जाने क्यों सरकारी अधिकारी और कर्मचारी गांव जाने से घबराते हैं। नौकरी पाने के बाद वे येन-केन-प्रकारेन शहर में ही अक्सर पदस्थ रहते हैं। हांलांकि उनको गांव में भी स्थानांतरित या नियुक्ति दी जाती है लेकिन भ्रष्टाचार के कारण उपस्थिति पंजिका में उनकी फर्जी उपस्थिति दर्ज होती है। वह इसकी बाजिव कीमत भी चुकाते हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रामीणों के हित में साहसिक कदम उठाते हुए 1 दिसम्बर 2010 से नियुक्त चिकित्साधिकारियों की सेवा शर्तों में संशोधन करके उन्हें परामर्शदाता बनने के लिए चार साल गांवों में अनिवार्य रूप से अपनी सेवाएं देनी होंगी। पहले वरिष्ठ चिकित्साधिकारी वरीयताक्रम से परामर्शदाता यानी कंसल्टेंट बन जाते थे। अब उन्हें अपनी प्रोन्नति के लिए ग्रामीणों के बीच चार साल का समय गुजारना होगा। डाक्टरों को सरकार के इस आदेश से निराशा होगी क्योंकि वह शहरी जीवन-शैली के गुलाम हो गये हैं। वह अपना पवित्र दायित्व चिकित्सा सेवा को विस्मृत कर चुके हैं और शहर में धड़ल्ले से प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं। अब सवाल यह पैदा होता है कि कहीं सरकार का यह कदम कागजों में दब कर न रह जाये अथवा डाक्टर फर्जी तरीके से गांव में डयूटी करते रहें। सरकार सहित जनप्रतिनिधियों को भी इस ओर जागरूक रहना होगा कि कहीं इस आदेश का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है।
क्या बात करते हैं. किस गांव में बिजली है, सड़क बनी हुई है. शहर से कौन सा गांव ठीक ढ़ंग से जुड़ा हुआ है. डाक्टर क्या कर लेगा गांव में रहकर..remove word verification..
जवाब देंहटाएंजान कर सच में ख़ुशी हुई कि आप हिंदी भाषा के उद्धार के लिए तत्पर हैं | आप को मेरी ढेरों शुभकामनाएं | मैं ख़ुद भी थोड़ी बहुत कविताएँ लिख लेता हूँ | हाल ही में अपनी किताब भी प्रकाशित की | आप मेरी कविताएँ यहाँ पर पढ़ सकते हैं- http://souravroy.com/poems/
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