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मंगलवार, 8 जून 2010

बदलाव आयेगा उच्च शिक्षा में


विश्वविद्यालय अनुसंधान आयोग उच्च शिक्षा में हो रही निरंतर गिरावट के कारण अब उसका कायाकल्प करने में जुटा है। मद्रास विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एसपी त्यागराजन की अध्यक्षता में बनी यूजीसी कमेटी की रिपोर्ट को मानव संसाधन विकास ने स्वीकार कर लिया है। सात जून की बैठक में इसके पारित होने के बाद इसे देश के विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में लागू कर दिया जायेगा। इस रिपोर्ट के अनुसार अब उच्च शिक्षा में लगे अध्यापकों को समयमान प्रोन्नति नहीं मिलेगी अपितु उन्हें अनुसंधान कार्यों में भी अपनी उत्कृष्टता दिखानी होगी। अभी तक तो यह स्थिति है कि अगर कोई प्राध्यापक किसी विश्वविद्यालय में प्राध्यापक नियुक्त हो गया तो वह वरिष्ठता के आधार पर प्रोफेसर बन जाता था। यही स्थिति महाविद्यालयों के अध्यापकों की है। उन्हें भी रीडर बना दिया जाता है। यह सर्वविदित है कि हमारी उच्चशिक्षा का स्तर गिरा है। उनको सरकार भारी-भरकम वेतन देती है लेकिन उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। अधिकांश अध्यापक शोध का नाम ही नहीं जानते। लेकिन अब उन्हें शोध कार्यों पर ध्यान देना होगा। उन्हें अपने रिसर्च पेपर्स रिसर्च जर्नल्स में प्रकाशित कराने होंगे। इस कदम से इन अध्यापकों में काफी बेचैनी है। अधिकांश अध्यापक अपनी जुगाड़ से विश्वविद्यालय व कालेजों में नियुक्ति पा जाते हैं। ऐसे बहुत कम शिक्षक हैं जो नेट परीक्षा पास करके शिक्षक की नौकरी में आये हैं। आज विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों का शिक्षक कोई किसी का भाई है तो कोई किसी का पुत्र। कोई किसी की पत्नी है तो कोई किसी की प्रेमिका। सब घल्लूघारा चल रहा है। उनका सारा समय नेतागीरी, चमचागीरी और जुगाड़बाजी में लगा रहता है। वह अपने संस्थान में पढ़ाने जाये या न जाये। छात्र फेल हों या पास। इससे उनकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। सीनियरिटी के आधार पर उनका निरंतर प्रमोशन होता रहता है। शिक्षकों के अनुसंधानपरक होने से उच्चशिक्षा का स्तर उठेगा तथा शिक्षकों की जवाबदेही तयह होगी। आज के अधिकांश शिक्षक का समय ट्यूशनखोरी, दलाली, नेतागीरी, कापी जांचने, विभिन्न कमेटियों में पद हथियाने तक सीमित है। कुछ शिक्षक तो अपने विषयों को भूल चुके हैं। वर्तमान में उच्चशिक्षा संस्थानों में अतिथि, अनुबंधित प्रवक्ता कार्य कर रहे हैं। यह सभी कुलपतियों अथवा प्राचार्य के कृपापात्र हैं और इनकी नियुक्ति बिना विज्ञापन जारी किये की गई है। कालांतर में यही रीडर और प्रोफेसर बन जायेंगे। अतः अतिथि, अनुबंधित प्रवक्ताओं की नियुक्ति पर भी कड़ी निगाह रखी जानी चाहिए।

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