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रविवार, 29 अगस्त 2010

बढ़ता भ्रष्टाचार और निठल्‍ला चिंतन करते बुद्धिजीवी



लोकसभा में सदस्यों के वेतन का मसला उठा। इस संदर्भ में मीडिया ने अपने समाचारों तथा बहस के द्वारा सिद्ध किया कि अधिकांश सांसदों की आय में कई गुना की वृद्धि हुई है। माना जा सकता है कि यह सब दूसरे रास्ते से हुआ होगा जिसपर आज देश चल रहा है। वस्तुतः देश के विकास को घुन की तरह खाये जा रहा है जीवन के हर क्षेत्र में पांव जमा बैठा भ्रष्टाचार। समाज के हर क्षेत्र में जो गिरावट आई है। उसके लिए यही जिम्मेदार है। शिक्षा जगत कभी शिक्षा का मंदिर हुआ करता था। ज्ञान और विज्ञान के लिए इन मंदिरों के आगे लोग श्रद्धा से सिर झुकाते थे। अब भ्रष्टाचार के मकड़जाल में फंसकर अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है। शिक्षा के नाम पर दुकानें खुल गईं है। इनका प्रचार भी आम उत्पादों की तरह हो रहा है। हर कोई पास करने और सुरक्षित भविष्य की गारंटी दे रहा है। पैसे दो डिग्री लो, का मंत्र चहुंओर गुंजायमान हो रहा है। शिक्षक शिक्षक कर्म छोड़कर धन कमाने की अंधी दौड़ में किसी से पीछे नहीं है। वह केवल धन कमाने तक ही सीमित नहीं हैं अपितु उन्होंने अपनी नैतिकता को भी ताक में रख दिया है। चिकित्सा क्षेत्र में भी सेवा की जगह कमाई ने ले ली है। पृथ्वी का साक्षात भगवान अब कसाई में बदल गया है। वह विशुद्ध व्यापारी हो गया है। जिस प्रकार व्यापार में सब कुछ जायज है। उसी प्रकार इस क्षेत्र में व्यापार के सारे घोषित-अघोषित नियम चल रहे हैं। रातों-रात डाक्टर अथवा चिकित्सा व्यवसायी बेतहाशा दौलत के स्वामी हो गये हैं। जहां तक नौकरशाही की बात है। वह तो आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई है। हमारी सेना कभी शौर्य और पराक्रम का प्रतीक मानी जाती थी। इसके अफसरों को देखकर देशवासियों का सिर सम्मान से झुक जाता था। आज वह चोरी-चकारी में व्यस्त है। इसका उदाहरण हम रोज अखबारों में देख रहे हैं। इस भ्रष्टाचार में लेफटीनेंट जनरल से लेकर मेजर जनरल, ब्रिगेडियर, कर्नल आदि अन्य अधिकारी रोज पकड़े जा रहे हैं। उनका कोर्ट मार्शल हो रहा है। व्यापारी मिलावट, कालाबाजारी और मुनाफाखोरी से अकूत धन कमा रहा है। बेबस है तो बस देश का आम आदमी। जो ईमानदार है। मेहनतकश है। वह भगवान अथवा खुदा से डरता है। अफसोस इस बात का है कि अब न तो समाज भ्रष्टाचार के मामले में चिंतित है और न ही सरकार। इस बात चौंकाने वाली है कि जब सरकार को यह पता है कि कुछ लोग कुछ सालों में बेतहाशा सम्पत्तियों के मालिक हो गये। जो सड़क पर घूमते थे। वह करोड़पति हो गये तो फिर सरकार मौन क्यों है ? सरकार का मौन यह दर्शाता है कि उसने भी भ्रष्टाचार को अनुमति दे दी है। हो सकता है कि सरकार इस मुद्दे को इसलिए हवा नहीं दे रही क्योंकि उसके कुछ सम्मानीय लोग भी इस लपेटे में आ सकते हैं। आज जरूरत इस बात की है कि देश में असमानता, महंगाई और शोषण को मिटाना है तो सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़नी होगी। सामाजिक संगठनों सहित बुद्धिजीवियों को भी इस बारे में हस्तक्षेप करने की जरूरत है। वैसे बुद्धिजीवी भी कम नहीं है इस मामले में। अधिकांश कथित बुद्धिजीवी सत्‍ता के चारण भाट हैं और बचे खुले पूंजीपति घरानों के जरखरीद गुलाम हैं। इनसे देश की जनता को कोई बदलाव की आशा नहीं है। कमरे, ब्‍लॉग और फेसबुक पर निठल्‍ला चिंतन कभी देश की वर्तमान तस्‍वीर नहीं बदल सकेगा।

1 टिप्पणी:

  1. आप एकदम सच कहते हैं, भ्रष्टाचार चरम पर है, सब को दिखाई दे रहा है, पर जो इस पर अंकुश लगाने के लिए जिम्मेदार हैं खुद आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं. अब भी अगर आम आदमी आगे नहीं आता तो मैं इसे देश का दुर्भाग्य ही कहूँगा.

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