वर्तमान समय मूल्यों के पतन का है। ऐसे समय में रचनाकारों का दायित्व बन जाता है कि वे अपने युगधर्म का निर्वाह करें। यह ब्लॉग रचनाधर्मिता को समर्पित है। मेरा मानना है-
युग बदलेगा आज युवा ही भारत देश महान का।
कालचक्र की इस यात्रा में आज समय बलिदान का।
क्या परम आदरणीय चन्द्रभान जी अन्ना की तरह २-४ दिन देश के लिए अन्न त्याग कर सकते हैं. किसी सार्थक मुहिम को इस प्रकार निरर्थक सिद्ध करने का प्रयत्न क्यों? संसद और संविधान की दुहाई देकर जनता की संप्रभुता पर प्रश्नचिन्ह लगाना कितना औचित्यपूर्ण है. यह केवल दो-चार हजार की भीड़ का आंकड़ा चंद्रभान जी को कहाँ से मिला?
क्या परम आदरणीय चन्द्रभान जी अन्ना की तरह २-४ दिन देश के लिए अन्न त्याग कर सकते हैं. किसी सार्थक मुहिम को इस प्रकार निरर्थक सिद्ध करने का प्रयत्न क्यों? संसद और संविधान की दुहाई देकर जनता की संप्रभुता पर प्रश्नचिन्ह लगाना कितना औचित्यपूर्ण है. यह केवल दो-चार हजार की भीड़ का आंकड़ा चंद्रभान जी को कहाँ से मिला?
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