सांसदों की वेतन वृद्धि के मामला जनमानस में चर्चा का विषय बना हुआ है। अधिकांश लोग कहते हैं कि इनके पास अकूत पैसा है फिर इन्हें अपनी तनख्वाह बढ़वाने की क्यों पड़ी है। गरीब जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले इन सांसदों को आम जनता की बेवसी का तो ख्याल रखना चाहिए और सादगी तथा त्याग का परिचय देना चाहिए। दरअसल वास्तविकता यह है कि विगत कई दशक से हमारे जनप्रतिनिधियों की छवि आम जनता में अच्छी नहीं है। अधिकांश तो भ्रष्ट है और अधिकाधिक सदस्य करोड़पति। लेकिन लोग भूल जाते हैं कि देश सभी सांसद भ्रष्ट और धनी नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि कुछ सांसद तो इतने ईमानदार है कि वह विरासत में अपने परिवार के लिए एक अदद पक्का मकान भी नहीं छोड़ कर जाते। वाम दलों के सांसदों का पूरा वेतन पार्टी फंड में जमा होता है और वह केवल महंगाई व दैनिक भत्तों से ही अपना तथा अपने परिजनों की गुजर-बसर करते हैं। वह पूरे चैबीस घंटे जनता की सेवा में रहते है। उन्हें अपने से मिलने वालों को चाय-नाश्ता तथा आवश्यकता पड़ने पर खाना भी खिलाना पड़ता है। हां यह वेतन वृद्धि उन सांसदों के लिए कोई महत्व नहीं रखती जो पूंजीपति हैं। फिल्म स्टार हैं अथवा अन्य धंधों से जुड़े हुए हैं। इस संदर्भ में लोकसभा में लालू प्रसाद यादव का यह बयान भी गौर करने वाला है कि महंगाई के दौर में उन्हें भी अन्य लोगों की भांति अपनी वेतन वृद्धि की मांग करने का हक है। जो सांसद जनता से सीधे जुड़े अर्थात् लोकसभा के सदस्य हैं। उनकी अपने क्षेत्र की जनता के प्रति बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। जब उनके क्षेत्र के गरीब-गुरबा दिल्ली आते हैं तो इन सांसदों को उनके भोजन तथा किराये आदि का इंतजाम करना पड़ता है। हां जो हवा-हवाई नेता हैं। टेबल पाॅलिटिक्स करते हैं अथवा जुगाड़बाजी से राज्यसभा में पहुंच जाते हैं। उन लोगों पर जनता का प्रत्यक्ष दवाब नहीं होता। केवल राजनीति करने वाले सांसद के लिए वस्तुतः वर्तमान वेतन अपर्याप्त है। इस वेतन से वह ईमानदारी से अपने क्षेत्र के लोगों से न तो संपर्क रख सकते हैं और न ही उनकी आवभगत कर सकते हैं। एलीट वर्ग के मंत्रियों और सांसदों को शायद पता नहीं है कि जब दिल्ली में पूर्वांचल,बिहार, उड़ीसा, महाराष्ट और मध्यप्रदेश, झारखंड का आम आदमी आता है तो वह सांसद के निवास पर ही ठहरता है। वह सांसद को राजी-गैरराजी भोजन और चायपानी के लिए विवश कर देता है। कुछ जुझारू और गरीब मतदाता तो अपने सांसद से दिल्ली आने का किराया लेना अपना अधिकार और मजबूरी मानते हैं। जब देश में सभी की आय बढ़ रही है। व्यापारी कालाबाजारी करके अरबों कमा रहा है। नौकरशाही भ्रष्टाचार की गंगा में गोते लगा रहा है। तो सैद्धांन्तिक रूप से सांसदों की वेतन वृद्धि को अनुचित करार नहीं दिया जा सकता।
वर्तमान समय मूल्यों के पतन का है। ऐसे समय में रचनाकारों का दायित्व बन जाता है कि वे अपने युगधर्म का निर्वाह करें। यह ब्लॉग रचनाधर्मिता को समर्पित है। मेरा मानना है- युग बदलेगा आज युवा ही भारत देश महान का। कालचक्र की इस यात्रा में आज समय बलिदान का।
शुक्रवार, 20 अगस्त 2010
देश के सांसदों की वेतन वृद्धि
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