जश्न-ए-आजादी
जश्न मन रहा आजादी का मेरे भारत देश में
बगुले भी मुस्तैद खड़े हैं अब हंसों के वेश में
मिटी गरीबी ना भारत की
केवल मिटा गरीब है
लूटा देश स्वार्थ की खातिर
जो सत्ता के करीब हैं
जीवन की मुस्काने छीनी
छीना बचपन बाल का
त्ंादूरों में हर महिला है
रूठा यौवन लाल का
घोटालों की घिरी कालिमा अब सारे परिवेश में
बगुले भी मुस्तैद खड़े हैं अब हंसों के वेश में
लुच्चे चोर दलालों का ही
केवल यहां सम्मान है
नैतिकता को देदी फांसी
सत्य गया श्मशान है
कदम कदम पर रिश्वतखोरी
और भ्रष्टों की खान है
ईमान यहां बिकता टुकड़ों में
अंधा हुआ विधान है
अमर तिरंगा शरमाता है आपस के विद्वेष में
बगुले भी मुस्तैद खड़े हैं अब हंसों के वेश में
जग जवानी जाग देश की
तुझे वतन की आन है
परिवर्तन का बिगुल बजादे
यही तुम्हारी शान है
सच्चाई का शंखनाद कर
भ्रष्टों को ललकार दो
रोटी कपड़ा दो जन-जन को
सबको प्यार दुलार दो
फिर फुदके सोने की चिड़िया सारे देश विदेश में
बगुले भी मुस्तैद खड़े हैं अब हंसों के वेश में
अच्छी रचना. साधुवाद,
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