वर्तमान समय मूल्यों के पतन का है। ऐसे समय में रचनाकारों का दायित्व बन जाता है कि वे अपने युगधर्म का निर्वाह करें। यह ब्लॉग रचनाधर्मिता को समर्पित है। मेरा मानना है- युग बदलेगा आज युवा ही भारत देश महान का। कालचक्र की इस यात्रा में आज समय बलिदान का।
मंगलवार, 13 अप्रैल 2010
छलावे के ६३ साल
शिक्षा अधिकार कानून देश में लागू हो गया है। यह योजना या कानून भी कागजों पर दम तोड़ देगा। इस बात की क्या गारंटी है कि निजी स्कूलों में गरीबों के लिए २५ फीसदी स्थान आरक्षित किये जायेंगे। पहले से ही भारी भरकम मुनाफे का शिक्षा उद्योग और अधिक मुनाफा कमाएगा। जब से शिक्षा का निजीकरण किया गया है इसकी गुणवत्ता में काफी गिरावट आई है। कभी इस शिक्षा जगत में दानवीर, समाजसेवी और विद्यानुरागी आते थे। अब तस्वीर बादल गयी है। विशुद्ध धन्धेबाज इस व्यापार में कूद पड़े हैं। देश के लगभग सभी निजी शिक्षा संस्थान सरकारी अनुदान, वजीफा, पुस्तकालय अनुदान, संसद और विधायक निधि को डकार रहे हैं। इस दुधारू धंधे में यह लोग आज करोड़ों और अरबों में खेल रहें हैं। एक साल में ही बी एड कालेज खोलने वालों ने खूब कमाई की है। अगर केन्द्रीय सरकार वास्तव में देश की शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाना चाहती है तो उसे क्रांतिकारी कदम उठाने होंगे। उसे पूरे देश में एक शिक्षा प्रणाली लागू करनी होगी। जिस स्कूल में गरीब, किसान, चपरासी के बच्चे पढ़ें उसी में सरकारी अधिकारियों, सांसदों, मंत्रियों के बच्चों की पढाई अनिवार्य करनी होगी। जब किसी सरकारी स्कूल में विधायक, संसद और सरकारी अधिकारियों के बच्चे पढेंगे तो उस स्कूल की शिक्षा अपने आप अच्छी हो जाएगी। लेकिन सरकार में बैठे अरबपति सांसद और मंत्री नहीं चाहते कि उनके बच्चे गरीबों के बच्चों के साथ पढ़ें। समूचे देश में समान शिक्षा व्यवस्था लागू कर दीजिये फिर देश में न तो दलितों को आरक्षण की जरूरत होगी और न ही पिछड़े वर्ग को। परन्तु ऐसा होगा नहीं। यह पूंजीवादी सरकार है जो समाजवाद का नारा तो दे सकती है पर उस पर अमल नहीं कर सकती। आज सरकारी अधिकारियों, सांसदों और विधायकों का स्कूल संचालकों के साथ गठजोड़ हो गया है। इस गठजोड़ की वजह से यह लोग अनाप शनाप कमाई कर रहें हैं। देश की जनता को आज़ादी के ६३ वर्ष तक छला जाता रहा है और यह प्रक्रिया आगे भी जारी रहेगी.
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