतंग की तरह सदन में उड़ाते हैं। हमारी माननीय सांसदों और विधायकों को अपने आचरण में परिवर्तन करना होगा। बड़े नेताओं से ही कार्यकर्ता सीखते हैं। अतः उन्हें सयंम का परिचय देना चाहिए।<br />न्यायालय के इस निर्देश के परिप्रेक्ष्य में मीडिया की जिम्मेदारी निश्चित रूप से बढ़ेंगी। प्रदर्शन और धरना के दौरान सरकारी और निजी सम्पत्तियों को जो तत्व नुकसान पहुुचाते हैं। उन्हें चिन्हित करने में प्रशासनिक अधिकारी बिना मीडिया के सहयोग के अंजाम तक नहीं पहुुंच सकते। अतः मीडिया विशेषकर इलैक्टॉनिक मीडिया की जिम्मेदारी अधिक बढ़ेगी। इस जिम्मेदारी को मीडिया को बखूबी निभाना चाहिए। लोकतंत्र की मजबूती में उसकी सक्रिय सहभागिता से इंकार नहीं किया जा सकता।<br /><br /></div>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-22223331297388979972010-12-11T02:49:00.001-08:002010-12-11T02:49:55.828-08:00वाराणसी विस्फोटःआस्था पर हमला<div style="text-align: justify;">विगत दिनों वाराणसी में गंगा आरती के समय हुए आतंकी हमले ने समूचे देशवासियों को झकझोर कर रख दिया है। जिस समय लोग आस्था और श्रद्धा के साथ सायंकाल गंगा की आरती उतार रहे थे। उन्हें सपने में भी ख्याल नहीं था। आखिर यह ख्याल उन्हें आता क्यों ? आखि रवह इस आरती को सदियों से परम्परागत रूप से करते आ रहे हैं। वाराणसी में सभी धर्मों के लोग आपसी सद्भाव और भाईचारे से रहते हैं। फिर इस तरह की कुत्सित और अमानवीय विस्फोट का क्या मतलब है। समझ में नहीं आता कि आखिर आतंकवादी चाहते क्या हैं ? क्या वह देश की साझी संस्कृति को ध्वस्त करना चाहते हैं अथवा यहां के आपसी सद्भाव को चोट पहुंचाकर अपने मंसूबे पूरा करना चाहते हैं। इस हमले से इतना तो स्पष्ट है कि देश में आतंकवादियों ने जबर्दस्त घुसपैंठ बना ली है। यह हमले भले ही विदेशी शत्रुओं द्वारा प्रायोजित हों लेकिन इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि उन्हें इसी देश के लोगों से संरक्षण और मदद मिलती है। जब तक हम अपने बीच के विभीषणों और जयचंदों को नेस्तनाबूद नहीं करेंगे। उनके मुख से नकाब नहीं उठायेंगे। तब तक आतंकी अपने काले कारनामों को अंजाम देते रहेंगे। इस विस्फोट के संदर्भ में हमें आतंकी मानसिकता और विचारधारा पर भी मंथन और चिंतन करना होगा कि आतंकी हमारी गंगा-जमुनी विरासत के अलमस्त शहर वाराणसी को क्यों बार-बार अपना निशाना बना रहे हैं। यह मामला हमारी आस्था और श्रद्धा से जुड़ा हुआ है। इस घटना ने हमारे अंतर्मन को घायल ही नहीं किया बल्कि हमारी आस्था और विश्वास को ललकारा भी है। इस घटना के तार प्रतिबंधित सिमी से जोड़ा जा रहा है जिसने प्रतिबंध के बाद अपना नाम बदल लिया है। आतंकी सोचते थे कि इस हमले से हिंदू <span>भड़क</span> उठेंगे और अपना आक्रोश व्यक्त करने के लिए अनहोनी करेंगे। परंतु आतंकियों के इस मंसूबे को धराशायी किया है वाराणसी के निवासियों ने। उन्होंने इस घटना के बाद भी भय और आतंक से अपने को परे रखकर आतंकी संगठनों को करारा जवाब दिया है। सिमी और संघ को एक जैसा संगठन बताने वालों की आंख खुल जानी चाहिए कि किस प्रकार कट्टरवादी इस्लामी ताकतें देश की एकता और अखंडता को विखंडित करने में जुटी हुई हैं। अब किंतु-परंतु से काम नहीं चलेगा अपितु अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से आतंकियों को समूल नष्ट करना होगा। आखिर कब तक आतंकी देश की आस्था और श्रद्धा को लहूलुहान करते रहेंगे।<br /><br /></div>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-75387315710881268062010-12-05T04:30:00.000-08:002010-12-05T04:35:19.465-08:00भारतीय अमीरों में सेवा भावना का अभाव<div align="justify"></div><p align="justify">बहुचर्चित उपन्यास ‘सिटी ऑफ जॉय‘ के फ्रांसीसी लेखक डोमिनिक लेपियर ने भारतीय अमीरों को सही आइना दिखाया है कि उनमें गरीबों के प्रति मानवीय संवेदना का अभाव है। वह उनके मददगार नहीं होते। उनके इस कथन को एकदम खारिज नहीं किया जा सकता। देश में अरब और खरबपतियों की संख्या बढ़ रही है लेकिन उनका सामाजिक सरोकारों से कोई रिश्ता नहीं है। वह गरीब और मरीजों के प्रति सहिष्णु नहीं है। यह भारतीय परम्परा और संस्कृति के विरुद्ध है। देश में हजारों धर्मशालाएं, बावड़ी, कुंए, स्कूल और कालेज हमारे देश के अमीरों ने ही बनाये हैं। देश का शायद ही कोई ऐसा शहर होगा। जहां उन्होंने अपने समाजोपयोगी कार्यों को अंजाम नहीं दिया हो। पहले बड़ा आदमी बड़े काम करने वाले को ही माना जाता था। लेकिन आज सब कुछ बदल गया है। यही कारण है कि अधिकांश धनकुबेर अपनी पत्नी को उसके जन्मदिवस पर जेट विमान भेंट करते है तो कोई बहुमंजिला आलीशान इमारत। वस्तुतः भौतिक जीवन में आकंठ डूबे अमीरों का नजरिया ही बदल गया है। उनका धन उनके ऐशो-आराम में या अपने ओद्यौगिक साम्राज्य को विस्तार करने में अधिक खर्च होता है। देश में टाटा और इन्फोसिस के नारायणमूर्ति जैसे कुछ ही धनकुबेर हैं जो अपने सामाजिक दायित्वों को अपने अस्पतालों व अन्य प्रतिष्ठानों के माध्यम से पूरा कर रहे हैं।</p>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4607275656373160915.post-5200442524215442542010-12-04T06:57:00.000-08:002010-12-04T06:58:34.091-08:00चिकित्सक क्यों नहीं जाते गांव<div style="text-align: justify;">जाने क्यों सरकारी अधिकारी और कर्मचारी गांव जाने से घबराते हैं। नौकरी पाने के बाद वे येन-केन-प्रकारेन शहर में ही अक्सर पदस्थ रहते हैं। हांलांकि उनको गांव में भी स्थानांतरित या नियुक्ति दी जाती है लेकिन भ्रष्टाचार के कारण उपस्थिति पंजिका में उनकी फर्जी उपस्थिति दर्ज होती है। वह इसकी बाजिव कीमत भी चुकाते हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रामीणों के हित में साहसिक कदम उठाते हुए 1 दिसम्बर 2010 से नियुक्त चिकित्साधिकारियों की सेवा शर्तों में संशोधन करके उन्हें परामर्शदाता बनने के लिए चार साल गांवों में अनिवार्य रूप से अपनी सेवाएं देनी होंगी। पहले वरिष्ठ चिकित्साधिकारी वरीयताक्रम से परामर्शदाता यानी कंसल्टेंट बन जाते थे। अब उन्हें अपनी प्रोन्नति के लिए ग्रामीणों के बीच चार साल का समय गुजारना होगा। डाक्टरों को सरकार के इस आदेश से निराशा होगी क्योंकि वह शहरी जीवन-शैली के गुलाम हो गये हैं। वह अपना पवित्र दायित्व चिकित्सा सेवा को विस्मृत कर चुके हैं और शहर में धड़ल्ले से प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं। अब सवाल यह पैदा होता है कि कहीं सरकार का यह कदम कागजों में दब कर न रह जाये अथवा डाक्टर फर्जी तरीके से गांव में डयूटी करते रहें। सरकार सहित जनप्रतिनिधियों को भी इस ओर जागरूक रहना होगा कि कहीं इस आदेश का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है।<br /><br /></div>डा. महाराज सिंह परिहारhttp://www.blogger.com/profile/01913083657620688491noreply@blogger.com2