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शनिवार, 24 अप्रैल 2010

राहुल का 2012 मिशन

उत्तर प्रदेश की राजनीति फिर गर्मा रही है। कांग्रेस ने खोये हुए आधार को वापस लाने के लिए अपने युवराज राहुल को मैदान में उतार दिया है। हालांकि वह लोकसभा चुनाव से पहले ही प्रदेश में सक्रिय हो गये थे। इससे कांग्रेस को सफलता भी मिली। अब राहुल गांधी का मिशन 2012 पूरे शबाव पर है। वह पूरे प्रदेश का दौरा कर रहे हैं। अभी उन्होंने 14 अप्रेल को अकबरपुर से पूरे प्रदेश के लिए यात्रा रैलियों को हरी झंडी दिखाई। वह बुंदेलखण्ड की बदहाली पर नौ-नौ आंसू बहा रहे हैं। वह लगातार प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लेने का कोई भी मौका नहीं चूक रहे। जातिवादी और धर्मवादी राजनीति के विपरीत विकास की राजनीति की वकालत करके उन्होंने निश्चय ही एक नया राजनीतिक खाका खींचने की कोशिश की है। वह केन्द्रीय धन की बर्वादी और अनुपयोग के लिए लगातार बसपा सरकार पर हमका बोल रहे हैं। मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार रोकने के लिए उन्होंने पार्टी की टास्क फोर्स भी बनाई है। वह युवाओं को राजनीति में आने का आह्वान कर रहे हैं। पर वह इस हकीकत को भूल जाते हैं कि आज की राजनीति साधन-संपन्न लोगों की रह गई है। संगठन में पद का मामला हो अथवा लोकसभा और विधानमंडलों में टिकिट देने का, प्रत्याशी की माली हालत देखी जाती है। उसकी साधन संपन्नता देखी जाती है। ऐसे में क्या निर्धन और साधनविहीन युवा कांग्रेस से जुड़ेंगे जिनकी संख्या करोड़ों में है। फिर युवा भी इतना बेवकूफ नहीं है कि राहुल की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ जाये और जिंदगी भर पार्टी की दरी बिछाता रहे और अपने नेताओं की जिंदाबाद तथा विपक्षियों की मुर्दाबाद करता रहे। अतःराहुल की राह निरापद नहीं है। प्रदेश में पार्टी का जो मौजूदा संगठन में उसमें जंग लग चुका है। निरंतर सत्ता में रहने के कारण वह सड़क की राजनीति के लिए लगभग बेकार साबित हुए हैं। केन्द्र में सरकार होने के कारण प्रदेश के अधिकांश नेता सत्ता की मलाई चाटने में लगे हैं। गणेश परिक्रमा का दौर जारी है। उ.प्र. के हर शहर और जिले में गिनती के कांग्रेसी नजर आते हैं। वह भी आम जनता से दूर दलाली और भूव्यापार में लिप्त हैं। अभी राहुल ने प्रदेश के जिला संगठन पर नजर रखने के लिए समन्वयक नियुक्त किये हैं। उन समन्वयकों के नाम देखकर नहीं लगता कि वह पार्टी को आंदोलन की पार्टी बना पायेंगे। इन जिला समन्वयकों में अधिकांश भूमाफिया अथवा नवधनाढ्य लोग हैं। वह अपनी तिकड़म और पैसे के बल पर जिला कोर्डीनेटर बने है। जमीनी स्तर के किसी कार्यकर्ता को इस लायक नहीं समझा गया। राहुल गांधी का मिशन केवल साधन संपन्न लोगों के जुड़ने से पूरा नहीं होगा। उन्हें जमीनी कार्यकर्ताओं को दल की बागडोर सौंपनी होगी। बुद्धिजीवियों का भरोसा जीतना होगा। जिस कांग्रेस कल्चर की वह बात करते हैं। उसे यथार्थ में परिणित करना होगा अन्यथा उनका मिशन अधूरा ही रहेगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या राहुल प्रदेश और जिला तथा शहर संगठनों में इतना आमूलचूल परिवर्तन कर पायेंगे। संगठनों पर दशकों से कुंडली मारकर बैठे नागों को नाथ पायेंगे ? वैसे भी बसपा के जनाधार में गिरावट के कोई संकेत नहीं हैं। वहीं सपा भी पूरे जोश के साथ प्रदेश में अपनी स्थिति को मजबूत करने में लगी है। राहुल जिस जातिवादी राजनीति के परिवर्तन की बात कह रहे हैं। वह इतना आसान नहीं है। जब तक रोटी-बेटी जाति में होती रहेगी, कोई भी जातिवाद को नहीं तोड़ सकता। इसके बावजूद उनके प्रदेश और राष्टीय स्तर के नेता जातिवादी सम्मेलन में शिरकत करके उनके विकास की राजनीति की हवा निकाल रहे हैं। यह पाखंड चलने वाला नहीं है। दूसरा मुख्य कारण यह है कि प्रदेश में ऐसा कोई करिश्माई, चरित्रवान और ईमानदार कोई नेता नहीं है जिसपर प्रदेश की जनता विश्वास कर ले। राहुल गांधी की इमेज भी अपने पिता राजीव की तरह मिस्टर क्लीन की है। लेकिन कालांतर में राजीव गांधी को भ्रष्टाचार की कालिख पोतने में विरोधियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रचंड बहुमत होते हुए भी उन्हें सत्ताच्युत होना पड़ा। क्या राहुल अपनी राजनीति में सफल होंगे और प्रदेश में नया इतिहास लिखेंगे अथवा वोट की राजनीति की नौटंकी करते ही रह जायेंगे।

2 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लिखा है। लिखते रहिए।

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  2. बेहतर होगा कि अपनी रुचि साहित्य के अनुसार उसी धरातल पर बने रहें,हर प्लेटफार्म पर कूदने से कुछ भी हाथ नहीं लग पाता।

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