सावन का मस्त महीना, रिमझिम पड़ती फुहार मन को तरंगित और आल्हादित कर देता है! लेकिन यह बेदर्दी बरसात नायिका की विरह को नहीं समझ पाती! आइए पढि़ये मेरा सावन गीत-
धीरे धीरे बरसियों बदरवा रे।
भीगे भीगे रे मोरों अचरवा रे।।
संग सखिन बागन में जाऊं
तौऊ मन में मै अकुलाऊं
फूल गुलाब देखि इतरावै
संग भंवरन वो रास रचावै
मेरे प्यासे से रहि गये अधरवा रे
धीरे धीरे बरसियों बदरवा रे।
रैन दिना मोहे चैन न आवै
जियरा मेरौ पिउ पिउ गावै
छोटौ दिवरा ऊ इठलावै
रंग रास मोहे कछु न भावै
मेरौ धक धक करत करेजवा रे
धीरे धीरे बरसियो बदरवा रे
चूनर धानी पहिरै माटी
करी रतियां जांय न काटी
बैरिन कोयलिया बौरावै
और पानी में अगन लगावै
आज बेदर्दी है गयौ जमनवा रे
धीरे धीरे बरसियो बदरवा रे
ननद जिठानी बोली मारै
पिया तेरौ कहूं नैन लड़ावै
मोहे यापै सांच न आवै
प्यारे बलमा चौ तडफावै
मेरौ काबू में नाहें जोवना रे
धीरे धीरे बरसियो बदरवा रे
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आदरणीय डॉ.महाराज सिंह परिहार जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
वाह वाऽऽह… ! इतना प्यारा गीत पढ़ कर मन को तृप्ति मिली है मान्यवर!
चूनर धानी पहिरै माटी
कारी रतियां जाय न काटी
बैरिन कोयलिया बौरावै
और पानी में अगन लगावै
आज बेदर्दी है गयौ जमनवा रे
धीरे धीरे बरसियो बदरवा रे
लोक रंग में रंगी इस रचना के लिए आभार !
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार