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गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

सवालों के घेरे में राज्यपाल

कर्नाटक में चल रहे राजनैतिक विवाद से राज्यपाल का पद फिर सवालों के घेरे में आ गया है। पहले उन्होंने राष्टपति शासन की केन्द्र से सिफारिश की लेकिन जब भाजपा ने दवाब बनाया तो उन्होंने विधानसभा में प्रांतीय सरकार को पुनः विश्वासमत प्राप्त करने का पत्र दिया है। विपक्षी दलों को लगता है कि राज्यपाल अपने संवैधानिक दायित्वों को भूलकर केन्द्र के एजेन्ट के रूप् से अपने कामों को अंजाम देते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 में राज्यपाल के पद का उपबंध किया गया है, जिसके अनुसार प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होगा। दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक ही राज्यपाल हो सकता है। हमारे संविधान निर्माताओं ने राज्यपाल के संवैधानिक पद की परिकल्पना इस आशय से की थी कि हमारी संसदात्मक प्रणाली मजबूत हो और वह मंत्रिमंडल की सलाह से अपने कार्यों को संपादित करे। लेकिन वास्तविकता यह है कि इन पदों की गरिमा और महत्ता दिनोंदिन घटती जा रही है। अब तो यह माना जाने लगा है कि यह पद रिटायर्ड राजनीतिज्ञ, सेनाधिकारी अथवा पूर्व नौकरशाहों के लिए आरक्षित हो गया है। इस सच्चाई को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। राज्यपाल की नियुक्ति राष्टपति के द्वारा होती है और यह नियुक्ति केबिनेट की सलाह से की जाती है। अतः यह आरोप लगते रहे हैं कि राज्यपाल केन्द्र के इशारे पर केन्द्र सरकार की विरोधी दलों की सरकार को अस्थिर करने के प्रयास में लगे रहते हैं। राज्यपाल के किसी कदम का यह कहकर विरोध आम बात हो गई है कि यह कदम केन्द्र सरकार के इशारे पर उठाया गया है। कर्नाटक में सरकार और राज्यपाल के मध्य जो रस्साकसी चल रही है। उसे इसी परिप्रेक्ष्य में लिया जा रहा है। भाजपा केन्द्र से मांग कर रही है कि वह राज्यपाल को तुरंत वापस बुलाये। महामहिम राज्यपाल का ताजा निर्णय सरकार पुनः विश्वास मत प्राप्त करे, इस तथ्य की पुष्टि करता है। हमेशा से यह आरोप लगते रहे हैं कि राज्यपालों के माध्यम से केन्द्र सरकार राज्य सरकारों के काम-काज में दखल देती है। इस पद के दुरुपयोग की शिकायतें पुरानी हैं। केन्द्र में सत्तारूढ़ होने पर 1989 में जब राष्टीय मोर्चेे की सवरकार ने सभी राज्यपालों को एक साथ हटा दिए जाने के कारण इस संवैधानिक पद की भूमिका के विषय में काफी बहस हुई। यह कहा गया कि केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के साथ-साथ राज्यपालों को भी त्यागपत्र दे देना चाहिए। इस पद का दुरुपयोग रोकने के लिए सरकारिया कमेटी बनी लेकिन उसकी सिफारिशों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया। इस रिपोर्ट के अनुसार राज्यपालों की नियुक्ति सम्बंधिक राज्य के मुख्यमंत्री की सलाह से की जानी चाहिए। इस पद पर विशिष्ट व्यक्तियों की नियुक्ति होनी चाहिए। सरकारिया समिति के अनुसार राज्यपाल जीवन के किसी क्षेत्र में विशिष्ट स्थान रखता हो, वह राज्य से बाहर का हो तथा अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखता हो तथा क्षेत्रीय राजनीति से अभिन्न रूप् से सम्बद्ध न हो। उसकी राजनीति में किसी भी तरह की भागीदारी नहीं होनी चाहिए।

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