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गुरुवार, 1 जुलाई 2010

भीषण गर्मी के लिए हम जिम्मेदार

डा. चन्द्रभान

आज समूचा देश भीषण गर्मी की आग में जल रहा है। आदमी तो आदमी पशु-पक्षी भी इस तपन से व्याकुल हो रहे हैं। अस्पतालों में लू से पीड़ित लोगों की भीड़ है। प्रातःकाल से ही शहरों में कर्फ्यू का माहौल बन जाता है। घर और बाहर, हर जगह उसे गर्मी की तपन झेलनी पड़ रही है। कोई प्रकृति को कोस रहा है तो कोई सूरज को उसकी तीव्रता के लिए लानत भेज रहा है।
वस्तुस्थिति यह है कि इस भीषण गर्मी के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं। हमने ही प्रकृति के साथ छेड़छाड की है। अपने विलासी और आरामदायक जीवन के लिए प्राकृतिक संसाधनों को प्रचुर मात्रा में दोहन किया है। हम भूल गए कि हमारी निरंतर गलतियां हमारे लिए काल का कारण भी बन सकतीं हैं। अपने स्वार्थ के लिए हमने हरे-भरे वृक्षों को काटकर कंक्रीट के जंगल उगा लिए हैं। नदी, तालाब और पोखरों को अपनी भूलिप्सा के लिए निगल लिया है। हम प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य से दूर भौतिकता की छांह में आश्रय ढूंढ रहे हैं।
मौसम में शीतलता के लिए पेड़ और तालाब बहुत जरूरी हैं। तालाबों से भूगर्भ स्तर बरकरार रहता है और उसकी नमी से आसपास पेड़ों को संजीवनी मिलती है। वृक्ष और तालाब, नदी अथवा पोखरों से तापमान में 3 सेंटीग्रेड की कमी की जा सकती है। लेकिन शहरीकरण व सड़कीकरण ने हमारे पेड़ों को निर्ममता से काट दिया है। मानव की जमीन की भूख इतनी बलवती हो गई है कि उसने तालाब और पोखरों को पाटकर अपने आशियाने बना लिए हैं। नदियों के पाट पर भी आवासीय कालोनियां आबाद हो रहीं हैं। जबकि तालाबा, नदी और पोखरों से पर्यावरण संतुलित रहता है। सूर्य की तपन को रोकने की उनमें क्षमता होती है। नदियां भी सूर्य के ताप को कम करतीं हैं। लेकिन नदियों के सूखने से उनकी बालू अधिक गर्मी दे रही है। इसके लिए हमने नदियों पर छोटे-छोटे बांध नहीं बनाये। जिससे पानी रुका रहे और वह सूर्य की तपन को रोक सके।
हमारे जीवन स्तर में जबर्दस्त परिवर्तन आया है। मिट्टी के मकानों की जगह सीमेंट और लोहे के मकान बनने लगे। घरों से कच्चे आंगन गायब हो गये। पहले मिट्टी के मकान होते थे। उनकी दीवारें काफी चौड़ी होती थीं। अतः गर्मी का असर कम होता था। कंक्रीट तो सूरज की धूप में तपकर जलता तवा सरीखा बन जाता है। यह मकान सूर्य के ताप को कई गुना करके मनुष्य को भीषण तपन ही प्रदान कर रहे हैं।
वातावरण में कार्बन डाईआक्साइड की प्रचुरता के कारण गर्मी बेतहाशा बढ़ रही है। जिस तरह पेटोल और डीजल वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है। उसी मात्रा में कार्बन डाईआक्साइड गैस का उत्सर्जन अधिक हो रहा है। यह गैस अंतरिक्ष में न जाकर उससे पहले एक परत बन जाती है। जिससे रात्रि में भी शीतलता नहीं होती। वैसे इस गैस से भी अधिक खतरनाक गेस है सीएफसी यानी क्लोरो-फ्लोरो कार्बन। यह गैस रेफ्रीजेरेटिंग सिस्टम के सभी उपकरणों में प्रयोग की जाती है। जिस तरह फ्रिज, वातानुकूलन सयंत्र और कोल्डस्टोरेज बढ़ रहे हैं। उससे गर्मी की तीव्रता कई गुना बढ़ गई है। सीएफएल गैस का प्रभाव कार्बन डाईआक्साइड गैस से 15800 गुना अधिक होता है। इन गैसों के प्रदूषित कण वायुमंडल में मंडराते रहते हैं जिससे गर्मी की भीषणता बढ़ रही है और रात्रि की शीतलता कम हो रही है। इन गैसों की भीषणता से सहज ही कल्पना की जा सकती है कि हम अपने विलासी जीवन की कितनी बड़ी कीमत अदा कर रहे हैं।
जीते-जी तो हम वायुमंडल को दूषित कर रहे हैं। मरने के बाद भी हम उसमें और अधिक वृद्धि कर जाते हैं। इस देश में रोज हजारों लोग मरते हैं। मुस्लिमों और ईसाइयों को छोड़ दे तो प्रत्येक शव के दाह संस्कार में लगभग 300 किलों लकड़ी जलायी जाती है। यह गीली लकड़ियां वायुमंडल को और अधिक विषैला बनाती हैं। हम अपने कथित धार्मिक संस्कारों के कारण विद्युत शवदाह गृहों को उपयोग नहीं करते। जब हमने ही अपनी और आने वाली पीढ़ियों के लिए विषैला वातावरण तैयार कर दिया है तो बेचारी प्रकृति को क्यों दोष दें ?
अगर हमें इस भीषण ताप से निजात पाना है तो अपने जीवन को संयमित करना होगा। अपने विलासी जीवन के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ बंद करनी होगी। तालाबों, नदियों व पोखरों पर अवैध कब्जों को हटाना होगा। अपने मकानों में कच्चा आंगन और छत पर अधिक से अधिक मिट्टी का इस्तैमाल करना होगा। कृषियोग्य भूमि को गैरकृषि कार्य के लिए इस्तेमाल बंद करना होगा। नदियों पर छोटे-छोटे बांध बनाने होंगे। वृक्षारोपण व उनके रखरखाब के लिए जनांदोलन छेड़ना होगा। अगर हम अब भी सावधान न हुए तो हमें गर्मी की ज्वाला में जलने से भगवान भी नहीं रोक पायेगा।

(लेखक प्रख्यात भूगोलविद् और आरबीएस कालेज के पूर्व विभागाध्यक्ष भूगोल रहे हैं)

2 टिप्‍पणियां:

  1. डा. चन्द्रभान जी का चिंतित होना बिल्कुल सही है । वास्तव में हम लोगों द्वारा प्रकृति के साथ की जा रही छेड़छाड़ का ही नतीजा है कि आज हम भीषण गर्मी की तपन से झुलस रहे हैं इसे रोकने को कोई कदम नहीं उठाया गया तो नतीजे और भी ज्यादा भयावह होंगे ।

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