वर्तमान समय मूल्यों के पतन का है। ऐसे समय में रचनाकारों का दायित्व बन जाता है कि वे अपने युगधर्म का निर्वाह करें। यह ब्लॉग रचनाधर्मिता को समर्पित है। मेरा मानना है- युग बदलेगा आज युवा ही भारत देश महान का। कालचक्र की इस यात्रा में आज समय बलिदान का।
सोमवार, 18 अप्रैल 2011
पूरा समाज ही भ्रष्टाचार में लिप्त
अन्ना हजारे के अनशन से ऐसा लगा कि अब तो भ्रष्टाचार का नाश करके ही चेन मिलेगा। सारे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ वातावरण बनने लगा। जगह जगह अनशन और गोष्ठियां हुई कि देश से भ्रष्टाचार समाप्त होना चाहिए। अखबारी समाचारों में अधिकांश भ्रष्ट लोग ही थे जो अन्ना हजारे जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। इन कार्यक्रमों के लिए चंदा दिया मुनाफाखोरों, कालाबाजारियों और घटतौली करने वालों ने। वैसे भी अगर लोकपाल विधेयक पास हो जाता है तो क्या भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी। लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। सब हीरों बनने के नाटक और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के फंडे हैं। आप विचार करिये कि देश में हत्या के खिलाफ कानून है लेकिन क्या कानून से हत्यारों का दौर समाप्त हो गया है। दहेज उन्मूलन कानून है लेकिन दहेज दानव कितनी वहुओं को निगल रहा है। सच तो यह है कि हमारा पूरा समाज भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ है। जहां तक राजनेताओं की बात है कि वह भी तो समाज के ही लोग हैं और लोग उन्हें चुन कर भेजते हैं। सवाल यह भी है कि क्या मुनाफाखोरी, कालाबाजारी, घटतौली भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं आते। समाज में संपन्न आदमी को सम्मान मिलता है लेकिन संपन्नता बिना भ्रष्टाचार के नहीं आती। कालाबाजारी करके, श्रमिकों को शोषण करके, सरकारी टैक्सों की चोरी करके ही अनाप शनाप मुनाफा कमाया जाता है। जब तक समाज में संपन्न लोगों यानी धनकुबेरों की पूजा होती रहेगी, भ्रष्टाचार को कोई माई का लाल नहीं मिटा सकता।
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