बिहार विधानसभा का चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है। वहां राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। चुनाव के समय किसी को बिहार के स्वाभिमान की याद आ रही है तो कोई जातीय समीकरणों के आधार पर सत्ता पाने के स्वप्न देख रहा है। विगत दिनों जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुजरात सरकार द्वारा कोसी बाढ़ पीड़ितों के लिए दी गई पांच करोड़ की सहायता राशि वापस करके एक नया मोर्चा खोल दिया है। जिस नरेन्द्र मोदी के साथ उन्होंने पंजाब में हाथ मिलाते हुए फोटो खिंचाया था। अब उसी फोटो से उन्हें एलर्जी हो रही है। उन्हें लगता है कि नरेन्द्र मोदी की छवि साम्प्रदायिक है। ऐसे में उन्हें विधानसभा चुनावों में मुस्लिमों का कोपभाजन बन सकता है। इसलिए वह अपने आक्रामक तेबरों को तार्किक आधार दे रहे हैं। उनकी यह भी मंशा है कि बिहार विधानसभा के चुनाव में नरेन्द्र मोदी और वरुण गांधी प्रचार के लिए नहीं आएं। लगता है कि नितीश अब आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। वह अपने को धर्मनिरपेक्ष छवि के नेता के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। लेकिन भाजपा अध्यक्ष गड़करी ने कहा है कि उनका जदयू से गठबंधन जारी रहेगा। चुनाव अभी दूर है। उनके इस बयान को पार्टी की आखिरी लाइन नहीं समझा जाना चाहिए। हो सकता है कि आसन्न चुनाव के समय भाजपा कोई अप्रत्याशित करवट ले। इसके समानांतर लालू-पासवान की जोड़ी भी इन चुनावों में अपना कायाकल्प देख रही है। भाजपा से अलग होने पर वोटों का विभाजन होगा। वह इस बात को भी जानते हैं कि जो दल अथवा गठबंधन भाजपा को हराने में सक्षम होगा। मुस्लिमों के वोट उधर ही पड़ेंगे। जहां तक कांग्रेस का सवाल है। वह भी अपनी बैसाखी तलाश रही है। कहने को तो उनके नेता यह आलाप दोहरा रहे हैं कि कांग्रेस बिहार में अपने बूते पर लड़ेगी। लेकिन वास्तविकता और है। कांग्रेस ने लोकसभा का चुनाव अकेले लड़कर देख लिया। उसका क्या हश्र हुआ। यह उसके नेता भली-भांति जानते हैं। इसीलिए वह जदयू-भाजपा की लड़ाई को गम्भीरता स ेले रही है। राहुल गांधी भी नीतिश सरकार का गुणगान कर चुके हैं। वैसे तो जदयू -भाजपा की मजबूरी है साक्षा चुनाव लड़ने की। अगर यह संभव न हुआ तो नीतिश कांग्रेस से हाथ मिला सकते हैं। जहां तक लालू-पासवान का सवाल है। वह पूरी ताकत के साथ बिहार चुनावों में रणनीति में व्यस्त हैं। वह नीतिश को साम्प्रदायिक घोंषित करके मुस्लिमों को अपने पाले में रखना चाहते हें। वैसे भी विगत माह हुए विधानसभा उपचुनावों में लालू-पासवान गठबंधन को आशातीत सफलता मिली थी। मायावती भी बिहार में पावं जमाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। अब देखना यह है कि बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम क्या होगा ?
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