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शुक्रवार, 4 जून 2010

पाकिस्तान का बदलता नजरिया


पाकिस्तान के राष्टपति का मानना है कि भारत के साथ युद्ध उनके एजेंडे में कतई नहीं है। वह शंति से आपसी मतभेदों को समाप्त करना चाहते हैं। वह लोकतंत्रवादी तथा उदारवादी है। वह पाकिस्तान में लोकतंत्र को मजबूती देने में जुटे हुए हैं। उनकी निगाह में युद्ध किसी समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। पाकिस्तान का यह बदलता नजरिया उसके पूर्व नेताओं के एकदम विपरीत है। अधिकांश पाक सत्ताधीशों की कुर्सी भारत विरोध पर टिकी रही। लेकिन लगता है कि जरदारी ने सच्चाई को स्वीकार कर लिया है। तानाशाही और फौजी शासन की बहुत कड़ी कीमत पाकिस्तान के अवाम को भुगतनी पड़ी है। वैसे भी बदलते वैश्विक परिवेश में पाक नहीं चाहता कि वह अलग थलग पड़ा रहे। देश के चतुर्दिक विकास के लिए लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने में ही पाक की भलाई है। आतंकियों के प्रति भी पाक के नजरिये में आमूलचूल परिवर्तन इस कारण भी हुआ है कि वह खुद आतंकवाद की आग में जल रहा है। लोकतांत्रिक ताकतों को मजबूती देकर ही पाकिस्तान के अस्तित्व को बचाया जा सकता है। पाकिस्तान के नेताओं की करनी-कथनी में कितना अंतर है। यह तो भविष्य ही बताएगा।

लोकतंत्र व उदारवादी चेहरा मजबूरी
पाक का लोकतंत्रवादी और उदारवादी चेहरा वस्तुत पाकिस्तान की मजबूरी है। मानसिक रूप से पाकिस्तान संभवतः अभी भी तैयार नहीं है। वहां आतंकियों की समानांतर सरकार चल रही है। बेनजीर भुट्टों का आतंकी हमले में मारा जाना इस ओर संकेत करता है कि आंतकवाद की आग में झुलस रहे पाक के सामने लोकतंत्र के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है। पाक के लिए यही उचित होगा कि वह अपने यहां लोकतंत्र को मजबूत करे।

भरोसे लायक नहीं है पाक
पाकिस्तान भले ही लोकतंत्र की दुहाई दे रहा है। लेकिन उसका अतीत किसी से भी छिपा नहीं है। सत्ताधीशों ने हमेशा हमारी पीठ पर वार किया है और मुंह की खाई है। वहां की आक्रामक मानसिकता ने ही पाक में लोकतंत्र की हत्या की है। पाक को पहले भरोसा कायम करना होगा। सेना को सरकार से अलग स्वतंत्र सत्ता बनाने से रोकना होगा। तभी पाक में लोकतंात्रिक शक्तियां मजबूत हो सकती हैं।

बदल रहा है पाकिस्तान
इस सत्य से पाकिस्तान रूबरू हो चुका है कि लड़ाई किसी भी समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। उसे भी भारत की भांति भूख, गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी से लड़ना है। पाक की वर्तमान पीढ़ी विकास चाहती है। और विकास लोकतंत्र में ही निहित है। तानाशाही से विकास का मार्ग अवरुद्ध होता है। अच्छा है कि पाक बदल रहा है। अगर पाक में लोकतांत्रिक शक्तियां मजबूत होंगी तो भारत भी चैन की सांस ले सकेगा।

खत्म होनी चाहिए आपसी नफरत
बहुत हो चुका। अब और जरूरत नहीं है भारत और पाकिस्तान को आपस में नफरत करने की। मिलजुल कर ही दोनों देश अपना विकास कर सकते हैं। यह अच्छा है कि पाक सुप्रीमों जरदारी लोकतंत्र के नये हिमायती के रूप में उभरे हैं। उन्हें अपनी करनी को यथार्थ में बदलना होगा। दोनों देशों की आपसी नफरत से काफी खून बहा है। हमें मिलजुलकर मूलभूत समस्याओं से जंग करनी है।

आतंक-खात्मे के बिना लोकतंत्र असंभव
अगर पाक को लोकतंत्र अपने यहां वास्तव में मजबूत करना है तो उसे आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक संघर्ष करना होगा। आतंक की जमीन पर लोकतंत्र का पौधा पनप नहीं सकता। पाक में सेना की सर्वोच्चता समाप्त करनी होगी तथा आईएसआई पर लगाम लगानी होगी। जब तक पाक में सेना मजबूत है। वहां लोकतंत्र की मजबूती असंभव है। इस सचाई से पाक सुप्रीमों जरदारी बच नहीं सकते।

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