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शनिवार, 15 मई 2010

न्यायपालिका में होगी ईमानदारी की पूजा

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के.जी. बालाकृष्णन ने अपनी सेवानिवृति से पूर्व दिये
अपने वक्तव्य में यह स्वीकार किया कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है लेकिन अधिक नहीं है। उनकी
इस स्वीकारोक्ति से स्पष्ट है कि हमारे न्याय के मंदिर भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। भ्रष्टाचार कम हो
अधिक यह चिंतनीय तो है ही। वैसे हमारे कई न्यायमूर्ति संदेहों के घेरे में आए हैं और कुछ के
खिलाफ जांच भी चल रही है। एक और न्यायपालिका में मुकदमों का अम्बार है तो दूसरी ओर
भ्रष्टाचार के कारण इसकी गरिमा धूमिल हो रही है। इस परिवेश में नवनियुक्त न्यायमूति एचएस
कपाड़िया ने यह कहकर कि ईमानदारी उनकी सबसे बड़ी सम्पत्ति है। और उन्होंने अपना कैरियर
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में आरंभ किया है। यह निश्चित रूप से शुभ संकेत है। लगता है कि
अब न्यायपालिका में होगी ईमानदारी की पूजा का दौर आरंभ होगा।
भ्रष्टाचार का मुख्य कारण न्याय में देरी है। यही कारण है कि वादकारियों को सुविधा शुल्क देने के
लिए विवश होना पड़ता है। इस देश में देर से निर्णय अथवा जल्दी से निर्णय के लिए भी धन खर्च
करना पड़ता है। अगर हर मुकदमें के निर्णय के लिए निर्धारित अवधि तय कर दी जाये तो निश्चित
रूप से भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा सकता है। अफसोस इस बात का है कि यहां हर फाइल वनज
से ही आगे बढ़ती है। लेकिन जब समाज के सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार फैला हुआ है। तो फिर न्यायपालिका से ही ईमानदारी की क्यों उम्मीद की जाती है। इस क्षेत्र में भी समाज के लोग ही आते हैं। जब समाज ईमानदार होगा तो निश्चित रूप से हमारी न्यायपालिका को ईमानदार होने से कोई रोक नहीं सकता। न्यायपालिका से भ्रष्टाचार मिटाने से जरूरी है। पूरे समाज को उससे मुक्त किया जाए। भ्रष्टाचारविहीन समाज में ही ईमानदार न्यायपालिका पनपती है।
ईमानदार न्यायपालिका के लिए जरूरी है कि बदलते परिवेश में न्यायधीशों की आचार संहिता की
समीक्षा की जानी चाहिए। राजनैतिक दवाब में हमारी न्यायपालिका निश्चित रूप से है। वास्तविकता
यह है कि जब पूर्व न्यायधीश सांसद, विभिन्न आयोगों के चेयरमैन बनेंगे तो निश्चित रूप से उन्हें
राजनैतिक लोगों से संबंध बनाने होंगे। अतः सेवानिवृत न्यायाधीशों को न तो सांसद बनाया जाना
चाहिए और न ही उन्हें किसी जांच आयोग का अध्यक्ष बनाना चाहिए। तभी हमारी न्यायपालिका
पूर्वाग्रहों से रहित और निस्वार्थ हो सकती है। भ्रष्टाचार मिटाने के लिए न्यायपालिका की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव होना चाहिए। वर्तमान कालेजियम से इसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है। उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के लिए विशेष बोर्ड बनना चाहिए जिसमें देश के प्रधानमंत्री, लोकसभा के स्पीकर, विपक्ष के नेता तथा देश के प्रख्यात कानूनविद हों। इसी प्रकार प्रदेश के मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता,विधानसभा के स्पीकर सहित प्रमुख कानूनविद इसमें होने चाहिए जिससे न्यायपालिका निर्भीक और निष्पक्ष होकर अपने दायित्व का निर्वाह करे।
न्यायपालिका में आई गिरावट का एक कारण आये दिन अधिवक्ताओं की हड़ताल है। जिससे
न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है। इसके कारण वादकारियों को कई समस्याओं का
सामना करना पड़ता है। इसका लाभ न्यायिक कर्मी भी उठाते हैं। मानती हैं कि न्यायपालिका में
आये दिन होने वाली हड़तालों पर रोक लगनी चाहिए। इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। इससे
मुकद्मों का शीघ्र निपटारा नहीं होता। अपनी सुनवाई जल्द कराने के लिए वादकारियों को
अतिरिक्त खर्च करने के लिए विवश होना पड़ता है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. मेरा न्यायपालिका से एक सवाल है:- आजतक में न्यायपालिका नें कितनी "बड़ी मछलियों" को "ठिकाने" लगया है?

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  2. बाबुओं के जरिए न्यायधीश पैसा खाते हैं। क्या किसी न्यायधीश में इतनी हिम्मत है कि सरे आम ऐलान कर दे कि बाबू को रिश्वत मत दो यदि मांगे तो मुझे बताओ। ईमानदार न्यायधीश भी हैं परंतु वो सिस्टम के साथ चलते रहते हैं। भ्रष्टाचार को रोकने हेतु कड़े कदम नही उठाते हैं। डरते हैं। ऊपरी न्यायालय के कुछ जज तो नीचे के न्यायधीशों पर अंग्रेजी का दबाव बनाकर धौंस जमाते रहते हैं। एक एक से बड़ी मछलियों के केस न्यायधीशों को संभालने पड़ते हैं, सरकार कितनी सुरक्षा उन्हे देती है? ऐसे में कोई ईमानदार कैसे बने रहे। जान जाने का डर तो सबको होता है।

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  3. मेरी भाषा थोड़ी कठोर रही है, इसके लिए क्षमा चाहूंगा। परंतु जो बातें लिखी हैं वो सत्य हैं।

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  4. न्यायपालिका का निडर और पारदर्शी होना बहुत जरूरी है / आशा तो हमें भी है की कभी न कभी तो बदलाव आएगा /

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