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गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

आगरा के लाल अर्थात लाल बहादुर हो गए पद्मश्री




आगरा हिंदी प्रमुख केंद्र रहा है। हिंदी साहित्य और पत्रकारिता में यहाँ के लोगों ने कीर्तिमान स्थापित किये हैं। इसी भूमि पर जन्म लिया है डा लाल बहादुर सिंह चौहान ने . कृशकाय शरीर, लम्बा कद, सादगी भरा जीवन. उन्हें देखकर कोई कह नहीं सकता कि ये हिंदी के जाने-माने साहित्यसेवी हैं. बोलचाल में सरलता. अहंकार दूर तक नहीं। यह रचनाकार लगभग अस्सी पुस्तकों का सर्जक है। कहने को तो वे न्यू आगरा इलाके में रहते हैं लेकिन उनके आस-पास के लोग तब चकित रह गए जब उन्हें अख़बार और दूरदर्शन से एक दिन मालूम पड़ा कि डाक्टर चौहान को भारत सरकार ने शिक्षा और साहित्य में पद्मश्री देने का फैसला किया है। देखते ही देखते वे आम से खास बन गए। डाक्टर साहब केवल साहित्यकार ही नहीं हैं अपितु समाजसेवी भी हैं। वह अन्य लोगों की तरह अपनी महानता और दानवीरता का बखान नहीं करते बल्कि मौन साधक के रूप में अपनी सेवा में तल्लीन रहते हैं। ज़र, जोरू और ज़मीं के लिए हमेशा से संघर्ष होते रहें हैं। लोग एक इंच ज़मीं के लिए जान दे और ले लेते हैं। ऐसे भौतिकवादी युग में डाक्टर चौहान ने अपने एत्मादपुर स्थित ग्राम बमनी में कई बीघा ज़मीं सरकार को स्कूल और चिकित्सालय खोलने के लिए दान कर दी। वह संगीत के भी शौक़ीन हैं। उन्हें देश की कई संस्थाओं से पुरस्कार मिल चुके हैं। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान उन्हें विज्ञानं भूषण की उपाधि से अलंकृत कर चुका है । हिंदी में उन्होंने नाटक, कविता, कहानी, जीवनी, उपन्यास आदि लिखे हैं। अनुगूँज उनका चर्चित काव्य संग्रह है। अभी 7 अप्रेल को देश के महामहिम राष्ट्रपति ने उन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया हैं। बयोवृद्ध होने के बाद भी उनका जोश युवाओं को मात कर देता है। उनकी तमन्ना हिंदी साहित्य का शिखर छूने की है। उनके चाचा डॉ शिवदान सिंह चौहान हिंदी के महान आलोचक थे। उनकी प्रेरणा से ही लाल बहादुर इस क्षेत्र में आये। पद्मश्री डाक्टर लाल बहादुर सिंह चौहान का पता ४६ दयाल बाग़ रोड, न्यू आगरा, आगरा तथा मोबाईल नंबर ९४५६४०२२७४ है.

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