निजी क्षेत्र में भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा - चुप क्यों हैं हजारे और रामदेव
अभी दिल्ली में जंतर मंतर पर अन्ना हजारे व उनके कथित सिविल सोसायटी के लोगों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का ऐलान किया और उनकी इस मुहिम में भागीदारी की तथाकथित नवधनाढय और प्रोफेशनल्स ने। इस दौरान सरकारी भ्रष्टाचार की तो खुलकर बातें की गईं, विदेशों में काले धन पर सरकार को कोसा गया लेकिन निजी क्षेत्र में अजगर की भांति फैल गये भ्रष्टाचार की किसी ने चर्चा करना भी उचित नहीं समझा। क्या कारण है कि कल के मामूली व्यापारी आज करोडो और अरबों में खेल रहे हैं। शिक्षा के निजीकरण के नाम पर भ्रष्टाचाररूपी अवैध कमाई को मुनाफे का नाम दिया जा रहा है। इसी तरह चिकित्सा को व्यापारियों के हाथों सौंपने से आम आदमी बिना इलाज के मर रहा है। सरकारी अस्पताल में तो मरीज को केवल बाहर से दवा लाने पर विवश किया जाता है लेकिन निजी अस्पताल तो मरीजों के घर और खेत बिकवा रहे हैं। किसान का आलू जब खेत में होता है तो दो रुपये किलो बिकता है लेकिन जब वह धन्ना सेठ के गोदामों में पहुंच जाता है तो वह 10 रुपये किलों क्यों हो जाता है। किसानों से कौडियों के भाव जमीन खरीदकर कौन कुबेरपति बन रहा है। अन्ना हजारे के प्रिय वकील क्या गरीब, शोषितों, मेहनतकश और ईमानदार लोगों का मुकदमा लडकर सम्पन्नतम हुए हैं। इस आंदोलन के दौरान आरक्षण हटाओ-भ्रष्टाचार मिटाओं का नारा भी दिया गया। लेकिन सवाल यह है कि निजी क्षेत्र में तो आरक्षण नहीं है फिर वहां भ्रष्टाचार का नंगा नाच क्यों हो रहा है। अन्ना की इस सिविल सोसायटी में कोई गरीब, मजदूर, किसान, दलित, पिछडा या अल्पसंख्यक क्यों नहीं है। चंद सफेद कालर वाले व पूर्व नौकरशाह इस देश के अघोषित नियंता नहीं बन सकते। निजी क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार पर अन्ना हजारे और बाबा रामदेव क्यों चुप हैं, क्या निजी क्षेत्र जनलोकपाल के दायरे में नहीं आना चाहिए। वस्तुत निजी क्षेत्र को भी सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत लाना चाहिए तभी देश से भ्रष्टाचार के खात्मे की शुरूआत होगी।
अभी दिल्ली में जंतर मंतर पर अन्ना हजारे व उनके कथित सिविल सोसायटी के लोगों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का ऐलान किया और उनकी इस मुहिम में भागीदारी की तथाकथित नवधनाढय और प्रोफेशनल्स ने। इस दौरान सरकारी भ्रष्टाचार की तो खुलकर बातें की गईं, विदेशों में काले धन पर सरकार को कोसा गया लेकिन निजी क्षेत्र में अजगर की भांति फैल गये भ्रष्टाचार की किसी ने चर्चा करना भी उचित नहीं समझा। क्या कारण है कि कल के मामूली व्यापारी आज करोडो और अरबों में खेल रहे हैं। शिक्षा के निजीकरण के नाम पर भ्रष्टाचाररूपी अवैध कमाई को मुनाफे का नाम दिया जा रहा है। इसी तरह चिकित्सा को व्यापारियों के हाथों सौंपने से आम आदमी बिना इलाज के मर रहा है। सरकारी अस्पताल में तो मरीज को केवल बाहर से दवा लाने पर विवश किया जाता है लेकिन निजी अस्पताल तो मरीजों के घर और खेत बिकवा रहे हैं। किसान का आलू जब खेत में होता है तो दो रुपये किलो बिकता है लेकिन जब वह धन्ना सेठ के गोदामों में पहुंच जाता है तो वह 10 रुपये किलों क्यों हो जाता है। किसानों से कौडियों के भाव जमीन खरीदकर कौन कुबेरपति बन रहा है। अन्ना हजारे के प्रिय वकील क्या गरीब, शोषितों, मेहनतकश और ईमानदार लोगों का मुकदमा लडकर सम्पन्नतम हुए हैं। इस आंदोलन के दौरान आरक्षण हटाओ-भ्रष्टाचार मिटाओं का नारा भी दिया गया। लेकिन सवाल यह है कि निजी क्षेत्र में तो आरक्षण नहीं है फिर वहां भ्रष्टाचार का नंगा नाच क्यों हो रहा है। अन्ना की इस सिविल सोसायटी में कोई गरीब, मजदूर, किसान, दलित, पिछडा या अल्पसंख्यक क्यों नहीं है। चंद सफेद कालर वाले व पूर्व नौकरशाह इस देश के अघोषित नियंता नहीं बन सकते। निजी क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार पर अन्ना हजारे और बाबा रामदेव क्यों चुप हैं, क्या निजी क्षेत्र जनलोकपाल के दायरे में नहीं आना चाहिए। वस्तुत निजी क्षेत्र को भी सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत लाना चाहिए तभी देश से भ्रष्टाचार के खात्मे की शुरूआत होगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें