मानव की उत्पत्ति ईश्वर ने क़ी या विकास क़ी प्राकृतिक प्रक्रिया से
डा. चन्द्रभान
मनुष्य की उत्पत्ति कब और कैसे हुई ? यह एक अनसुलझी पहेली है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सारे ब्रह्माण्ड का रचयिता भगवान है। वह सर्वव्यापी एवं सर्वशक्तिमान है। उसी ने चांद, तारे, ग्रह, उपग्रह, जल-थल, पेड़ एवं समस्त जीवों की रचना की है। मानव का पृथ्वी पर आगमन भी उसकी इच्छा और कृपा से हुआ है। वैज्ञानिक विचारधारा इसके बिल्कुल विपरीत है। विभिन्न क्षेत्रों मेंकिए गए अनुसंधानों से वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैंकि पृथ्वी का प्रत्येक प्राणी विकास की एक प्राकृतिक प्रक्रिया की उपज है। इस प्रक्रिया के अनुसार भिन्न भिन्नजीवों की उत्पत्ति भिन्न-भिन्न समय पर तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के भौगोलिक परिवेश में होती है।
आदिकाल से लेकर आजतक पृथ्वी के प्राकृतिक वातावरण में अनगिनत बदलाव आये हैं। इस बदलते पर्यावरणके अनुकूल बनाने के लिए प्रत्येक जीव अपने अंदर अनेकों परिवर्तन करता है तथा विकास की विभिन्नअवस्थाओं से गुजरता है। चिंपैंजी और गोरिल्ला से लेकर आजतक मनुष्य ने भी विकास की विभिन्नअवस्थाओं से गुजरते हुये आधुनिक स्वरूप धारण किया है। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान ही जीवन देताहै तथा एक दिन वही इसका अन्त कर देता है। वैज्ञानिकों का मत है कि जीव एक निर्धारित मात्रा में ईधनलेकर स्वयं विकसित होता है और ईधन का समाप्ति पर स्वतः ही समाप्त हो जाता है। न कोई इसे मारता है न हीकोई इसे जन्म देता है। एक अध्ययन के अनुसार, सूर्य भी 7.6 बिलियन वर्षों के बाद अपने ईधन की समाप्ति केपश्चात् स्वतः ही नष्ट होकर ब्लैक होल में परिवर्तित हो जायेगा तथा अपने चारों ओर स्थित सभी ग्रहों तथाउपग्रहों को निगल जायेगा। विकास और विनाश की यह प्रक्रिया सतत् है इसी प्राकृतिक प्रक्रिया के कारणप्रत्येक प्राणी का जन्म होता है तथा इसी के कारण उसका अन्त हो जाता है।
धार्मिक विद्वानों का मानना है कि आज से अरबों वर्ष पूर्व भगवान ने ऋषि मनु के रूप प्रथम पुरुष तथा शतरूपा के रूप में प्रथम स्त्री की रचना की और सृष्टि की वृद्धि का दायित्व उन पर सौंपा। इस दम्पत्ति ने सनक, सनातन, सनन्तकुमार एवं सनन्दन नामक चार पुत्रों को जन्म दिया। परन्तु इन चारों पुत्रों ने शादी नहीं की और आजीवनब्रहम्चर्य का पालन किया। अतः प्रभु का सौंपा गया कार्य सम्पूर्ण नहीं हो सका। भगवान ने फिर नारद मुनि कोइस कार्य के लिये मृत्यु लोक में भेजा। लेकिन नारद जी भी सृष्टि की वृद्धि में कोई योगदान नहीं कर पायेक्योंकि उन्होंने अपने जीवनकाल में किसी कन्या से विवाह नहीं किया। अन्त में इस पुनीत कार्य का शुभारम्भकश्यप ऋषि ने अपनी पत्नी अदिति एवं दिति के सहयोग से किया। ऐसा कहा जाता है कि अदिति से देवताओंकी उत्पत्ति हुई तथा दिति से असुरो का जन्म हुआ। इसके पश्चात् सुरों और असुरांे के परिवारों में निरन्तरवृद्धि होती गयी और वसुन्धरा पर मनुष्यों का आधिपत्य होता चला गया।
इस धार्मिक अवधारण के अनुसार जिस मानव को प्रथम बार पृथ्वी पर भेजा, वह आदि मानव शारीरिक एवंमानसिक रूप से पूर्णतः विकसित था। आज के मनुष्य की तुलना में वह अधिक बलशाली, बुद्धिमान एवंतपस्वी था। असम्भव से असम्भव कार्य करने में वह समर्थ था। नारद जी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। वहस्वर्गलोक और मृत्युलोक में सशरीर भ्रमण कर सकते थे। इसके पश्चात् रामायण एवं महाभारत काल में पैदाहोने वाले पुरुष भी आधुनिक मनुष्य से अधिक बलवान थे। इस युग में जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्तिमहाभारत के भीम जैसा बलशाली नहीं है जो हाथियों को उठाकर आसमान में फेंक दे। हमारा बड़ा से बड़ातीरन्दाज भी अर्जुन की तरह घूमती मछली की ऑख की परछाईं को देखकर भेद नही सकता। आज तक इसयुग में किसी ऐसे शिशु का जन्म नहीं हुआ है जिसने गर्भावस्था में ही चक्रव्यूह तोड़ने की विद्या सीख ली हो।ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले आज के धनुष धारी में भी इतना सामर्थ्य नही है कि वह भीष्म पितामहकी भांति बाणों से गंगा नदी का बहाव रोक सकें।
विभिन्न काल की चटट्ानों में छिपे पड़े कंकालों एवं जीवांशा के अध्ययन से पता चलता है कि जब पृथ्वी परजीव के पनपने के लिये उपयुक्त वातावरण उपलब्ध हो जाता है तब ही जीव का धरा पर आगमन होता है। ईसासे लगभग 600 मिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी का थल एवं वायुमण्डल बहुत गर्म था। इस प्रकार के पर्यावरण में किसीभी प्रकार के जीव का विकसित होना सम्भव नहीं था। अतः इस युग में करोड़ों वर्षों तक पृथ्वी बिना जीवन केवीरान ही पड़ी रही। यही कारण है पृथ्वी के इस प्राचीनतम प्रारम्भिक युग को अजोईक अथवा जीवन-रहित युगकहा जाता है। धीरे धीरे पृथ्वी ठन्ड़ी होती गयी। प्रीकैम्ब्रियन युग के आते-आते, पृथ्वी पर कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुये। हाइड्ोजन और आक्सीजन गैसों मिलने से जल की उत्पत्ति हुई और वसुन्धरा के धरातल पर सागरों एवं महासागरों का उद्भव हुआ। धरती पर जीवन की शुरूआत पहली बार इन सागरों के जल से ही हुई।जल से उत्पन्न हुये जीवों का शरीर बहुत कोमल था। पौधो पर फूल नहीं खिलतें थे। इसीलिए इस युग के पौधोंको नान फलॉवरिंग अर्थात् फूलरहित कहा जाता है। जैसे-जैसे समय और परिस्थियां बदलती गयी, जीवों मेंपरिवर्तन होते गये। कुछ जीव लुप्त हो गये तथा कई नई प्रजातियों का अभ्युदय हुआ। ईसा से लगभग 500 मिलियन वर्ष पूर्व, कैम्ब्रीयन युग में सागरों में ऐसे जीवों की भरमार हो गई थी जिनमें रीद की हड्डी ही नहींथी। इन जीवों को इनवर्टीब्रेट कहा जाता है। जल की रानी मछली का पर्दापण आज से 350 मिलियन वर्ष पूर्व हुआ। सिल्युरियन काल की इस मछली में फेफड़े नहीं थे। करोडों वर्षों के पश्चात् मछलियों ने अपने शरीर में फेफड़ों का विकास किया। इसी काल में जमीन पर पनपने वाले पौधों की भी उत्पत्ति हुई। परन्तु इस काल के आते-आते उन जीवों का पृथ्वी से बिल्कुल सफाया हो चुका था, जिनके शरीर में रीढ़ की हड्डी नहीं थी।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, धरा के पर्यावरण में भारी बदलाव आते गये। जो जीव इन परिवर्तनों के अनुसारअपने आप को ढाल नही सके, वे हमेशा के लिये विलुप्त हो गये। एम्फीबियन प्रजाति के जीव, जो जमीन पर रहसकते थे तथा पानी में भी, आज से 320 मिलियन वर्ष पूर्व डिवोनियन काल में पृथ्वी पर प्रकट हुये। मैसोजोइकयुग के जुरासिक काल में डायनासोर का आगमन हुआ। इस भारी भरकम जीव ने लगभग 90 मिलियन वर्षों तक पृथ्वी पर साम्राज्य किया। परन्तु एक उल्कापिण्ड के पृथ्वी से टकराने से भूमण्डल का पर्यावरण इतना धूल-धूसरित हो गया कि सूर्य का प्रकाश भी कई वर्षों तक जमीन तक नहीं पहुंच पाया। पर्यावरण के इस बदलाव को डायनासोर सहन नहीं कर सके और आज से 65 मिलियन वर्ष पृथ्वी से हमेशा के लिये गायब होगये। पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास के टरशियरी काल को स्तनधारी जीवों का युग कहा जाता है। ह्वेल मछलिया, चमगादड़, बन्दर, घोड़े इत्यादि स्तनधारी जीव इसी काल में पृथ्वी पर आये। इस समय तक पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधों की भरमार हो चुकी थी। इनमें फल देने वाले वृक्ष भी शामिल थे। ऐसी घास जिनसे गेंहू, जौ, चावल और अन्य कई प्रकार के खाद्यान्न प्राप्त होते हैं जगंली पौधों के रूप में जगह-जगह उगने लगी थी।आज से 30-45 लाख वर्ष पूर्व जब टरशियरी काल अपने अन्तिम चरण में था, मनुष्य का पर्दापण हुआ।
अफ्रीकी महाद्वीप के इथोपिया देश में मिला लुसी फौसिल और अर्दी फोसिल जो क्रमशः 32 लाख एवं 44 लाख वर्ष पुराने हैं, इस बात का प्रमाण है। ये आदिमानव के प्राचीनतम फोसिल है। इन दोनों फोसिल की लम्बाई लगभग एक मीटर ही थी। यह तथ्य इस बात को प्रमाणित करता है कि इस युग का मानव पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाया था। उसके शरीर का कद भी छोटा था तथा उसके हाथ, पैर, उंगलियां और मस्तिष्क भी बहुत छोटा था। जैसे जैसे समय बीतता गया, मनुष्य के शरीर और मस्तिष्क में बहुत धीमी गति से व्यापक सुधार होते गये। लन्दन के इम्पीरियल कॉलेज के एक अध्ययन के अनुसार पाषण युग के आदि मानव को अपने दिमाग को उस क्षमता तक विकसित करने में लगभग बीस लाख वर्ष लगे ताकि वह पत्थर क़ी कुल्हाड़ी बना सके. मेधावीअथवा बुद्धिमान मानव जिसे हम होमोशेपियन कहते हैं और जिनको हम अपना सबसे नजदीकी पूर्वज मानते हैं, का अभ्युदय आज से लगभग 30,000 वर्ष पाषण युग में हुआ था। यह हमारा पूर्वज जंगलों से फल इकट्ठा करता था, हड्डियों एवं पत्थरों से बने हथियारों से शिकार करता था। तेज दौड़ने वाले पशुओं का शिकार करने के लिये उसने घोड़े को पालतू बनाया तथा उस पर चढ़कर हथियार चलाने की कला विकसित की। अपने पालतु पशुओं की जंगली जानवरों से रक्षा करने के लिये उसने भेड़ियों को पाला और प्रशिक्षित किया। आगे चलकर इन पालतू भेडियों ने कुत्ते का रूप धारण कर लिया। विकास की प्राकृतिक प्रक्रिया का यह सर्वोत्तम उदाहरण है।
मनुष्य में अधिकांश बदलाव जलवायु में निरन्तर होने वाले परिवर्तन के कारण आये। हिमयुग के अन्तिम चरण के समय जब हिमालय की निचली पहाड़ियां और घाटियां भी बर्फाच्छादित हो गई थीं तब यहां का आदिमानव दक्षिण में पठारी भाग की ओर प्रस्थान कर गया था। यहां की जलवायु आवास के लिये उपयुक्त थी। दुनिया में सबसे पहला स्थानातरण मनुष्य ने शायद जलवायु परिवर्तन के कारण ही किया था। पठारों परपत्थरों की बहुतायत होने के कारण यहां मनुष्य ने पत्थरों से औजार एवं भवन बनाने की कला में निपुणता प्राप्त की थी। संसार की सांस्कृतिक इतिहास का यह पाषण युग था। सीता माता का पहाड़ी गुफा में कुछ समयबिताना, किष्किन्धा के सम्राट बालि का एक राक्षस के साथ गुफा में युद्ध करना, श्रीराम का समुद्र पर पत्थरों का रामसेतु बनाना, इस बात की ओर संकेत करता है कि शायद राम-रावण युद्ध पाषाण युग में लड़ा गया था। इस युद्ध में किसी भी योद्धा ने तलवार का प्रयोग नहीं किया था। इससे सिद्ध होता है कि अभी मनुष्य ने लौह धातु से हथियार बनाने की कला विकसित नहीं कर पाया था। यद्यपि वह प्रगति की ओर बढ़ता हुआ हन्टिग अवस्था से काफी आगे निकल चुका था। शिवालिक पर्वत की घाटियों में मिली मानव हड्डियों के अध्ययन से ऐसे संकेतमिले हैं कि यह मानव ही हमारा पूर्वज था, जो उत्तरी भारत की अत्याधिक ठन्ड से बचने के लिये दक्षिण के पठारों पर जाकर कुछ समय के लिये बस गया था। अब वह पशुपालन एवं कृषि की ओर अग्रसर हो रहा था।चारागाह बनाने तथा खेती करने के लिये उसे जमीन से जंगल साफ करने की आवश्यकता पड़ी। पेड़ो को हड्डीया पत्थरों के औजारों से काटना सम्भव नहीं था। अतः उसने लोहे जैसी कठोर धातु खोज निकाली। लौह युगका व्यक्ति पाषाण युग के मानव की तुलना में बहुत अधिक विकसित हो चुका था। अपनी बुद्धि के बल पर वहप्रकृति का मास्टर बन चुका था। रोज नये-नये आविष्कार करता जा रहा था। कृषि में काम आने वाली अनेकवस्तुये जैसे हल, बैलगाड़ी, घोड़ा गाड़ी, रंहट, कुएं इत्यादि उसने स्वयं ही बनाये थे। ये औजार उसे किसी देवी, देवता की घोर तपस्या करने पश्चात् आशीर्वाद रूप में प्राप्त नहीं किये थेे। आधुनिक युग का आदमी पाषण, तांबा तथा ब्रोन्ज युग के मानव से अत्याधिक सशक्त एवं बुद्धिमान बन चुका है। पिछले कुछ शतकों में उसमें तेजी से विकास हुआ है। अपने विकसित मस्तिष्क के कारण, आशातीत गति से अब वह सफलता की नई ऊंचाइयां छूता जा रहा है। आधुनिक मानव के पैर चन्द्रमा के धरातल को छू चुके है। मंगल ग्रह पर कदम रखने के लिये वह व्याकुल है। शत्रुओं की सेना को नेस्तनाबूद करने के लिये, अब उसे अर्जुन के गान्डीव धनुष, भीमकी गदा या अन्य किसी दिव्य अस्त्र की आवश्यकता नहीं है। अब उसने अपने लिये अणु बम्ब ,अन्तर्राष्टीय महाद्वीपीय मिसाइल, पैंटन टैंक जैसे हथियारों का आविष्कार कर लिया है। ये हथियार रामायण और महाभारतकाल के दिव्य अस्त्रों से कई गुणा अधिक घातक है। भेड़ का क्लोन वह बना चुका है। मानव की हूबहू-शक्ल का क्लोन बनाने के लिये वह आतुर है। कृत्रिम ह्रदय बनाकर तथा एक 15 वर्षीय इटली के बालक में सफलता पूर्वक प्रत्यारोपित करके उसने सिद्ध कर दिया है कि उसके लिये कुछ भी असम्भव नहीं है। आज का मानव ब्रहमाण्ड का मास्टर है। आश्चर्य चकित कर देने वाला उसका प्रत्येक आविष्कार इस बात का प्रमाण है कि आधुनिक मानव का बौद्धिक विकास तीव्रता से हो रहा है। आज का हर व्यक्ति कल के आदमी से बेहतर है। हमारे बच्चेहमसे ज्यादा बुद्धिमान हैं और मानसिक एवं बौद्धिक दृष्टि से ज्यादा विकसित है। वास्तव में अब यह कहावत सिद्ध होती जा रही है क़ी चाइल्ड ऑफ़ द फादर ऑफ़ मैन।
हमारी धार्मिक अवधारणा विकास की थ्योरी का सर्मथन नही करती।हिन्दू धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार, पृथ्वी पर भगवान द्वारा प्रेषित प्रथम पुरुष शारीरिक एवं बौद्धिक दृष्टि से पूर्णतयाः विकसित था तथा आज के मनुष्य की तुलना में वह अत्यधिक बलवान एवं सामर्थ्यवान था। उसके कुछ वशंज इतने बलवान थे कि वे हिमालय या गोवर्धन पर्वत को हाथ में उठा सकते थे तथा सागर को छलांग मारकर, पार कर सकते थे। परन्तु हमारी दस अवतारी परिकल्पना विकास की प्रक्रिया का समर्थनकरती है। हमारे दस अवतारों में सबसे पहला अवतार मछली के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुआ जो मत्यस्य अवतार कहलाया। इसका अर्थ है कि हिन्दु माइथोलोजी इस वैज्ञानिक सत्य को स्वीकारती है कि पृथ्वी परजीवन का प्रारम्भ जल से ही हुआ था। कच्छप या कछुआ हमारा दूसरा अवतार था। यह अवतार एम्फीबियन प्रजाति के जीवों का प्रतिनिधित्व करता है जो जल में रह सकते हैं तथा जमीन पर भी। विकास की थ्योरी में तीसरे क्रम में वे जीव आते हैं, जो केवल जमीनपर ही पनप सकते है।
हमारा तीसरा ब्रहा अवतार उन जीव का प्रतीक है, जो जीव केवल जमीन पर ही जिन्दा रह सकते हैं। भगवानविष्णु ने चौथा अवतार नरसिंह (आधा नर तथा आधा शेर) के रूप में लिया था। यह ऐसा प्राणी था जो पूरी तरहसे मनुष्य रूप में पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाया था। इसी लिये यह आधा मनुष्य तथा आधा शेर जैसा था शायद यह विकास की थ्योरी का swaroop था। समय का पहिया घूमता गया और जीवों में सुधार होता गया। हमारा पांचवा वामन (मनुष्य का बौना स्वरूप) अवतार विकास प्रक्रिया की उस अवस्था का प्रकट करता है जबआदि मानव पूर्ण रूप से मनुष्य का स्वरूप धारण कर चुका था। लेकिन यह बहुत छोटे कद का मानव थाइसीलिये इसे वामन (बौना) अवतार कहा गया है। वैज्ञानिको के द्वारा खोजे गये मनुष्य के सबसे पुराने लूसी तथा अर्दी के फोसिल का कद भी छोटा ही था। लूसी तथा अर्दी का छोटा कद प्रमाणित करता है कि हमारेप्राचीनतम पूर्वज भारी भरकम इन्सान नहीं थे। उनके शरीर एवं मस्तिष्क का विकास धीरे धीरे ही हुआ था। परशुराम जी हमारे छठे अवतार थे। जो सम्पूर्ण मानव के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुये। इसके बाद सातवें, आठवें, तथा नौंवे सभी अवतारों में पूर्णतया विकसित मानव की छवि दृष्टिगोचर होती है। हमारा दसवां कलिका अवतार जब अवतरित होंगे, वह भी मनुष्य रूप में ही प्रकट होंगे। अब कोई भी अवतार कच्छप या मत्यस्य रूप में अवतरित नहीं होंगे। इस प्रकार दस अवतारों का पृथ्वी पर अवतरित होने की घटना विकास की थ्योरी को प्रमाणित करती है।
(लेखक प्रख्यात भूगोलविद तथा अध्येता हैं)
मोबाइल- 9411400657
डा. चन्द्रभान
मनुष्य की उत्पत्ति कब और कैसे हुई ? यह एक अनसुलझी पहेली है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सारे ब्रह्माण्ड का रचयिता भगवान है। वह सर्वव्यापी एवं सर्वशक्तिमान है। उसी ने चांद, तारे, ग्रह, उपग्रह, जल-थल, पेड़ एवं समस्त जीवों की रचना की है। मानव का पृथ्वी पर आगमन भी उसकी इच्छा और कृपा से हुआ है। वैज्ञानिक विचारधारा इसके बिल्कुल विपरीत है। विभिन्न क्षेत्रों मेंकिए गए अनुसंधानों से वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैंकि पृथ्वी का प्रत्येक प्राणी विकास की एक प्राकृतिक प्रक्रिया की उपज है। इस प्रक्रिया के अनुसार भिन्न भिन्नजीवों की उत्पत्ति भिन्न-भिन्न समय पर तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के भौगोलिक परिवेश में होती है।
आदिकाल से लेकर आजतक पृथ्वी के प्राकृतिक वातावरण में अनगिनत बदलाव आये हैं। इस बदलते पर्यावरणके अनुकूल बनाने के लिए प्रत्येक जीव अपने अंदर अनेकों परिवर्तन करता है तथा विकास की विभिन्नअवस्थाओं से गुजरता है। चिंपैंजी और गोरिल्ला से लेकर आजतक मनुष्य ने भी विकास की विभिन्नअवस्थाओं से गुजरते हुये आधुनिक स्वरूप धारण किया है। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान ही जीवन देताहै तथा एक दिन वही इसका अन्त कर देता है। वैज्ञानिकों का मत है कि जीव एक निर्धारित मात्रा में ईधनलेकर स्वयं विकसित होता है और ईधन का समाप्ति पर स्वतः ही समाप्त हो जाता है। न कोई इसे मारता है न हीकोई इसे जन्म देता है। एक अध्ययन के अनुसार, सूर्य भी 7.6 बिलियन वर्षों के बाद अपने ईधन की समाप्ति केपश्चात् स्वतः ही नष्ट होकर ब्लैक होल में परिवर्तित हो जायेगा तथा अपने चारों ओर स्थित सभी ग्रहों तथाउपग्रहों को निगल जायेगा। विकास और विनाश की यह प्रक्रिया सतत् है इसी प्राकृतिक प्रक्रिया के कारणप्रत्येक प्राणी का जन्म होता है तथा इसी के कारण उसका अन्त हो जाता है।
धार्मिक विद्वानों का मानना है कि आज से अरबों वर्ष पूर्व भगवान ने ऋषि मनु के रूप प्रथम पुरुष तथा शतरूपा के रूप में प्रथम स्त्री की रचना की और सृष्टि की वृद्धि का दायित्व उन पर सौंपा। इस दम्पत्ति ने सनक, सनातन, सनन्तकुमार एवं सनन्दन नामक चार पुत्रों को जन्म दिया। परन्तु इन चारों पुत्रों ने शादी नहीं की और आजीवनब्रहम्चर्य का पालन किया। अतः प्रभु का सौंपा गया कार्य सम्पूर्ण नहीं हो सका। भगवान ने फिर नारद मुनि कोइस कार्य के लिये मृत्यु लोक में भेजा। लेकिन नारद जी भी सृष्टि की वृद्धि में कोई योगदान नहीं कर पायेक्योंकि उन्होंने अपने जीवनकाल में किसी कन्या से विवाह नहीं किया। अन्त में इस पुनीत कार्य का शुभारम्भकश्यप ऋषि ने अपनी पत्नी अदिति एवं दिति के सहयोग से किया। ऐसा कहा जाता है कि अदिति से देवताओंकी उत्पत्ति हुई तथा दिति से असुरो का जन्म हुआ। इसके पश्चात् सुरों और असुरांे के परिवारों में निरन्तरवृद्धि होती गयी और वसुन्धरा पर मनुष्यों का आधिपत्य होता चला गया।
इस धार्मिक अवधारण के अनुसार जिस मानव को प्रथम बार पृथ्वी पर भेजा, वह आदि मानव शारीरिक एवंमानसिक रूप से पूर्णतः विकसित था। आज के मनुष्य की तुलना में वह अधिक बलशाली, बुद्धिमान एवंतपस्वी था। असम्भव से असम्भव कार्य करने में वह समर्थ था। नारद जी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। वहस्वर्गलोक और मृत्युलोक में सशरीर भ्रमण कर सकते थे। इसके पश्चात् रामायण एवं महाभारत काल में पैदाहोने वाले पुरुष भी आधुनिक मनुष्य से अधिक बलवान थे। इस युग में जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्तिमहाभारत के भीम जैसा बलशाली नहीं है जो हाथियों को उठाकर आसमान में फेंक दे। हमारा बड़ा से बड़ातीरन्दाज भी अर्जुन की तरह घूमती मछली की ऑख की परछाईं को देखकर भेद नही सकता। आज तक इसयुग में किसी ऐसे शिशु का जन्म नहीं हुआ है जिसने गर्भावस्था में ही चक्रव्यूह तोड़ने की विद्या सीख ली हो।ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले आज के धनुष धारी में भी इतना सामर्थ्य नही है कि वह भीष्म पितामहकी भांति बाणों से गंगा नदी का बहाव रोक सकें।
विभिन्न काल की चटट्ानों में छिपे पड़े कंकालों एवं जीवांशा के अध्ययन से पता चलता है कि जब पृथ्वी परजीव के पनपने के लिये उपयुक्त वातावरण उपलब्ध हो जाता है तब ही जीव का धरा पर आगमन होता है। ईसासे लगभग 600 मिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी का थल एवं वायुमण्डल बहुत गर्म था। इस प्रकार के पर्यावरण में किसीभी प्रकार के जीव का विकसित होना सम्भव नहीं था। अतः इस युग में करोड़ों वर्षों तक पृथ्वी बिना जीवन केवीरान ही पड़ी रही। यही कारण है पृथ्वी के इस प्राचीनतम प्रारम्भिक युग को अजोईक अथवा जीवन-रहित युगकहा जाता है। धीरे धीरे पृथ्वी ठन्ड़ी होती गयी। प्रीकैम्ब्रियन युग के आते-आते, पृथ्वी पर कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुये। हाइड्ोजन और आक्सीजन गैसों मिलने से जल की उत्पत्ति हुई और वसुन्धरा के धरातल पर सागरों एवं महासागरों का उद्भव हुआ। धरती पर जीवन की शुरूआत पहली बार इन सागरों के जल से ही हुई।जल से उत्पन्न हुये जीवों का शरीर बहुत कोमल था। पौधो पर फूल नहीं खिलतें थे। इसीलिए इस युग के पौधोंको नान फलॉवरिंग अर्थात् फूलरहित कहा जाता है। जैसे-जैसे समय और परिस्थियां बदलती गयी, जीवों मेंपरिवर्तन होते गये। कुछ जीव लुप्त हो गये तथा कई नई प्रजातियों का अभ्युदय हुआ। ईसा से लगभग 500 मिलियन वर्ष पूर्व, कैम्ब्रीयन युग में सागरों में ऐसे जीवों की भरमार हो गई थी जिनमें रीद की हड्डी ही नहींथी। इन जीवों को इनवर्टीब्रेट कहा जाता है। जल की रानी मछली का पर्दापण आज से 350 मिलियन वर्ष पूर्व हुआ। सिल्युरियन काल की इस मछली में फेफड़े नहीं थे। करोडों वर्षों के पश्चात् मछलियों ने अपने शरीर में फेफड़ों का विकास किया। इसी काल में जमीन पर पनपने वाले पौधों की भी उत्पत्ति हुई। परन्तु इस काल के आते-आते उन जीवों का पृथ्वी से बिल्कुल सफाया हो चुका था, जिनके शरीर में रीढ़ की हड्डी नहीं थी।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, धरा के पर्यावरण में भारी बदलाव आते गये। जो जीव इन परिवर्तनों के अनुसारअपने आप को ढाल नही सके, वे हमेशा के लिये विलुप्त हो गये। एम्फीबियन प्रजाति के जीव, जो जमीन पर रहसकते थे तथा पानी में भी, आज से 320 मिलियन वर्ष पूर्व डिवोनियन काल में पृथ्वी पर प्रकट हुये। मैसोजोइकयुग के जुरासिक काल में डायनासोर का आगमन हुआ। इस भारी भरकम जीव ने लगभग 90 मिलियन वर्षों तक पृथ्वी पर साम्राज्य किया। परन्तु एक उल्कापिण्ड के पृथ्वी से टकराने से भूमण्डल का पर्यावरण इतना धूल-धूसरित हो गया कि सूर्य का प्रकाश भी कई वर्षों तक जमीन तक नहीं पहुंच पाया। पर्यावरण के इस बदलाव को डायनासोर सहन नहीं कर सके और आज से 65 मिलियन वर्ष पृथ्वी से हमेशा के लिये गायब होगये। पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास के टरशियरी काल को स्तनधारी जीवों का युग कहा जाता है। ह्वेल मछलिया, चमगादड़, बन्दर, घोड़े इत्यादि स्तनधारी जीव इसी काल में पृथ्वी पर आये। इस समय तक पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधों की भरमार हो चुकी थी। इनमें फल देने वाले वृक्ष भी शामिल थे। ऐसी घास जिनसे गेंहू, जौ, चावल और अन्य कई प्रकार के खाद्यान्न प्राप्त होते हैं जगंली पौधों के रूप में जगह-जगह उगने लगी थी।आज से 30-45 लाख वर्ष पूर्व जब टरशियरी काल अपने अन्तिम चरण में था, मनुष्य का पर्दापण हुआ।
अफ्रीकी महाद्वीप के इथोपिया देश में मिला लुसी फौसिल और अर्दी फोसिल जो क्रमशः 32 लाख एवं 44 लाख वर्ष पुराने हैं, इस बात का प्रमाण है। ये आदिमानव के प्राचीनतम फोसिल है। इन दोनों फोसिल की लम्बाई लगभग एक मीटर ही थी। यह तथ्य इस बात को प्रमाणित करता है कि इस युग का मानव पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाया था। उसके शरीर का कद भी छोटा था तथा उसके हाथ, पैर, उंगलियां और मस्तिष्क भी बहुत छोटा था। जैसे जैसे समय बीतता गया, मनुष्य के शरीर और मस्तिष्क में बहुत धीमी गति से व्यापक सुधार होते गये। लन्दन के इम्पीरियल कॉलेज के एक अध्ययन के अनुसार पाषण युग के आदि मानव को अपने दिमाग को उस क्षमता तक विकसित करने में लगभग बीस लाख वर्ष लगे ताकि वह पत्थर क़ी कुल्हाड़ी बना सके. मेधावीअथवा बुद्धिमान मानव जिसे हम होमोशेपियन कहते हैं और जिनको हम अपना सबसे नजदीकी पूर्वज मानते हैं, का अभ्युदय आज से लगभग 30,000 वर्ष पाषण युग में हुआ था। यह हमारा पूर्वज जंगलों से फल इकट्ठा करता था, हड्डियों एवं पत्थरों से बने हथियारों से शिकार करता था। तेज दौड़ने वाले पशुओं का शिकार करने के लिये उसने घोड़े को पालतू बनाया तथा उस पर चढ़कर हथियार चलाने की कला विकसित की। अपने पालतु पशुओं की जंगली जानवरों से रक्षा करने के लिये उसने भेड़ियों को पाला और प्रशिक्षित किया। आगे चलकर इन पालतू भेडियों ने कुत्ते का रूप धारण कर लिया। विकास की प्राकृतिक प्रक्रिया का यह सर्वोत्तम उदाहरण है।
मनुष्य में अधिकांश बदलाव जलवायु में निरन्तर होने वाले परिवर्तन के कारण आये। हिमयुग के अन्तिम चरण के समय जब हिमालय की निचली पहाड़ियां और घाटियां भी बर्फाच्छादित हो गई थीं तब यहां का आदिमानव दक्षिण में पठारी भाग की ओर प्रस्थान कर गया था। यहां की जलवायु आवास के लिये उपयुक्त थी। दुनिया में सबसे पहला स्थानातरण मनुष्य ने शायद जलवायु परिवर्तन के कारण ही किया था। पठारों परपत्थरों की बहुतायत होने के कारण यहां मनुष्य ने पत्थरों से औजार एवं भवन बनाने की कला में निपुणता प्राप्त की थी। संसार की सांस्कृतिक इतिहास का यह पाषण युग था। सीता माता का पहाड़ी गुफा में कुछ समयबिताना, किष्किन्धा के सम्राट बालि का एक राक्षस के साथ गुफा में युद्ध करना, श्रीराम का समुद्र पर पत्थरों का रामसेतु बनाना, इस बात की ओर संकेत करता है कि शायद राम-रावण युद्ध पाषाण युग में लड़ा गया था। इस युद्ध में किसी भी योद्धा ने तलवार का प्रयोग नहीं किया था। इससे सिद्ध होता है कि अभी मनुष्य ने लौह धातु से हथियार बनाने की कला विकसित नहीं कर पाया था। यद्यपि वह प्रगति की ओर बढ़ता हुआ हन्टिग अवस्था से काफी आगे निकल चुका था। शिवालिक पर्वत की घाटियों में मिली मानव हड्डियों के अध्ययन से ऐसे संकेतमिले हैं कि यह मानव ही हमारा पूर्वज था, जो उत्तरी भारत की अत्याधिक ठन्ड से बचने के लिये दक्षिण के पठारों पर जाकर कुछ समय के लिये बस गया था। अब वह पशुपालन एवं कृषि की ओर अग्रसर हो रहा था।चारागाह बनाने तथा खेती करने के लिये उसे जमीन से जंगल साफ करने की आवश्यकता पड़ी। पेड़ो को हड्डीया पत्थरों के औजारों से काटना सम्भव नहीं था। अतः उसने लोहे जैसी कठोर धातु खोज निकाली। लौह युगका व्यक्ति पाषाण युग के मानव की तुलना में बहुत अधिक विकसित हो चुका था। अपनी बुद्धि के बल पर वहप्रकृति का मास्टर बन चुका था। रोज नये-नये आविष्कार करता जा रहा था। कृषि में काम आने वाली अनेकवस्तुये जैसे हल, बैलगाड़ी, घोड़ा गाड़ी, रंहट, कुएं इत्यादि उसने स्वयं ही बनाये थे। ये औजार उसे किसी देवी, देवता की घोर तपस्या करने पश्चात् आशीर्वाद रूप में प्राप्त नहीं किये थेे। आधुनिक युग का आदमी पाषण, तांबा तथा ब्रोन्ज युग के मानव से अत्याधिक सशक्त एवं बुद्धिमान बन चुका है। पिछले कुछ शतकों में उसमें तेजी से विकास हुआ है। अपने विकसित मस्तिष्क के कारण, आशातीत गति से अब वह सफलता की नई ऊंचाइयां छूता जा रहा है। आधुनिक मानव के पैर चन्द्रमा के धरातल को छू चुके है। मंगल ग्रह पर कदम रखने के लिये वह व्याकुल है। शत्रुओं की सेना को नेस्तनाबूद करने के लिये, अब उसे अर्जुन के गान्डीव धनुष, भीमकी गदा या अन्य किसी दिव्य अस्त्र की आवश्यकता नहीं है। अब उसने अपने लिये अणु बम्ब ,अन्तर्राष्टीय महाद्वीपीय मिसाइल, पैंटन टैंक जैसे हथियारों का आविष्कार कर लिया है। ये हथियार रामायण और महाभारतकाल के दिव्य अस्त्रों से कई गुणा अधिक घातक है। भेड़ का क्लोन वह बना चुका है। मानव की हूबहू-शक्ल का क्लोन बनाने के लिये वह आतुर है। कृत्रिम ह्रदय बनाकर तथा एक 15 वर्षीय इटली के बालक में सफलता पूर्वक प्रत्यारोपित करके उसने सिद्ध कर दिया है कि उसके लिये कुछ भी असम्भव नहीं है। आज का मानव ब्रहमाण्ड का मास्टर है। आश्चर्य चकित कर देने वाला उसका प्रत्येक आविष्कार इस बात का प्रमाण है कि आधुनिक मानव का बौद्धिक विकास तीव्रता से हो रहा है। आज का हर व्यक्ति कल के आदमी से बेहतर है। हमारे बच्चेहमसे ज्यादा बुद्धिमान हैं और मानसिक एवं बौद्धिक दृष्टि से ज्यादा विकसित है। वास्तव में अब यह कहावत सिद्ध होती जा रही है क़ी चाइल्ड ऑफ़ द फादर ऑफ़ मैन।
हमारी धार्मिक अवधारणा विकास की थ्योरी का सर्मथन नही करती।हिन्दू धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार, पृथ्वी पर भगवान द्वारा प्रेषित प्रथम पुरुष शारीरिक एवं बौद्धिक दृष्टि से पूर्णतयाः विकसित था तथा आज के मनुष्य की तुलना में वह अत्यधिक बलवान एवं सामर्थ्यवान था। उसके कुछ वशंज इतने बलवान थे कि वे हिमालय या गोवर्धन पर्वत को हाथ में उठा सकते थे तथा सागर को छलांग मारकर, पार कर सकते थे। परन्तु हमारी दस अवतारी परिकल्पना विकास की प्रक्रिया का समर्थनकरती है। हमारे दस अवतारों में सबसे पहला अवतार मछली के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुआ जो मत्यस्य अवतार कहलाया। इसका अर्थ है कि हिन्दु माइथोलोजी इस वैज्ञानिक सत्य को स्वीकारती है कि पृथ्वी परजीवन का प्रारम्भ जल से ही हुआ था। कच्छप या कछुआ हमारा दूसरा अवतार था। यह अवतार एम्फीबियन प्रजाति के जीवों का प्रतिनिधित्व करता है जो जल में रह सकते हैं तथा जमीन पर भी। विकास की थ्योरी में तीसरे क्रम में वे जीव आते हैं, जो केवल जमीनपर ही पनप सकते है।
हमारा तीसरा ब्रहा अवतार उन जीव का प्रतीक है, जो जीव केवल जमीन पर ही जिन्दा रह सकते हैं। भगवानविष्णु ने चौथा अवतार नरसिंह (आधा नर तथा आधा शेर) के रूप में लिया था। यह ऐसा प्राणी था जो पूरी तरहसे मनुष्य रूप में पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाया था। इसी लिये यह आधा मनुष्य तथा आधा शेर जैसा था शायद यह विकास की थ्योरी का swaroop था। समय का पहिया घूमता गया और जीवों में सुधार होता गया। हमारा पांचवा वामन (मनुष्य का बौना स्वरूप) अवतार विकास प्रक्रिया की उस अवस्था का प्रकट करता है जबआदि मानव पूर्ण रूप से मनुष्य का स्वरूप धारण कर चुका था। लेकिन यह बहुत छोटे कद का मानव थाइसीलिये इसे वामन (बौना) अवतार कहा गया है। वैज्ञानिको के द्वारा खोजे गये मनुष्य के सबसे पुराने लूसी तथा अर्दी के फोसिल का कद भी छोटा ही था। लूसी तथा अर्दी का छोटा कद प्रमाणित करता है कि हमारेप्राचीनतम पूर्वज भारी भरकम इन्सान नहीं थे। उनके शरीर एवं मस्तिष्क का विकास धीरे धीरे ही हुआ था। परशुराम जी हमारे छठे अवतार थे। जो सम्पूर्ण मानव के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुये। इसके बाद सातवें, आठवें, तथा नौंवे सभी अवतारों में पूर्णतया विकसित मानव की छवि दृष्टिगोचर होती है। हमारा दसवां कलिका अवतार जब अवतरित होंगे, वह भी मनुष्य रूप में ही प्रकट होंगे। अब कोई भी अवतार कच्छप या मत्यस्य रूप में अवतरित नहीं होंगे। इस प्रकार दस अवतारों का पृथ्वी पर अवतरित होने की घटना विकास की थ्योरी को प्रमाणित करती है।
(लेखक प्रख्यात भूगोलविद तथा अध्येता हैं)
मोबाइल- 9411400657
प्राणी के मृत्यु का कारण विस्तार पूर्वक समझाये
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंमुस्लिम औरतो का खतना Islam khatna wiki photos click here
.
.
वीर्यपान के फायदे या नुकसान देख ले seminal fluid drinking benefits
.
.
.
इंडियन बॉयज के नंबर्स यहाँ क्लिक्स से देखे और अपना ऐड करे Top.howFn.com
very nice post sir very nice
जवाब देंहटाएंगुरु जी मुझे शाक है कि मनुष्य विकास ईश्वर या प्रकृति।
जवाब देंहटाएंविज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत पदार्थ तथा ऊर्जा की प्रकृति एवं गुणों का अध्ययन किया जाता है, भौतिक विज्ञान कहलाता है। भौतिक विज्ञान में पदार्थ के रूप में परमाणु संरचना, बिजली, चुम्बकत्व, ध्वनि, प्रकाश आदि सम्मिलित हैं। जीव विज्ञान (Biology) प्राकृतिक विज्ञान की तीन विशाल शाखाओं में से एक है। यह विज्ञान जीव, जीवन और जीवन के प्रक्रियाओं के अध्ययन से सम्बन्धित है।
जवाब देंहटाएं