प्रदेश के शिक्षा माफियाओं की नींद उड् गई है कि अब उनका मुनाफाखोरी और नकल का धंधा मंदा पड् जायेगा क्योंकि बी.एड. और बीटीसी स्कूल के मालिकों ने इस धंधे में अकूत सम्पत्ति अर्जित कर ली है। अगर यह मामला उत्तर पद्रेश से सम्बंधित होता तो शिक्षा माफिया अपने मकसद में कामयाब हो जाता लेकिन यह मसला केन्द्रीय सरकार के मानव संसाधान मंत्रालय के अंतर्गत है।
नेशनल काउंसिल फॉर टीचिंग एजूकेशन यानी rashtriy अध्यापक शिक्षा परिषद ने प्राइमरी शिक्षा के विकास और गुणवत्ता के लिए प्राइमरी तथा उच्च प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती के लिए राष्टीय पात्रता परीक्षा (टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट) को पास करना अनिवार्य कर दिया है। इस परीक्षा को पास किये बिना देश के किसी सरकारी प्राइमरी स्कूलों में आगामी सत्र से कोई शिक्षक भर्ती नहीं होंगे। परिषद इस बारे में इस परीक्षा के लिए आवश्यक तैयारी कर रहा है। देर से ही सही सरकार की निगाह में यह बात तो आई कि देश विशेष रूप से उत्तर प्रदेश की प्राइमरी शिक्षा में निरंतर गिरावट हो रही है। इस सच्चाई से सभी परिचित हैं कि जबसे सरकार ने बी.एड. उपाधिधारकों को विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण देकर प्राइमरी टीचर्स के रूप में नियुक्ति की प्रक्रिया अपनाई है। तभी से प्राइमरी शिक्षा में गिरावट आरंभ हो गई। मेरिट के नाम पर इनका चयन होता है। इसी कारण प्रदेश में हाईस्कूल और इंटर परीक्षाओं में नकल माफिया का प्रादुर्भाव हुआ। निजी कालेज और विश्वविद्यालयों में इजाफा हुआ। कारण स्पष्ट है कि आप पैसे देकर जितने चाहों उतने नम्बर प्राप्त कर सकते हो। सरकारी बी.एड. कालेजों में मुश्किल से मेधावी छात्रों को प्रथम श्रेणी मिलती है जबकि निजी कालेजों में 80-90 फीसदी नम्बर मिलना सामान्य बात है। इसीलिए रातोंरात निजी हाईस्कूल, इंटर तथा निजी डिग्री कालेज करोड़पति हो गये। कई सरकारी औेर गैर-सरकारी सर्वेक्षण में यह तथ्य उभर कर आया कि अधिकांश प्राइमरी शिक्षकों को अपने विषय की जानकारी ही नहीं है। वह बच्चों को किस तरीके से पढ़ायें। इससे वह अनभिज्ञ हैं। इसी प्रकार कान्वेंट और पब्लिक स्कूलों से पढ़े लोग अपने अधिकतम प्राप्तांकों के कारण प्राइमरी शिक्षक बन गये जबकि बेसिक शिक्षा की अवधारणा व शिक्षा-शिल्प से ही वह परिचित नहीं हैं। छठवें वेतन आयोग की सिफारिशों से प्राइमरी शिक्षकों के वेतन में कई गुना बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन उसके कई गुना बेसिक शिक्षा में गिरावट आई है। प्राइमरी शिक्षकों के लिए आवश्यक अर्हता प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों को अब राष्टीय पाात्रता परीक्षा देनी होगी। विदित रहे कि इन पदो ंके लिए आवश्यक योग्यता बीटीसी है। यही कारण है कि प्रदेश में जिन लोगों ने बी.एड. की मान्यता ली थी। अब वह शिक्षा माफिया बीटीसी की मान्यता भी ले आये हैं। बी.एड. की तरह यहां भी लाखों रुपये में दाखिले हो रहे हैं। टीईटी होने से उन्हें भी बीटीसी की शिक्षा की गुणवत्ता पर अधिक ध्यान देना होगा क्योंकि परीक्षाएं राष्टीय अध्यापक शिक्षक परिषद के दिशानिर्देशें के अनुसार होंगी। उसमें पास होने पर ही उन्हें बेसिक स्कूलों में शिक्षक की नौक्री मिलेगी। सरकार के इस कदम से प्राइमरी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा तथा नकल व शिक्षा माफियाओं के हौंसले नेस्तनाबूद होंगे। अब इस क्षेत्र में योग्य ही लोग शिक्षक बन पायेंगे। अगर उन्होंने जोड़-तोड़ या नकल माफिया के माध्यम से उच्चतम अंक प्राप्त करके प्राइमरी शिक्षक बनने की गारंटी ले ली है, उन्हें हताशा का सामना करना पड़ेगा। सरकार के इस कदम से देश में प्राइमरी की शिक्षा में गुणात्मक व सकारात्मक परिवर्तन आयेगा तथा जब हमारी प्राथमिक शिक्षा की बुनियाद मजबूत होगी। इससे इन स्कूलों में पढ़े मेधावी छात्र उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर होंगे।
नेशनल काउंसिल फॉर टीचिंग एजूकेशन यानी rashtriy अध्यापक शिक्षा परिषद ने प्राइमरी शिक्षा के विकास और गुणवत्ता के लिए प्राइमरी तथा उच्च प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती के लिए राष्टीय पात्रता परीक्षा (टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट) को पास करना अनिवार्य कर दिया है। इस परीक्षा को पास किये बिना देश के किसी सरकारी प्राइमरी स्कूलों में आगामी सत्र से कोई शिक्षक भर्ती नहीं होंगे। परिषद इस बारे में इस परीक्षा के लिए आवश्यक तैयारी कर रहा है। देर से ही सही सरकार की निगाह में यह बात तो आई कि देश विशेष रूप से उत्तर प्रदेश की प्राइमरी शिक्षा में निरंतर गिरावट हो रही है। इस सच्चाई से सभी परिचित हैं कि जबसे सरकार ने बी.एड. उपाधिधारकों को विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण देकर प्राइमरी टीचर्स के रूप में नियुक्ति की प्रक्रिया अपनाई है। तभी से प्राइमरी शिक्षा में गिरावट आरंभ हो गई। मेरिट के नाम पर इनका चयन होता है। इसी कारण प्रदेश में हाईस्कूल और इंटर परीक्षाओं में नकल माफिया का प्रादुर्भाव हुआ। निजी कालेज और विश्वविद्यालयों में इजाफा हुआ। कारण स्पष्ट है कि आप पैसे देकर जितने चाहों उतने नम्बर प्राप्त कर सकते हो। सरकारी बी.एड. कालेजों में मुश्किल से मेधावी छात्रों को प्रथम श्रेणी मिलती है जबकि निजी कालेजों में 80-90 फीसदी नम्बर मिलना सामान्य बात है। इसीलिए रातोंरात निजी हाईस्कूल, इंटर तथा निजी डिग्री कालेज करोड़पति हो गये। कई सरकारी औेर गैर-सरकारी सर्वेक्षण में यह तथ्य उभर कर आया कि अधिकांश प्राइमरी शिक्षकों को अपने विषय की जानकारी ही नहीं है। वह बच्चों को किस तरीके से पढ़ायें। इससे वह अनभिज्ञ हैं। इसी प्रकार कान्वेंट और पब्लिक स्कूलों से पढ़े लोग अपने अधिकतम प्राप्तांकों के कारण प्राइमरी शिक्षक बन गये जबकि बेसिक शिक्षा की अवधारणा व शिक्षा-शिल्प से ही वह परिचित नहीं हैं। छठवें वेतन आयोग की सिफारिशों से प्राइमरी शिक्षकों के वेतन में कई गुना बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन उसके कई गुना बेसिक शिक्षा में गिरावट आई है। प्राइमरी शिक्षकों के लिए आवश्यक अर्हता प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों को अब राष्टीय पाात्रता परीक्षा देनी होगी। विदित रहे कि इन पदो ंके लिए आवश्यक योग्यता बीटीसी है। यही कारण है कि प्रदेश में जिन लोगों ने बी.एड. की मान्यता ली थी। अब वह शिक्षा माफिया बीटीसी की मान्यता भी ले आये हैं। बी.एड. की तरह यहां भी लाखों रुपये में दाखिले हो रहे हैं। टीईटी होने से उन्हें भी बीटीसी की शिक्षा की गुणवत्ता पर अधिक ध्यान देना होगा क्योंकि परीक्षाएं राष्टीय अध्यापक शिक्षक परिषद के दिशानिर्देशें के अनुसार होंगी। उसमें पास होने पर ही उन्हें बेसिक स्कूलों में शिक्षक की नौक्री मिलेगी। सरकार के इस कदम से प्राइमरी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा तथा नकल व शिक्षा माफियाओं के हौंसले नेस्तनाबूद होंगे। अब इस क्षेत्र में योग्य ही लोग शिक्षक बन पायेंगे। अगर उन्होंने जोड़-तोड़ या नकल माफिया के माध्यम से उच्चतम अंक प्राप्त करके प्राइमरी शिक्षक बनने की गारंटी ले ली है, उन्हें हताशा का सामना करना पड़ेगा। सरकार के इस कदम से देश में प्राइमरी की शिक्षा में गुणात्मक व सकारात्मक परिवर्तन आयेगा तथा जब हमारी प्राथमिक शिक्षा की बुनियाद मजबूत होगी। इससे इन स्कूलों में पढ़े मेधावी छात्र उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर होंगे।
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