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रविवार, 18 अप्रैल 2010

क्या विधायिका में पत्नियाँ या प्रेमिकाएं होंगी

जब हम अपने अतीत पर नजर डालते है तो पाते है कि प्राचीन काल में गार्गी, मैत्रेयी, अपाला जैसी प्रसिद्ध महिला दार्शनिक थी। स्वंतत्रता आंदोलन में भी महिलाओं का योगदान पुरुषों से कम नही था। इस आंदोलन से जुड़ने के गांधीजी के आह्वान पर ऐसे समय महिलाओं ने इसमें भाग लिया जब सिर्फ 2 प्रतिशत महिलाएं ही शिक्षित थीं। इस तथ्य से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि महिलाओं के लिये घर से बाहर निकलना कितना कठिन था परंतु वे फिर भी बाहर निकली। स्वतंत्रता के बाद संविधान सभा के सदस्य के रूप में महिलाओं ने स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का मसौदा तैयार करने के काम में हिस्सा लिया। लेकिन आजादी के बाद भी वह कमजोर व पिछड़ी बनीं रही, जिस कारण महिला सशक्तिकरण की आवश्यक आन पड़ी। महिला सशक्तिकरण का तात्पर्य है सामाजिक सुविधाओं की उपलब्धता, राजनैतिक और आर्थिक नीति निर्धारण में भागीदारी, समान कार्य के लिए समान वेतन, कानून के तहत सुरक्षा एवं प्रजनन अधिकारों को इसमें शामिल किया जाता है। सशक्तिकरण का अर्थ किसी कार्य को करने या रोकने की क्षमता से है, जिसमें महिलाओं को जागरूक करके उन्हें आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य संबंधित साधनों को उपलब्ध कराया जाये। इसी बात को ध्यान में रखते हुए यूपीए की सरकार ने अपने इस संकल्प को दोहराया है कि वह महिला सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य करेगी। इसका खुलासा राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने संसद के दोंनो सदनों के संयुक्त अधिवेशन में अपने अभिभाषण में किया। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार संसद और विधायिका में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण, स्थानीय निकायों में महिलाओं की भागीदारी 33 से बढ़ाकर 50 फीसदी करने को प्रतिबद्ध है। जबकि वर्तमान में केवल बिहार और मध्यप्रदेश के स्थानीय निकायों में महिला आरक्षण 50 फीसदी है। इसके साथ ही वह केन्द्र सरकार की नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी से संतुष्ट नहीं है। अतः उनकी भागीदारी बढ़ाने को कारगर कदम उठाए जाएंगे। महिलाओं को साक्षर बनाने के लिए राष्ट्रिय महिला साक्षरता मिशन की स्थापना की जाएगी। यह सभी कार्य 100 दिन में पूरे किए जाने का संकल्प है। पंचायतो को सशक्त बनाना पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का सपना था तथा उसमें महिलाओं की सशक्त भागीदारी सुनिश्चित करना संप्रग सरकार का संकल्प है। वर्तमान में महिलाओं को पंचायतों में 33 फीसदी आरक्षण है, परन्तु वर्तमान में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 42 फीसदी हो चुका है। सरकार संशोधन करके महिलाओं को 50 फीसदी सीटें देना चाहती है। देखा गया है कि सत्ता हाथ में आते ही महिला प्रतिनिधियों ने अपने अधिकारों को पहचाना और वे सामान्य विकास के साथ गांव के सामाजिक मुद्दों में मुखर साबित हुई है। इस प्रकार से ये संस्थाएं जो पहले समाज के प्रभुत्ववर्ग की बपौती होती थी, वे ग्राम पंचायत की इकाई बनती दिखाई दे रही हैं। इस तरह महिलाओं के आने से, जिनमें निचले वर्ग की महिलाएं भी शामिल थी, ने सामाजिक न्याय की अवधारणा को पंचायती राज के द्वारा साबित किया। बिहार के कटिहार जिले के एक भिखारिन हलीमा खातून ने किराड़ा पंचायत के चुनाव में विजयी होकर पंचायती राज के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा,कि अगर फटेहाल जिंदगी से बेहाल लोग जब किसी कार्य को करने की ठान ले, तो कोई ताकत भी उनको नही रोक सकती है, इसी तरह उत्तर प्रदेश में गाजीपुर जिले में 60 फीसदी महिलाओं को पंच निर्वाचित किया गया। जहांतक संसद और विधानमंडलों में महिलाओ के आरक्षण का प्रश्न है। तो यह समय संप्रग सरकार के लिए अनुकूल है। मुख्य विरोधी दल भाजपा सहित वाम मोर्चा उसके साथ है। इस विधेयक में आमूलचूल परिवर्तन की बात कहने वाले मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव अब उतनी मजबूत स्थिति में नहीं कि वह महिलाओं को आरक्षण से रोक पाएं। लेकिन इसका पास होना इतना आसान नहीं है। इस संदर्भ में इस विधेयक के विरोधियों के पक्ष को सहज खारिज नहीं किया जा सकता। विरोधियों की इस बात में दम है कि कानून पास होने से केवल संभ्रांत और ताकतवर परिवार की महिलाओं को ही इसका लाभ मिलेगा। दलित, पिछड़ी व अल्पसंख्यक महिलाएं इससे महरूम रहेंगी। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता कि आज भी मजबूरी में पार्टियां दलितों और पिछड़ों को टिकट देती हैं। इसके साथ यह भी तथ्य है कि रिजर्व सीट से कितनी महिलाओं को दलों ने अपना प्रत्याशी बनाया। क्या यह हकीकत नहीं है कि महिलाओं के नाम पर संसद और विधायिका में नेताओं के परिवार की महिलाएं अथवा उनकी प्रेमिकाएं ही चुनकर आती हैं। पार्टी की आम कार्यकर्ता महिला नहीं। यही स्थिति स्थानीय निकायों में हो रही है। जहां महिला रिजर्व सीट है। वहां काबिज प्रतिनिधि अपने परिवार की महिला को ही टिकट दिलवाते हैं। सरकार ने वादा किया है कि वह राष्ट्रिय महिला साक्षरता मिशन का गठन करेगी और महिलाओं को साक्षर बनाने संकल्प पूरा करेगी। सवाल इस बात का है कि क्या महिलाओं को वर्तमान प्रशासनिक मशीनरी के द्वारा साक्षर बनाया जाएगा अथवा सरकारी अनुदान को हजम करने में माहिर एनजीओ द्वारा साक्षर बनाया जाएगा। क्या फर्जी आंकड़ों के द्वारा साक्षरता का लक्ष्य पूरा होगा। इस बारे में यूपीए सरकार को सोचना होगा। केन्द्रीय नौकरियों में महिलाओं की कम भागीदारी पर चिंता व्यक्त करते राष्ट्रपति ने कहा कि वह उन्हें उचित प्रतिनिधित्व देगी। लेकिन सच्चाई यह है कि सरकारी नौकरियां धीरे-धीरे कम हो रही हैं। कम्प्यूटर और आउटसोर्सिंग के कारण वैसे ही सरकारी नौकरियों का अकाल है। बैंको सहित सरकारी प्रतिष्ठानों का अधिकांश कार्य ठेके पर हो रहा है। दूसरी ओर देश में करोड़ों बेरोजगारों की सेना है। यह बात समझ से परे है कि वह कैसे केन्द्रीय सेवाओं में महिलाओं को उचित भागीदारी देगी। देखते है आखिर मनमोहन की सरकार महिलाओं को कैसे मोहती है ?

2 टिप्‍पणियां:

  1. Swal mahila aur purush ka nahi hai balki uske chritr ka hai .sansad ya janprtinidhi jo bhi bane chahe wah garib ho,amir ho ya mahila ho uska chritrwan hona bahoot jaroori hai.Aaj hamara loktntr chritr hinta ke sabse bure dour se gujar raha ha,hame jakruk aur satrk rahne ki aawashykta hai.

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  2. राजस्‍थान में भी स्‍थानीय निकायों में 50 प्रतिशत महिलाओं का आरक्षण है।

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