क्रांति का बिगुल
हम गीत प्यार के गाते हैं
क्रांति का बिगुल बजाते हैं
हम परिवर्तन के अग्रदूत
पानी में आग लगाते हैं
जब जब धरती का मान गिरा
और बेबस का सम्मान गिरा
मर्यादा का चीर के दामन
जब भूखे का इमान गिरा
तभी शब्द का तरकश लेकर सत्ता से टकराते हैं
धर्म बना मानव का बंधन
स्वार्थ हुआ माथे का चन्दन
जहरीली पछुआ बयारों से
होता है बगिया में क्रंदन
काले मेघा कजरारे हम जीवन जल बरसाते हैं
हम हरिश्चंद हें सतयुग के
घटघट वासी राम हैं
गीता का सन्देश सुनाते
हमीं स्वयं घनश्याम हैं
मानवता हित जहर को पीकर स्वयं शंकर बन जाते हैं
जब हंस चले बगुले की चाल
और नफरत की जले मसाल
भाईचारे को दफनाकर
प्यार बने बाजारू माल
कबिरा की वाणी बन जग को हम फटकार लगाते हैं
हम काँटों के मीत पुराने
हर आंसू से प्रीत है
रमते जोगी बहते पानी
यही हमारी रीत है
मिटा विषमता के जंगल को प्यार का फूल खिलाते हैं
हम गुरुकुल हैं संदीपनी के
और कौशल में बलराम हैं
इस सरसती के जीवनदाता
हमीं सुबह और शाम हैं
अंधकार की मिटा कालिमा सूरज हमीं उगाते हैं
waah josh bhari rachna...bahut khoob...
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