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गुरुवार, 10 जून 2010

कठिन होगी डगर इंग्लैंड की

विलायत अर्थात् ब्रिटेन जाना उसके गुलाम रहे देशों के नागरिकों की अन्तिम और पहली इच्छा होती है कि वह वहां जाये। वहीं रहे और उनकी तरह अथाह पैसा कमाये। इसके लिए उन्हें अगर शादी का सहारा लेना पड़े तो भी कुछ गलत नहीं है। वहां का निवासी बनने के लिए इन देशों के नर-नारी ब्रिटिश नागरिकों से शादी करके वहां रहने का स्थायी बंदोवस्त कर लेते हैं। यह दूसरी बात है कि कुछ शादियां वास्तव में निस्वार्थ भाव से होती हों लेकिन अधिकांश शादियों में यह मंशा साफ झलकती है कि चलो विलायत के नागरिक बन कर ऐश करेंगे। पिछले वर्ष लगभग 50 हजार भारतीय शादी करके वहां गये थे। अब शादी के नाम पर कोई वहां बस नहीं सकेगा। वस्तुतः शादी एक पवित्र रिश्ता है लेकिन जब वह व्यापार में बदल जाता हो। किसी देश को परेशान करता हो तो निश्चित है कि वह लम्बे समय तक सरकार की निगाहों से बच नहीं सकता। ब्रिटेन में बढ़ते आब्रजन को रोकने के लिए आखिर ब्रिटिश सरकार को कड़ा कदम उठाना ही पड़ा। वहां की गृहमंत्री टेरेसा ने घोषणा की है कि अब ब्रिटिश नागरिकों से शादी करने वालों को अंग्रेजी की लिखित व मौखिक परीक्षा देनी होगी। इस कड़ी परीक्षा में पास होने पर ही शादी के नाम पर वहां जाने वाले पति-पत्नियों को वहां रहने की अनुमति मिलेगी। यह परीक्षाएं हिंदुस्तान में होने वाली परीक्षाओं जैसी निश्चित रूप से नहीं होंगी। जहां ठेके पर पास होने की गारंटी है। इस परीक्षा में कामचलाऊ अंग्रेजी से काम नहीं चलेगा अपितु धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने व अंग्रेजी साहित्य के जानकारी भी होनी चाहिए। ब्रिटेन सरकार के इस कदम से वहां शादियों के नाम पर होने वाला आब्रजन रुकेगा और विलायत जाने का गुलाम देशों के नागरिकों का सपना टूटेगा। वहां की सरकार का मानना है कि शादी के नाम पर उनके मुल्क में आने वालों से उनकी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उनकी सारी जिम्मेदारी सरकार की हो जाती है। वहां बढ़ते प्रवासी लोगों से ब्रिटेन के मूल निवासियों में काफी आक्रोश है जिसकी झलक एशियाई लोगों पर नस्लीय हमलों के रूप में देखी जाती है। अब भारत सहित अन्य एशियाई देशों के नागरिकों को समझ लेना चाहिए कि वहां रहने के लिए अब शादी का सहारा नहीं चलेगा अपितु उन्हें अंग्रेजी में कड़ी परीक्षा पास करके ही विलायत में रहने की अनुमति मिलेगी। इससे बहुत से युवा-युवतियों के सपने टूटेंगे। हो सकता है कि वहां आयोजित होने वाली परीक्षाओं के लिए भारत सहित अन्य देशों में मंहगे कोचिंग सेंटर न खुल जायें। इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि ग्लोबलाइजेशन और उदारीकरण के बावजूद हर देश के मूल नागरिक अप्रवासियों को पसंद नहीं करते और उन्हें अपने हकों पर डाका डालने वाला मानते हैं।

1 टिप्पणी:

  1. परीक्षा तो कनाडा में भी देना होती है..लेकिन वो ऐसी भी नहीं होती कि पास न हो पाये...इमिग्रेन्ट ही इनकी अर्थव्यवस्था के आधार हैं.

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