वर्तमान समय मूल्यों के पतन का है। ऐसे समय में रचनाकारों का दायित्व बन जाता है कि वे अपने युगधर्म का निर्वाह करें। यह ब्लॉग रचनाधर्मिता को समर्पित है। मेरा मानना है- युग बदलेगा आज युवा ही भारत देश महान का। कालचक्र की इस यात्रा में आज समय बलिदान का।
गुरुवार, 1 जुलाई 2010
पद्मश्री डाक्टर लाल बहादुर सिंह चौहान क़ी रचनाएँ
डाक्टर चौहान संवेदनशील कवि और लेखक हैं। वह कई पुस्तकों के लेखक हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन साहित्य साधना और समाजसेवा में बीता है। उत्तर प्रदेश हिंदी संसथान पहले ही उन्हें विज्ञानं भूषण कि उपाधि से अलंकृत कर चुकी है। वह आगरा में जन्मे पहले साहित्यकार हैं जिन्हें पहली बार पद्मश्री कि उपाधि प्रदान कि गयी है। हालाँकि इससे पहले गोपाल दस नीरज और हरी शंकर शर्मा को भी पद्मभूषण मिल चुका हैं लेकिन वह मूलरूप से अलीगढ के निवासी थे। उन्हें इसी वर्ष भारत सरकार द्वारा पद्मश्री कि उपाधि से अलंकृत किया गया है।
यहाँ प्रस्तुत हैं उनकी कुछ रचनाएँ. उनका संपर्क फ़ोन ०९४५६४०२२७४e है।
युवक जाग
युवक जाग अपने वतन को बचाले
डसे जा रहे हैं इसे सर्प काले।
मूल्यवृद्धि गरीबी से है त्रस्त्र भारत
पड़े आदमी को है जीवन के लाले।
राष्ट्र पीड़ा
मनुज सेवा ही मेरा परम धर्म हो
प्राण कर दूँ निछावर वतन के लिए।
राष्ट्रभक्तों के कन्धों मेरी लाश हो
फिर तिरंगा वसन हो कफ़न के लिए।
शुभ घडी की प्रतीक्षा में अरसे से हूँ
काम आये मेरा तन अमन के लिए।
बुद्धिजीवी युवक वर्ग संभलो उठो
जाग जायो अब लुटते चमन के लिए।
नीलगगन के उड़ते पंछी
नीलगगन के उड़ते पंछी
मुझको अतिशय भाते हैं।
कहाँ-कहाँ से आते हैं ये
कहाँ-कहाँ उड़ जाते हैं।
सदा सैर को तत्पर रहते
लम्बी दौड़ लगते हैं।
श्रम से कभी न थकते दिखते
पंखों पर इठलाते हैं।
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सुन्दर लेखन।
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