आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भाजपा को चेताया है कि उसकी ताकत केवल राम मंदिर आंदोलन से ही बढ़ी है। उसके अनदेखी उसके लिए महंगी पड़ सकती है। यह बयान देकर संघ प्रमुख ने स्पष्ट कर दिया कि अगर भाजपा चलेगी तो उस पर संघ की लगाम होगी। अब वह दिन हवा हो गये जबकि अटल और आडवानी संघ के इशारों और निर्देशों की अनदेखी कर देते थे। शायद इसीलिए संघ के इशारे पर नितिन गड़करी जैसे स्थानीय नेता को भाजपा की कमान सौंपी जिससे वह अपनी औकात में रहकर संघ के निर्देशों का अक्षरक्षः पालन कर सकें। संघ प्रमुख की बात से यह तो स्पष्ट हो गया कि भाजपा संघ की राजनीतिक विंग है। वह अपने एजेंडे को भाजपा के माध्यम से लागू करना चाहता है। अतः उन लोगों की आंखें खुल जानी चाहिए जो यह कहते हैं कि संघ और भाजपा अलग अलग हैं। जब हम संघ को साम्प्रदायिक मानते हैं तो भाजपा को साम्प्रदायिक मानने में कोई बुराई नहीं है। आखिर भाजपा को स्वतंत्र अस्तित्व ही नहीं है। उसके अधिकांश संगठन मंत्री संघ के प्रचारक हैं। इसके अतिरिक्त अपवादों को छोड़कर अधिकांश नेता नेकरघारी हैं। कितने अफसोस की बात है कि भाजपा अपने जन्म से आजतक स्वतंत्र दल नहीं बन पायी तथा उसपर संघ का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। वैसे भी भाजपा की न तो कोई नीति है और न ही सिद्धांत। उसका न तो कोई स्वतंत्र दर्शन है और न ही नीति। संघ के इशारे पर ही उसकी नीति और सिद्धांत तय होते हैं। उसकी नियति एक स्वतंत्र दल की न होकर संघ की चेरी की बन गई है। गाहे बगाहे संघ नेता फरमान जारी करते रहते हैं कि भाजपा को यह करना चाहिए और यह नहीं। ऐसी स्थिति में इस लोकतांत्रिक देश में भाजपा कैसे अपने स्वतंत्र स्वरूप को बनाए रख सकती है। वैसे भी भाजपा ने अपनी अलग पहचान के लिए चाल, चरित्र और चेहरे का नारा दिया था। वह अब खोखला साबित हो चुका है। न तो उसकी चाल स्पष्ट है और न ही चेहरा। जहां तक चरित्र की बात है तो उसका चरित्र सत्तान्मुखी हो गया है। किसी भी मुद्दे पर जनांदोलन करने का उसका बूता नहीं है। पहले लोग भाजपा को केन्द्र में विकल्प के रूप में देखते थे। परंतु उसके क्रियाकलापों से जाहिर हो गया कि वह अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। अगर भाजपा पर संघ की छाया नहीं हटी। संघ नेताओं की भाजपा की दैनंदिनी राजनीति में इसी प्रकार दखलंदाजी चलती रही तो निश्चित है कि भाजपा अपना राजनैतिक दल का स्वरूप खो सकती है। युवा पीढ़ी भाजपा में आने से कतरा रही है। पुरानी पीढ़ी या तो थक गई है या उसका भाजपा से मोहभंग हो गया है। भाजपा का कश्मीर में धारा 370, समान नागरिक संहिता आदि मूल विचारधारा सत्ता की धारा में प्रवाहित हो चुकी है। राम मंदिर भी उसके लिए साध्य न होकर साधन मात्र रह गया है। देश की अर्थ, कृषि, खेल व युवा नीति के बारे में उसके विचार स्पष्ट नहीं है। आरक्षण के मुद्दे पर उसकी स्थिति शुतुरमुर्ग की है। जब उसकी नीतियां और नीयत ही स्पष्ट नहीं है तो भविष्य में भाजपा की क्या दुर्दशा होगी। यह इतिहास के गर्भ में है। भाजपा को देश की मजबूत और केन्द्र की विकल्प पार्टी बनने के लिए संघ की छाया से मुक्त होना पड़ेगा। अपनी नीति और अपने सिद्धांत तय करने होंगे। नागपुर की अपेक्षा दिल्ली के फरमानों को प्राथमिकता दी जायेगी तथी भाजपा बच पायेगी।
achchaa vishleshan hai, par bhaajapa swatantr bhee ho jaye to bhee vah swatantr nahee ho sakatee kyonki dimaag to saare nekar dal se hee aaye hue hain.
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