राखी का इंसाफ तथा बिग बॉस अपने शो के माध्यम से अश्लीलता के साथ अनैतिक मूल्यों को प्रतिस्थापित करने में लगे हैं। इनके संवाद, अभिनय तथा हाव-भाव दिशाहीनता से ओत-प्रोत हैं। सभी चैनल्स में इस बात ही होड़ लगी है कि कौन अत्यधिक अश्लीलता, नग्नता और भोंड़ापन दिखा सकता है। इन्होंने यह मान लिया है कि दर्शकों को घटिया स्तर के सीरियल्स और रीयल्टी शो ही पसंद हैं। इस समय देश में असंख्य टीवी चैनल्स हो गये हैं। हर भाषा में इनकी बाढ़ आई हुई है। लगातार चौबीस घंटे चलने वाले इन चैनल्स में मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता और देश के परम्परागत सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण जारी है। पाश्चात्य जगत की देखा-देखी रीयल्टी शो दिखाये जाने लगे हैं। हास्य के नाम पर भोंड़ा हास्य सेक्स के साथ परोसा जा रहा है। सीरियल्स में नैतिक मूल्यों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। समाचारों के बारे में तो कहना ही क्या ? एक्सक्लूसिव के नाम पर एक ही समाचार सभी चैनल्स बेशर्मी दिखा रहे हैं। मालूम ही नहीं पड़ता कि यह समाचार कैसे एक्सक्लूसिव हो गया। भूत-प्रेतों के अजीब हंगामों से हमारे चैनल्स भरे पड़े हैं। मालूम ही नहीं पड़ता कि वे दर्शकों को कैसा मनोरंजन और जानकारी देना चाहते हैं। इन चैनल्स में भी भीषण प्रतिस्पर्धा है जिसके कारण एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का षड़यंत्र जारी रहता है। जब दूरदर्शन आरंभ हुआ तो उसने लोगों के स्वस्थ मनोरंजन के लिए बुनियाद, हमलोग, नुक्कड़, उड़ान, चन्द्रकांता, नीम का पेड़ आदि समाजोपयोगी तथा सकारात्मक धारावाहिक प्रसारित किये। रामायण और महाभारत ने अपार लोकप्रियता हासिल की। लेकिन जैसे ही चैनल्स की बाढ़ आई। उसमें धारावाहिकों के कथानक ही बदल दिये। सास भी कभी बहू थी तथा घर घर की कहानी में जिस प्रकार नैतिक मूल्यों की धज्जियां उड़ाई गई। उससे हमारे सांस्कृतिक मूल्य क्षरित हुए। अफसोस इस बात का है कि चैनल्स की मनमानी तथा उच्छंखलता के खिलाफ न तो सरकार ने नकेल कसी और न ही जनता ने इसका प्रतिरोध किया। यह दौर जारी रहा तो निश्चित रूप से हमारे नैतिक मूल्य और सांस्कृतिक विरासत को कोई विलुप्त होने से नहीं बचा पायेगा।
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