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रविवार, 29 मई 2011


मंचों पर सुंदरता और गलेबाजी का बोलवाला - सोम ठाकुर
हिंदी मंच का एक ऐसा नाम जो 1953 से आजतक अपनी कविता की सुगंध बिखेर रहा है। छह दशक के बाद भी उनके गीतों में आज भी वही ताजगी और रवानगी बरकरार है। नीरज जी के बाद वही कवि सम्मेलन में मंचों के शहंशाह हैं। आज भले ही हास्य कलाकारों ने हिंदी मंच का अवमूल्यन किया हो लेकिन सोम ठाकुर ने अपनी रचनाओं में हिंदी की अस्मिता और जीवन के शाश्वत मूल्यों को आत्मसात किया है। उनकी रचनाधर्मिता के संदर्भ में जनसंदेश टाइम्स की ओर से डॉ. महाराज सिंह परिहार इस प्रख्यात गीतकार से रूबरू हुए।

आप कई दशकों से हिंदी मंच पर हैं। क्या परिवर्तन देखते हैं आप पहले की अपेक्षा अब के हिंदी मंच पर ? क्या कारण रहा आपका काव्य मंचों से जुड़ने का।

पहले से आमूलचूल परिवर्तन आया है कवि सम्मेलनी मंच पर। पहले कविता पढ़ी जाती थी तो कवि को नाम मात्र का पारिश्रमिक मिलता था लेकिन आज मंचों पर भरपूर पैसा है। मेरा मंचों पर आने का प्रमुख कारण आर्थिक रहा। मेरे चार पुत्रियां और दो पुत्र थे जिनका अच्छा पालन-पोषण कालेज की प्राध्यापकी नौकरी में संभव नहीं था। उन दिनों डिग्री कालेज की नौकरी से अधिक पारिश्रमिक कवि सम्मेलनों में मिलता था। इसीलिए मैंने पहले आगरा कालेज, फिर सेंट जौंस कालेज तत्पश्चात नेशनल पोस्ट डिग्री कालेज भोगांव में हिंदी विभागाध्‍यक्ष की नौकरी छोड़कर काव्य पाठ को अपने जीवन-यापन का माध्यम बनाया।

आपको कोई अफसोस है कि आपने प्रोफेसरी के स्थान पर काव्य पाठ को ही अपना कैरियर बनाया?

नहीं, मुझे कोई अफसोस नहीं अपितु गर्व है कि मैंने कविता को ही अपना कैरियर बनाया। देश में अब तक लाखों डिग्री कालेजों के शिक्षक हैं लेकिन क्या किसी को सोम ठाकुर जैसी अपार लोकप्रियता मिली है। इसी कविता ने मुझे राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाई। महामहिम राष्ट्रपति और महामहिम राज्यपाल से सम्मानित कराया। देश-विदेशों का भ्रमण कराया। मैं प्रोफेसर सोम ठाकुर की अपेक्षा कवि सोम ठाकुर के रूप में गर्व और आनंद का अनुभव करता हूं।

कवि सम्मेलनों में कैसी रचनाएं पसंद की जाती हैं। क्या अच्छा रचनाकार मंचों पर वाह-वाही बटोर सकता है?

वास्तविकता यह है कि मंचों पर ब्रांड नेम ही चलते हैं, अच्छी रचनाएं नहीं। मंचों पर मशहूर ब्रांड नेम के कवियों को ही बुलाया जाता है और उन्हें ही भरपूर पारिश्रमिक दिया जाता है। बड़ा मुश्किल है किसी नवोदित रचनाकार का मंचों पर जम जाना। यहां भी स्थिति लेखक, पत्रकारों जैसी है। खुशवंत सिंह, कुलदीप नैयर कुछ भी लिखें, हर अखबार छापता है लेकिन नवोदित प्रतिभावान लेखकों को वह सम्मान नहीं मिलता।

क्या कारण है कि हिंदी मंचों से साहित्यकार विदा हो गये हैं और उनके स्थान केवल मंचीय कवियों ने ले लिया है ?

हां, यह सच्चाई है। पहले रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंशराय बच्चन, पंत, निराला और मैथिलीशरण गुप्त जैसे साहित्यकार मंचों पर काव्यपाठ करते थे लेकिन अब वह स्थिति नहीं है। अब मंचों पर भोंडा हास्य व द्विअर्थी तथाकथित कविताओं का बोलवाला होता जा रहा है। कविता साहित्य से हटकर विशुद्ध मनोरंजन में बदलती जा रही है।

हिंदी मंच की गिरावट के लिए कौन जिम्मेदार है। आखिर
इस
गिरावट से कैसे निपटा जा सकता है।

निश्चित रूप से मंच की गिरावट के लिए संयोजक जिम्मेदार हैं। वहीं विशुद्ध मनोरंजन करने वाले कवियों को बुलाते हैं। लेकिन इसके लिए संयोजकों की भी मजबूरी है। कवि सम्मेलन के लिए अधिकांश ऐसे पूंजीपति पैसा देते हैं जिनका साहित्य से कोई सरोकार नहीं होता और न ही समझ। उन्हें खुश करने और उनका मनोरंजन के लिए ही संयोजक को समझौता करना पड़ा है।

मंचों पर अधिकांश आकर्षक और सुंदर चेहरे-मोहरे वाली कवयित्रियों का ही बोल वाला रहा है। वरिष्‍ठ कवियों की अपेक्षा अनुभवी कवयित्रियां दिखाई नहीं पड़तीं?

महिलाओं का काव्य पाठ करना एक तरह से विजुअल आर्ट है। हर दर्शक आकर्षक और जवान महिला को देखना चाहता है। वैसे भी मंचों पर अधिकांश महिलाएं अपकी आकर्पक देहाष्ठि व गलेवाजी के कारण हैं। उनमें लेखन की प्रतिभा: नगण्य होती है। अधिकांश नामचीन कवि ही ऐसी काव्य गायिकाओं को प्रमोट करते हैं।

क्या कवि के लिए वैचारिक प्रतिवद्धता आवश्यक है अथवा मात्र लेखन ?

बिना वैचारिक प्रतिवद्धता के लेखन निठल्ला
चिंतन में बदल जाता है। लेखन के माध्यम से ही एक रचनाकार एक नये संसार का सृजन करता है और उसे अपने शब्दों के माध्यम से परवान चढ़ाने का निरंतर प्रयास करता है। जहां तक मेरा लेखन है, वह समाजवाद की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है।

जनसंदेश टाइम्स के पाठकों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे ?

प्रदेश में तेजी से उभरता जनसंदेश टाइम्स निश्चित रूप से हाशिये पर पहुंचा दिये गये साहित्य और संस्कृति को प्रमुखता प्रदान कर रहा है, यह वर्तमान दौर में मीडिया के गिरावट के दौर में अच्छी शुरूआत है। यह पत्र साहित्य और जीवन के शाश्वत मूल्यों को प्रोत्साहित करे तथा नागरिकों को सुसंस्‍कृत करने का प्रयास जारी रखे। आज के भैतिकवादी युग में जब मूल्यों का स्थान स्वार्थपरता ने ले लिया है, ऐसे विषम समय में समाज का सही मार्गदर्शन करना ही किसी अखबार के लिए बडी चुनौती होता है।

सोम ठाकुर का पता
अहीर पाडा, राजा की मंडी आगरा मोबा. 9412255604

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