शिक्षा के अधिकार विषय पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला पूंजीपतियों को रास नहीं आ रहा। यह सच है कि आजकल शिक्षा एक दुधारू और मुनाफाबटोरू धंधा हो गया है और शिक्षा की दुकानों के मालिकान अरबों, खरबों के मालिक है। सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि 25 फीसदी गरीबों का आरक्षण पूंजीपतियों की मनमानी का शिकार न बन जायेगा अपितु इस पर प्रभावी अमल होना चाहिए। सरकार की संस्तुति पर ही इन कालेजों में गरीबों के दाखिले दिये जाने चाहिए और ऐसे बच्चों की सूची सार्वजनिक होनी चाहिए जिससे इस मामले में पारदर्शिता बनी रहे। इसी प्रकार निजी अस्पतालों में भी गरीबों के इलाज की बाध्यता है लेकिन चिकित्सा दुकानदारों ने उसे मजाक बना दिया है।
विचार-बिगुल
वर्तमान समय मूल्यों के पतन का है। ऐसे समय में रचनाकारों का दायित्व बन जाता है कि वे अपने युगधर्म का निर्वाह करें। यह ब्लॉग रचनाधर्मिता को समर्पित है। मेरा मानना है- युग बदलेगा आज युवा ही भारत देश महान का। कालचक्र की इस यात्रा में आज समय बलिदान का।
गुरुवार, 12 अप्रैल 2012
इन्द्रधनुष ने सम्मानित किए दो व्यक्तित्व
इन्द्रधनुष ने सम्मानित किए दो व्यक्तित्व
आगरा। पहले विचार का प्रादुर्भाव होता है, वही बाद में कलम अथवा तूलिका के माध्यम से समाज को संदेश देता है, कालांतर में वही विचार किसी क्रांति का उद्घोष करते हैं। यह विचार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था इन्द्रधनुष के विनय नगर स्थित कार्यालय पर प्रख्यात भूगोलविद् डॉ. चन्द्रभान एवं कवि शिवसागर के सम्मान समारोह में वक्ताओं ने व्यक्त किये। समारोह की अध्यक्षता स्क्वा.लीडर एच.के. बघेल ने की। कार्यक्रम का आरंभ नरेन्द्रसिंह नीरेश की सरस्वती वंदना से हुआ।सम्मान समारोह के संयोजक डॉ. महाराज सिंह परिहार ने कहा कि इन्द्रधनुष द्वारा अभिनंदित द्वय विद्वान अपने क्षेत्रों में अग्रणी हैं, जहां डॉ. भान को भूगोल के क्षेत्र में विश्वव्यापी ख्याति मिली है वहीं दूसरी ओर अपने मधुर गीत और ब्रजभाषा के काव्य के माध्यम से शिवसागर ने आगरा का नाम हिंदी काव्य जगत में रौशन किया है। कार्यक्रम के मध्य डॉ. चन्द्रभान एवं कवि शिवसागर का पगड़ी बांधकर एवं माल्यार्पण कर अभिनंदन किया गया। इस मौके पर शिवसागर शर्मा के गीतों की सीडी का भी विमोचन हुआ।
इस अवसर पर काव्य समारोह में कविता के इन्द्रधनुषी रंग बिखरे। देवास से पधारे कवि डॉ. राजकुमार रंजन ने कर्णधारों से सवाल किये-
कब तक आजादी की दुल्हन, दूल्हा के घर जायेगी
कब तक इन छद्म कहारों से डोली लूटी जायेगी
गीतकार डॉ. त्रिमोहन तरल ने प्यार की फुहारों को इस प्रकार बयां किया-
छूकर तेरा बदन सुगंधित होने लगे बयार
सजनिया, तू कितनी दमदार, सजनिया
ब्रजभाषा के कवि डॉ. बृजबिहारी बिरजू ने चिठिया मैं कैसे बांचू रे, नहीं मैं ओलम जानू तथा राजकुमार राज ने कितने बदल गये हैं गांव के माध्यम से ग्रामीण जीवन की वेदना को व्यक्त किया। डॉ. महाराज सिंह परिहार ने झूठ फरेबों की नदिया में, गोते खूब लगाता चल, ब्ंाधु आगे बढ़ता चल, सबका माल पचाता चल के माध्यम से भ्रष्टाचार पर चोट की। इस काव्य संध्या में शिवसागर शर्मा, स्क्वा.लीडर एचके बघेल, डॉ. सुषमा सिंह, डॉ. आरएस पाल, रमा वर्मा, जितेन्द्र जिद्दी, अषोक सक्सैना एवं युवा शायर अरविन्द समीर व राजकुमारी उपाध्याय ने काव्यपाठ किया। आभार ज्ञापित केपी सिंह व संचालन डॉ. महाराज सिंह परिहार ने किया। समारोह में मंजू माहेश्वरी, डॉ. आरएस पाल, डीपी सिंह एडवोकेट, जेपी सिंह, ओमप्रकाश पाल, दुर्गेश परिहार, किताब सिंह यादव आदि मौजूद थे।
डॉ. महाराज सिंह परिहार, संयोजक- 9411404440
शनिवार, 26 नवंबर 2011
बुधवार, 5 अक्तूबर 2011
आगरा की रामलीला में किराये का रावण
रामलीला की 147 वर्ष की शानदार परम्परा टूटी दशहरा पर किराये का रावण मरेगा लोकनाट्य रामलीला से लोकजन गायब रामलीला कमेटी का जातिवादी चेहरा बेनकाब
आगरा। उत्तर भारत की प्रमुख रामलीला के लिए आज का दिन शर्मनाक होगा जब रामलीला कमेटी की विवेकशून्यता और जातिवादी मानसिकता के कारण दशहरा पर किराये का रावण मर्यादा पुरुषोत्तम राम के बाणों से धराशायी होगा। 147 साल से लगातार आगरा का कुशवाहा परिवार जो रामलीला में रावण परिवार का अभिनय करता था। वह नदारद रहेगा।
कभी इस शहर में रामलीला की धूम रहती थी। इसे एक लोकपर्व के रूप में नगर ही नहीं अपितु जिले के लोग मनाते थे। रामलीला के तहत राम बरात को देखने के लिए शहर में आस-पास के जिलों के लोग भी मेहमान के रूप में आते थे और पूरी रात राम बरात का आनंद लेते थे। लेकिन बदलते परिवेश ने रामलीला के परम्परागत स्वरूप को नष्ट कर दिया है। कभी इस लोकनाट्य में लोक की भागीदारी होती थी लेकिन वह अब समाप्त हो गई है। अब यह विशुद्ध राजनैतिक अखाड़े में तबदील हो गई है।
वह जमाना याद आता है कि जब आगरा के बच्चे ही रामलीला के विभिन्न पा़त्रों के रूप में अभिनय करते थे। जिस मोहल्ले के बच्चे राम, लक्ष्मण, सीता, भरत या श़त्रुघ्न बनते थे। वहां के लोगों में उत्साह का समंदर ठाठ मारता था। एक गर्व और स्वाभिमान की अनुभूति होती थी। पूरा मोहल्ला बिना किसी धर्म जाति के भेदभाव के रामलीला देखने जाता था और अपने आप-पास के बच्चों को जब वह अभिनय और मंचन करते देखता तो यकायक ही उनके मुंह से निकल जाता था ‘‘सियावर रामचंद्र की जय‘।
लेकिन अब नजारा बदल गया है। विगत 147 वर्षों से रामलीला में रावण दल का अभिनय करने वाले लोग मंच से नदारद हो गये हैं। पूरे शहर की रामलीला मुट्ठी भर लोगों की गिरफ़त में आ गई है। अब रामलीला में मा़त्र औपचारिकताएं ही पूरी हो रहीं हैं। उसे देखने वालो जनसैलाब गायब हो गया है। मंच के आस-पास रामलीला कमेटी से जुड़े लोग व उनके परिजन ही मंडराते दिखाई देते हैं। उसमें शहर की आम जनता की भागीदारी समाप्त हो गई है।
यह आगरा का दुर्भाग्य रहा कि यहां की लगभग सभी लोककलाएं व्यापारियों ने अपने कब्जे में कर लीं। यहां की जीवंत कला भगत के साथ भी यह हुआ। वह दूसरी बात है कि रंगलीला के माध्यम से इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास जारी है। यह कलाकारों की नगरी आगरा के लिए दुर्भाग्य और शर्म की बात है कि इसमें मंचन करने वाले कलाकार पेशेवर हैं और उन्हें लगभग छह लाख रुपये देकर बुलाया गया है। रावण की भूमिका अदा करने वाले वीरेन्द्र कुमार उर्फ राजू को रामलीला कमेटी की हठधर्मिता और जातिवादी मनोवृत्ति के कारण अलग होना पड़ा। इस आलेख का लेखक इस बात का साक्षी है कि विगत कई वर्षों से रावण दल का अपमान रामलीला कमेटी कर रही है। वह नजारा कितना शर्मनाक लगता था जब दिग्विजयी रावण जल संस्थान के टेंकर से अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी पीते थे और उधर किराये के कलाकारों को ससम्मान मिनरल वाटर की बोतलें उपलब्ध करायीं जाती हैं।
वर्तमान संदर्भ में रामलीला और जनकपुरी कमेटी के टकराव को देखते हुए लगता है कि इस लोकनाट्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वैसे एक बात की तारीफ की जानी चाहिए कि पहली बार जनकपुरी कमेटी ने रामलीला कमेटी के वर्चस्व को चुनौती दी है। रावण दल द्वारा इस रामलीला से अपने को अलग कर लेने से इसका लोकस्वरूप एवं लोकव्यापकता समाप्त हो गई है।
देखने से पता चलता है कि रामलीला कमेटी में जाति विशेष के तथा दल विशेष के लोगों का ही वर्चस्व है। इस कमेटी में अधिकांश लोग व्यापारी हैं और जैसी कि इस वर्ग की मानसिकता केवल मुनाफा कमाने में होती है। वहां के हर फैसले इसी तथ्य को ध्यान में रखकर किये जाते हैं। इस कमेटी में शहर की बहुसंख्यक आबादी दलित व पिछड़ों को दूर रखा जाता है। हां अपने स्वार्थों के लिए अथवा प्रशासन पर दबाव डालने के लिए प्रभावशाली दल के राजनेताओं अवश्य अध्यक्ष पद पर सुशोभित कर दिया जाता है। राम के नाम पर जनकपुरी के लिए खुलेआम बोली लगती है। जो मर्यादा पुरुषोत्तम राम मर्यादा और पिता के वचन का पालन करने के लिए वनवास गये। वहां उन्हें समाज के शोषित वर्गों का समर्थन और सहायता मिली। यह स्पष्ट है कि उन्होंने भीलनी के जूठे बेर खाये। वानर आदिवासियों ने उनकी रावण युद्ध में पूरी सहायता की। केवट ने उनकी जलयात्रा में पर्याप्त मदद की। भगवान राम के इन्हीं विशिष्ट सहयोगियों के वंशजों को रामलीला कमेटी कमतर आंकती आ रही है और इनका अपमान और उपेक्षा करने से भी पीछे नहीं रहती।
जब सभी क्षेत्रों में पुरानी परम्पराओं के स्थान पर मानववादी दृष्टिकोण हावी है। जब सभी लोग समान है तो फिर रामलीला कमेटी से दलित और पिछड़े गायब क्यों हैं ? आगरा के कलाकारों को इस महत्वपूर्ण लोकनाट्य में अभिनय और मंचन करने का अवसर क्यों नहीं मिलता ? रामलीला के नाम पर वर्ष भर जो चंदा होता है, क्या उसका लेखा परीक्षण हुआ ? क्या रामलीला कमेटी ने यह साहस किया कि वह अपने आय-व्यय को सार्वजनिक करे ? इन सब सवालों का जबाव यही है कि वर्चस्ववादी लोग किसी भी कीमत पर इस महत्वपूर्ण लोकनाट्य में आम जनता की भागीदारी नहीं चाहते ? इसके लिए शहर के बुद्धिजीवियों, कलाकारों, साहित्यकारों, स्वतंत्र चिंतकों और समाजसेवियों को आगे आना होगा और इस महत्वूपर्ण लोकनाट्य रामलीला के भविष्य का नये सिरे से ताना बाना बुनना होगा। बिना लोक के लोकनाट्य कैसा ?
कभी इस शहर में रामलीला की धूम रहती थी। इसे एक लोकपर्व के रूप में नगर ही नहीं अपितु जिले के लोग मनाते थे। रामलीला के तहत राम बरात को देखने के लिए शहर में आस-पास के जिलों के लोग भी मेहमान के रूप में आते थे और पूरी रात राम बरात का आनंद लेते थे। लेकिन बदलते परिवेश ने रामलीला के परम्परागत स्वरूप को नष्ट कर दिया है। कभी इस लोकनाट्य में लोक की भागीदारी होती थी लेकिन वह अब समाप्त हो गई है। अब यह विशुद्ध राजनैतिक अखाड़े में तबदील हो गई है।
वह जमाना याद आता है कि जब आगरा के बच्चे ही रामलीला के विभिन्न पा़त्रों के रूप में अभिनय करते थे। जिस मोहल्ले के बच्चे राम, लक्ष्मण, सीता, भरत या श़त्रुघ्न बनते थे। वहां के लोगों में उत्साह का समंदर ठाठ मारता था। एक गर्व और स्वाभिमान की अनुभूति होती थी। पूरा मोहल्ला बिना किसी धर्म जाति के भेदभाव के रामलीला देखने जाता था और अपने आप-पास के बच्चों को जब वह अभिनय और मंचन करते देखता तो यकायक ही उनके मुंह से निकल जाता था ‘‘सियावर रामचंद्र की जय‘।
लेकिन अब नजारा बदल गया है। विगत 147 वर्षों से रामलीला में रावण दल का अभिनय करने वाले लोग मंच से नदारद हो गये हैं। पूरे शहर की रामलीला मुट्ठी भर लोगों की गिरफ़त में आ गई है। अब रामलीला में मा़त्र औपचारिकताएं ही पूरी हो रहीं हैं। उसे देखने वालो जनसैलाब गायब हो गया है। मंच के आस-पास रामलीला कमेटी से जुड़े लोग व उनके परिजन ही मंडराते दिखाई देते हैं। उसमें शहर की आम जनता की भागीदारी समाप्त हो गई है।
यह आगरा का दुर्भाग्य रहा कि यहां की लगभग सभी लोककलाएं व्यापारियों ने अपने कब्जे में कर लीं। यहां की जीवंत कला भगत के साथ भी यह हुआ। वह दूसरी बात है कि रंगलीला के माध्यम से इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास जारी है। यह कलाकारों की नगरी आगरा के लिए दुर्भाग्य और शर्म की बात है कि इसमें मंचन करने वाले कलाकार पेशेवर हैं और उन्हें लगभग छह लाख रुपये देकर बुलाया गया है। रावण की भूमिका अदा करने वाले वीरेन्द्र कुमार उर्फ राजू को रामलीला कमेटी की हठधर्मिता और जातिवादी मनोवृत्ति के कारण अलग होना पड़ा। इस आलेख का लेखक इस बात का साक्षी है कि विगत कई वर्षों से रावण दल का अपमान रामलीला कमेटी कर रही है। वह नजारा कितना शर्मनाक लगता था जब दिग्विजयी रावण जल संस्थान के टेंकर से अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी पीते थे और उधर किराये के कलाकारों को ससम्मान मिनरल वाटर की बोतलें उपलब्ध करायीं जाती हैं।
वर्तमान संदर्भ में रामलीला और जनकपुरी कमेटी के टकराव को देखते हुए लगता है कि इस लोकनाट्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वैसे एक बात की तारीफ की जानी चाहिए कि पहली बार जनकपुरी कमेटी ने रामलीला कमेटी के वर्चस्व को चुनौती दी है। रावण दल द्वारा इस रामलीला से अपने को अलग कर लेने से इसका लोकस्वरूप एवं लोकव्यापकता समाप्त हो गई है।
देखने से पता चलता है कि रामलीला कमेटी में जाति विशेष के तथा दल विशेष के लोगों का ही वर्चस्व है। इस कमेटी में अधिकांश लोग व्यापारी हैं और जैसी कि इस वर्ग की मानसिकता केवल मुनाफा कमाने में होती है। वहां के हर फैसले इसी तथ्य को ध्यान में रखकर किये जाते हैं। इस कमेटी में शहर की बहुसंख्यक आबादी दलित व पिछड़ों को दूर रखा जाता है। हां अपने स्वार्थों के लिए अथवा प्रशासन पर दबाव डालने के लिए प्रभावशाली दल के राजनेताओं अवश्य अध्यक्ष पद पर सुशोभित कर दिया जाता है। राम के नाम पर जनकपुरी के लिए खुलेआम बोली लगती है। जो मर्यादा पुरुषोत्तम राम मर्यादा और पिता के वचन का पालन करने के लिए वनवास गये। वहां उन्हें समाज के शोषित वर्गों का समर्थन और सहायता मिली। यह स्पष्ट है कि उन्होंने भीलनी के जूठे बेर खाये। वानर आदिवासियों ने उनकी रावण युद्ध में पूरी सहायता की। केवट ने उनकी जलयात्रा में पर्याप्त मदद की। भगवान राम के इन्हीं विशिष्ट सहयोगियों के वंशजों को रामलीला कमेटी कमतर आंकती आ रही है और इनका अपमान और उपेक्षा करने से भी पीछे नहीं रहती।
जब सभी क्षेत्रों में पुरानी परम्पराओं के स्थान पर मानववादी दृष्टिकोण हावी है। जब सभी लोग समान है तो फिर रामलीला कमेटी से दलित और पिछड़े गायब क्यों हैं ? आगरा के कलाकारों को इस महत्वपूर्ण लोकनाट्य में अभिनय और मंचन करने का अवसर क्यों नहीं मिलता ? रामलीला के नाम पर वर्ष भर जो चंदा होता है, क्या उसका लेखा परीक्षण हुआ ? क्या रामलीला कमेटी ने यह साहस किया कि वह अपने आय-व्यय को सार्वजनिक करे ? इन सब सवालों का जबाव यही है कि वर्चस्ववादी लोग किसी भी कीमत पर इस महत्वपूर्ण लोकनाट्य में आम जनता की भागीदारी नहीं चाहते ? इसके लिए शहर के बुद्धिजीवियों, कलाकारों, साहित्यकारों, स्वतंत्र चिंतकों और समाजसेवियों को आगे आना होगा और इस महत्वूपर्ण लोकनाट्य रामलीला के भविष्य का नये सिरे से ताना बाना बुनना होगा। बिना लोक के लोकनाट्य कैसा ?
गुरुवार, 25 अगस्त 2011
विचार-बिगुल: अन्ना की हठ और उसके दुष्परिणाम लेखक डॉ. चन्द्रभान
विचार-बिगुल: अन्ना की हठ और उसके दुष्परिणाम लेखक डॉ. चन्द्रभान: अन्ना की हठ और उसके दुष्परिणाम
लेखक डॉ. चन्द्रभान
अन्ना का जनलोकपाल बिल, जो पाँच व्यक्तियों ने तैयार किया है, 30 अगस्त तक संसद पास हो...
लेखक डॉ. चन्द्रभान
अन्ना का जनलोकपाल बिल, जो पाँच व्यक्तियों ने तैयार किया है, 30 अगस्त तक संसद पास हो...
अन्ना की हठ और उसके दुष्परिणाम लेखक डॉ. चन्द्रभान
अन्ना की हठ और उसके दुष्परिणाम
लेखक डॉ. चन्द्रभान
अन्ना का जनलोकपाल बिल, जो पाँच व्यक्तियों ने तैयार किया है, 30 अगस्त तक संसद पास हो जाना चाहिए अन्यथा अन्नाजी रामलीला मैदान नही छोड़ेगे और अपना आमरण अनशन जारी रखेंगे। यह जिद सरकार के लिये बहुत बड़ी धमकी और देश के प्रजातन्त्रीय प्रणाली के लिये बड़ा खतरा।
हमारे संविधान जिसके रचियता श्री अम्बेदकर सहित डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू, अच्युत पटवर्धन, हरिविष्णु कामथ, हृदयनाथ कुंजरू जैसे कई विद्वान थे, ने केवल जनता के चुने हुये सदस्यों को ही यह अधिकार दिया है कि वे संसद में जनता के मुद्दो पर चर्चा करें और कानून बनायें। जिन लोगों ने अन्ना का बिल तैयार किया है। उनमें से एक भी जनता का नुमायन्दा नहीं फिर भी वे चाहते है कि उनका बिल संसद पास करे और वह भी उनके फरमान के अनुसार 30 अगस्त तक। इसका तात्पर्य यह हुआ कि अन्नाजी जनता के द्वारा चुने गये सांसदों पर्याप्त समय देने को भी तैयार नहीं ताकि उस बिल पर गहराई से विचार विमर्श या चर्चा कर सकें। सीधे-सीधे अन्नाजी संसद को धमकी दे रहे है कि या तो मेरा बिल पास करो नहीं तो मैं खाना पीना त्यागकर आत्महत्या कर लूँगा और मेरे समर्थक देश में अराजकता का ताण्डव फैला देंगे। अन्ना जी की इस जिद्द का सीधा तात्पर्य यह है कि सिविल सोसायटी के पाँच सदस्य संसद से भी ऊपर हैं। पाँच सदस्यों की अन्ना की यह चौकड़ी देश की निर्वाचित संसद से ज्यादा शक्तिशाली है। उनकी निगाह में असली संसद बौनी और पंगु है।
इस समय कुछ भ्रष्ट मंत्रियों की काली करतूतों के कारण सरकार सहमी हुई है। उसने इन्हें जेल का रास्ता दिखाकर प्रशंसनीय कार्य किया है। लोकपाल बिल सदन में पेश कर भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी कटिबद्धता का परिचय दिया है। लेकिन कॉमनवैल्थ और 2जी के घोटालों ने सरकार का मनोबल तोड़कर रख दिया है। ऐसी परिस्थितियों में सरकार अन्ना से निपटने के लिये कोई साहसिक कदम उठाने की हिम्मत नहीं कर पा रही है।
विपक्ष मौके का फायदा उठाने के लिये तैयार बैठा है। जो लोग वोटों से सत्ता हासिल नहीं कर पायें, वे अब अन्ना को मुखौटा बनाकर देश की कुर्सी हथियाना चाहते है। लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम है कि दबाब में आकर अन्ना ने अपना बिल अगर पास करा लिया तो वह विरोधी पार्टियों के लिये भी उतना ही घातक सिद्ध होगा, जितना कि सत्ताधारी पार्टी के लिये। संसद कमजोर पडेगी और देश कमजोर होगा। सरकार और संसद अपना बिल पास करने की अधिकार खो बैठेगी। अन्ना स्वयं कहते है कि यह केवल एक बिल की बात नही है। अभी बहुत से मुद्दे है जिसपर लड़ाई लड़नी है। इससे स्पष्ट है अन्ना दूसरे बिलों का मसौदा भी अपने चन्द लोगों से ही तैयार करायेंगे और संसद को ढेंगा दिखाते हुये पास भी करायेंगे। ऐसी कठपुतली और लाचार संसद देश का और समाज का कितना भला कर सकेगी। यह विचारणीय विषय है।
संसद कमजोर तो देश कमजोर। बाहरी शक्तियाँ तो यह चाहती हैं कि प्रगति की ओर बढ़ते हुये इस देश को कैसे रोका जाय। ये लोग तो ऐसे अवसरों की ताक में बैठे रहते हैं। यही कारण है कि हमारी प्रगति से जलने वाले देश अपने अखबारों के माध्यम से अन्ना का समर्थन कर रहे हैं। अफसोस है कि हमारा भ्रमित युवक विदेशी शत्रुओं की चाल को समझ नही पा रहे है कि अन्ना जी की मुहिम के पीछे बहुत से ऐसे लोग है जो स्वयं भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुये हैं। कर्नाटक में भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री आज अन्ना के समर्थन में भूख हड़ताल करने जा रहे हैं। क्या ऐसे लोगों के समर्थन से भ्रष्टाचार समाप्त होगा?
बात केवल भ्रष्टाचा के मुद्दे की नहीं है। बात संसद एवं संसद की गरिमा की है। संसद के संवैधानिक अधिकारों की है। आज एक अन्ना है और उसकी हठ है। कल कोई दूसरा अन्ना होगा। एक अरब 25 करोड़ की आबादी वाले देश में दूसरा अन्ना तैयार करने में कितना समय लगेगा ? पूंजीपतियों के लिये तो यह काम बहुत आसान है। बस कुछ करोड़ रुपये खर्च कीजिये बहुत से तथाकथित समाज सेवियों की सेना तैयार हो जायेगी। उनमें से कोई भी कुछ करोड़ों के लालच में आकरअनशन करने को तत्पर हो जायेगा। पड़ोसी देश में आतंकवादी संगठन इसी प्रकार से लोगों को आत्मघाती बना रहे हैं। कसाब इसका जीता-जागता उदाहरण है। उसके परिवार को कुछ करोड़ रुपये दे दिये गये थे। और कसाब मुम्बई पर हमला कर, स्वयं मौत के मुँह में जाने को तैयार हो गया।
यदि कुछ अति-संपन्न लोग चाहते हैं कि कोई बिल ऐसा बने जिसमें उनके ही हितों की रक्षा हो तो वे किसी भी व्यक्ति को लालच देकर राजी कर लेंगे और जंतर-मंतर पर जाकर कुछ किराये के टट्टुओं की मदद से भूख हड़ताल पर बैठा देंगे। कुछ टीवी चैनल्स को पटा लेंगे और अपने मनमाफिक बिल पास करा लेंगे। वर्तमान परिस्थितियों में देश के समक्ष अनेक ज्वलंत विषय हैं। इनमें से बहुत से विषय ऐसे है जिनसे कुछ लोग वर्षों से दुखी हैं। उदाहरणार्थ उच्च वर्ग के अधिकांश लोग आरक्षण के बहुत खिलाफ हैं। वे चाहते हैं कि सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी और ओबीसी का आरक्षण समाप्त होना चाहिए। अन्ना प्रकरण से उनकी राह बहुत आसान हो जायेगी। बस किसी नामी गिरामी आदमी को अनशन करने के लिए इस शर्त पर राजी करलें कि वह अपना अनशन तब तक नहीं तोड़ेंगे जब तक संसद आरक्षण समाप्त करने का बिल पास न कर दे। अन्ना जी का बिल पास हो जाने पर शायद नक्सलवादी भी प्रेरणा लेंगे और अपने हजारों, लाखों युवक-युवतियों को अनशन पर बैठा देंगे और शर्त रखेंगे कि उनका अनशन तब तक जारी रहेगा जब तक लाल कॉरीडोर को एक स्वतंत्र राष्ट्र नहीं बन जायेगा। माओवादी संगठन में तो हजारों युवक-युवतियां इस मुद्दे पर बलिदान देने को भी सहर्ष तत्पर हो जायेंगे। किसी भी सरकार की यह कहने की हिम्मत नहीं होगी कि यह अनशन असंवैधानिक है।
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है। जनता तक सही बात पहुंचाने की उनकी जिम्मेदारी के साथ पुनीत कर्तव्य भी है। अन्ना के आंदोलन में हमारे पत्रकार एवं टीवी चैनल्स का जोश देखते ही बनता है। इनकी रिपोर्टिंग में निष्पक्षता की कमी है। सावंत कमीशन की रिपोर्ट में अन्ना के खिलाफ लगाये सभी आरोप सिद्ध पाये गये लेकिन किसी भी समाचार पत्र ने इसे छापने का साहस नहीं किया। क्या भारत की जनता को यह जानने का अधिकार नहीं है कि अन्ना और उनके साथियों के ट्रस्ट अथवा एनजीओ के बारे में सुप्रीम कोर्ट जज की क्या राय है। अन्ना साहब के खिलाफ लगे चार्जों की छानबीन करने में जस्टिस सावन्त को तीन वर्षों का समय लगा। क्या ये चार्ज मामूली हो सकते हैं ? टी0वी0 चैनल ने देश के जाने माने व्याक्तियों से राय मांगी और जनता के सामने रखा। पत्रकारिता के इन धुरन्धरों ने यह क्यों नहीं उचित समझा कि जस्टिस सावन्त का टीवी पर साक्षात्कार लिया जाय और उनकी राय को उतना ही कवरेज दिया जाये जितना अन्ना और उसके सहयोगियों को दिया जा रहा है। क्या यह पत्रकारिता की गरिमा और मर्यादा के लिए उचित है कि एक ही पक्ष जनता के सामने परोसा जाय।
इस आंदोलन के बारे में हमारे समाचार पत्रों और टी0वी0 चैनल्स ही भ्रम फैला रहे हैं। हर शहर का स्थानीय अखबार कह रहा है कि पूरा शहर अन्ना के साथ है। इसी प्रकार सभी अखबार और चैनल्स दावा कर रहे हैं कि पूरा देश अन्ना के साथ है। यह तो मीडिया की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को खतरे में डालकर इनके मालिकान टीआरपी अथवा अखबारों का प्रसार बढ़ा रहे हैं। अन्नाजी रिहाई पर तिहाड़ जेल के सामने केवल 4-5 हजार समर्थक मौजूद थे। मशाल मार्च में 15 हजार दर्शक तथा समर्थक थे। रामलीला मैदान में भी इतने ही लोग मौजूद हैं। जबकि दिल्ली एनसीआर की आबादी लगभग एक करोड़ से अधिक है। इस प्रकार एक करोड़ में से केवल 10-15 हजार अन्ना जी के समर्थन में सड़कों पर आये। क्या इसे जनता का सैलाब कहना उचित है। यह तो दिल्ली की कुल जनसंख्या का आधा प्रतिशत भी नहीं बैठता। एक चर्चित टीवी चैनल ने 16 नगरों में एक सर्वेक्षण किया जिसमें केवल 8 हजार व्यक्ति से अन्ना के आंदोलन सम्बंधी प्रश्न पूछे गये। प्रश्नों के आधार पर निष्कर्ष निकाल लिया गया कि देश की 70 फीसदी जनता अन्ना का समर्थन करती है। क्या 8 हजार लोगों को सम्पूर्ण देश की जनता की राय का प्रतीक माना जा सकता है ? क्या इस प्रकार के आंकड़े देश की सही तस्वीर प्रस्तुत कर रहे हैं ? वस्तुत: सैटेलाइट चैनल्स द्वारा देश की जनता को गुमराह किया जा रहा है। इस प्रकार से दुष्प्रचार से प्रजातंत्र तथा समाज दोनों को क्षति पहुंचत रही है। अत: देश के युवकों को सावधान रहना चाहिए और सही दिशा में कदम उठाना चाहिए।
प्रत्येक नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझे तथा भ्रष्टाचार को मिटाने में सहयोग करे। भ्रष्टाचार एक जटिल मसला है। इसकी जड़े बहुत गहरी हैं। अनशन के दवाब में एक बिल के पास हो जाने यह मिटने वाला नहीं है। जो लोग भ्रष्टाचार के वृक्ष को वर्षों से सींच रहे हैं, वे लोग बहुत शक्तिशाली एवं शातिर हैं। अन्ना के सहारे वे अपनी पकड़ सरकार और समाज पर मजबूत करते जा रहे हैं । विचारणीय विषय है कि इस आंदोलन पर करोड़ों रुपया फूंका जा चुका है और कितने ही करोड़ रुपये और स्वाहा होने जा रहे हैं। कुछ खास कारपोरेट घराने इसमें महत्वूपर्ण योगदान दे रहे हैं। यह प्रश्न ही विचलित करता है कि केवल मुनाफे पर निगाह रखने वाला पूंजीपति इस आंदोलन पर अपना धन क्यों लुटा रहा है ? अपने चहेते लोगों के हाथों देश की सत्ता सौंपकर यह लोग भोली-भाली जनता से वसूल करेंगे जो आज भ्रष्टाचार से मुक्ति पाना चाहती है। सपने दिखाना बहुत आसान है परंतु साकार करना बहुत ही दुश्कर है7 ऐसा न हो कि हमारी संवैधानिक व्यवस्था की भी बलि चढ़ जाये और भ्रष्टाचार का भूत और अधिक भयावह हो जाये।
वस्तुत: संसद पर अपना फैसला थोपना और अनशन की धमकी से बिल पारित कराना देश के संवैधानिक ढांचे को तहस-नहस कर देगा।
लेखक चिंतक व विचारक एवं आरबीएस महाविद्यालय आगरा के पूर्व भूगोलविभागाध्यक्ष हैं ।
मोबाइल - 9411400657
हमारे संविधान जिसके रचियता श्री अम्बेदकर सहित डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू, अच्युत पटवर्धन, हरिविष्णु कामथ, हृदयनाथ कुंजरू जैसे कई विद्वान थे, ने केवल जनता के चुने हुये सदस्यों को ही यह अधिकार दिया है कि वे संसद में जनता के मुद्दो पर चर्चा करें और कानून बनायें। जिन लोगों ने अन्ना का बिल तैयार किया है। उनमें से एक भी जनता का नुमायन्दा नहीं फिर भी वे चाहते है कि उनका बिल संसद पास करे और वह भी उनके फरमान के अनुसार 30 अगस्त तक। इसका तात्पर्य यह हुआ कि अन्नाजी जनता के द्वारा चुने गये सांसदों पर्याप्त समय देने को भी तैयार नहीं ताकि उस बिल पर गहराई से विचार विमर्श या चर्चा कर सकें। सीधे-सीधे अन्नाजी संसद को धमकी दे रहे है कि या तो मेरा बिल पास करो नहीं तो मैं खाना पीना त्यागकर आत्महत्या कर लूँगा और मेरे समर्थक देश में अराजकता का ताण्डव फैला देंगे। अन्ना जी की इस जिद्द का सीधा तात्पर्य यह है कि सिविल सोसायटी के पाँच सदस्य संसद से भी ऊपर हैं। पाँच सदस्यों की अन्ना की यह चौकड़ी देश की निर्वाचित संसद से ज्यादा शक्तिशाली है। उनकी निगाह में असली संसद बौनी और पंगु है।
इस समय कुछ भ्रष्ट मंत्रियों की काली करतूतों के कारण सरकार सहमी हुई है। उसने इन्हें जेल का रास्ता दिखाकर प्रशंसनीय कार्य किया है। लोकपाल बिल सदन में पेश कर भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी कटिबद्धता का परिचय दिया है। लेकिन कॉमनवैल्थ और 2जी के घोटालों ने सरकार का मनोबल तोड़कर रख दिया है। ऐसी परिस्थितियों में सरकार अन्ना से निपटने के लिये कोई साहसिक कदम उठाने की हिम्मत नहीं कर पा रही है।
विपक्ष मौके का फायदा उठाने के लिये तैयार बैठा है। जो लोग वोटों से सत्ता हासिल नहीं कर पायें, वे अब अन्ना को मुखौटा बनाकर देश की कुर्सी हथियाना चाहते है। लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम है कि दबाब में आकर अन्ना ने अपना बिल अगर पास करा लिया तो वह विरोधी पार्टियों के लिये भी उतना ही घातक सिद्ध होगा, जितना कि सत्ताधारी पार्टी के लिये। संसद कमजोर पडेगी और देश कमजोर होगा। सरकार और संसद अपना बिल पास करने की अधिकार खो बैठेगी। अन्ना स्वयं कहते है कि यह केवल एक बिल की बात नही है। अभी बहुत से मुद्दे है जिसपर लड़ाई लड़नी है। इससे स्पष्ट है अन्ना दूसरे बिलों का मसौदा भी अपने चन्द लोगों से ही तैयार करायेंगे और संसद को ढेंगा दिखाते हुये पास भी करायेंगे। ऐसी कठपुतली और लाचार संसद देश का और समाज का कितना भला कर सकेगी। यह विचारणीय विषय है।
संसद कमजोर तो देश कमजोर। बाहरी शक्तियाँ तो यह चाहती हैं कि प्रगति की ओर बढ़ते हुये इस देश को कैसे रोका जाय। ये लोग तो ऐसे अवसरों की ताक में बैठे रहते हैं। यही कारण है कि हमारी प्रगति से जलने वाले देश अपने अखबारों के माध्यम से अन्ना का समर्थन कर रहे हैं। अफसोस है कि हमारा भ्रमित युवक विदेशी शत्रुओं की चाल को समझ नही पा रहे है कि अन्ना जी की मुहिम के पीछे बहुत से ऐसे लोग है जो स्वयं भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुये हैं। कर्नाटक में भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री आज अन्ना के समर्थन में भूख हड़ताल करने जा रहे हैं। क्या ऐसे लोगों के समर्थन से भ्रष्टाचार समाप्त होगा?
बात केवल भ्रष्टाचा के मुद्दे की नहीं है। बात संसद एवं संसद की गरिमा की है। संसद के संवैधानिक अधिकारों की है। आज एक अन्ना है और उसकी हठ है। कल कोई दूसरा अन्ना होगा। एक अरब 25 करोड़ की आबादी वाले देश में दूसरा अन्ना तैयार करने में कितना समय लगेगा ? पूंजीपतियों के लिये तो यह काम बहुत आसान है। बस कुछ करोड़ रुपये खर्च कीजिये बहुत से तथाकथित समाज सेवियों की सेना तैयार हो जायेगी। उनमें से कोई भी कुछ करोड़ों के लालच में आकरअनशन करने को तत्पर हो जायेगा। पड़ोसी देश में आतंकवादी संगठन इसी प्रकार से लोगों को आत्मघाती बना रहे हैं। कसाब इसका जीता-जागता उदाहरण है। उसके परिवार को कुछ करोड़ रुपये दे दिये गये थे। और कसाब मुम्बई पर हमला कर, स्वयं मौत के मुँह में जाने को तैयार हो गया।
यदि कुछ अति-संपन्न लोग चाहते हैं कि कोई बिल ऐसा बने जिसमें उनके ही हितों की रक्षा हो तो वे किसी भी व्यक्ति को लालच देकर राजी कर लेंगे और जंतर-मंतर पर जाकर कुछ किराये के टट्टुओं की मदद से भूख हड़ताल पर बैठा देंगे। कुछ टीवी चैनल्स को पटा लेंगे और अपने मनमाफिक बिल पास करा लेंगे। वर्तमान परिस्थितियों में देश के समक्ष अनेक ज्वलंत विषय हैं। इनमें से बहुत से विषय ऐसे है जिनसे कुछ लोग वर्षों से दुखी हैं। उदाहरणार्थ उच्च वर्ग के अधिकांश लोग आरक्षण के बहुत खिलाफ हैं। वे चाहते हैं कि सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी और ओबीसी का आरक्षण समाप्त होना चाहिए। अन्ना प्रकरण से उनकी राह बहुत आसान हो जायेगी। बस किसी नामी गिरामी आदमी को अनशन करने के लिए इस शर्त पर राजी करलें कि वह अपना अनशन तब तक नहीं तोड़ेंगे जब तक संसद आरक्षण समाप्त करने का बिल पास न कर दे। अन्ना जी का बिल पास हो जाने पर शायद नक्सलवादी भी प्रेरणा लेंगे और अपने हजारों, लाखों युवक-युवतियों को अनशन पर बैठा देंगे और शर्त रखेंगे कि उनका अनशन तब तक जारी रहेगा जब तक लाल कॉरीडोर को एक स्वतंत्र राष्ट्र नहीं बन जायेगा। माओवादी संगठन में तो हजारों युवक-युवतियां इस मुद्दे पर बलिदान देने को भी सहर्ष तत्पर हो जायेंगे। किसी भी सरकार की यह कहने की हिम्मत नहीं होगी कि यह अनशन असंवैधानिक है।
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है। जनता तक सही बात पहुंचाने की उनकी जिम्मेदारी के साथ पुनीत कर्तव्य भी है। अन्ना के आंदोलन में हमारे पत्रकार एवं टीवी चैनल्स का जोश देखते ही बनता है। इनकी रिपोर्टिंग में निष्पक्षता की कमी है। सावंत कमीशन की रिपोर्ट में अन्ना के खिलाफ लगाये सभी आरोप सिद्ध पाये गये लेकिन किसी भी समाचार पत्र ने इसे छापने का साहस नहीं किया। क्या भारत की जनता को यह जानने का अधिकार नहीं है कि अन्ना और उनके साथियों के ट्रस्ट अथवा एनजीओ के बारे में सुप्रीम कोर्ट जज की क्या राय है। अन्ना साहब के खिलाफ लगे चार्जों की छानबीन करने में जस्टिस सावन्त को तीन वर्षों का समय लगा। क्या ये चार्ज मामूली हो सकते हैं ? टी0वी0 चैनल ने देश के जाने माने व्याक्तियों से राय मांगी और जनता के सामने रखा। पत्रकारिता के इन धुरन्धरों ने यह क्यों नहीं उचित समझा कि जस्टिस सावन्त का टीवी पर साक्षात्कार लिया जाय और उनकी राय को उतना ही कवरेज दिया जाये जितना अन्ना और उसके सहयोगियों को दिया जा रहा है। क्या यह पत्रकारिता की गरिमा और मर्यादा के लिए उचित है कि एक ही पक्ष जनता के सामने परोसा जाय।
इस आंदोलन के बारे में हमारे समाचार पत्रों और टी0वी0 चैनल्स ही भ्रम फैला रहे हैं। हर शहर का स्थानीय अखबार कह रहा है कि पूरा शहर अन्ना के साथ है। इसी प्रकार सभी अखबार और चैनल्स दावा कर रहे हैं कि पूरा देश अन्ना के साथ है। यह तो मीडिया की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को खतरे में डालकर इनके मालिकान टीआरपी अथवा अखबारों का प्रसार बढ़ा रहे हैं। अन्नाजी रिहाई पर तिहाड़ जेल के सामने केवल 4-5 हजार समर्थक मौजूद थे। मशाल मार्च में 15 हजार दर्शक तथा समर्थक थे। रामलीला मैदान में भी इतने ही लोग मौजूद हैं। जबकि दिल्ली एनसीआर की आबादी लगभग एक करोड़ से अधिक है। इस प्रकार एक करोड़ में से केवल 10-15 हजार अन्ना जी के समर्थन में सड़कों पर आये। क्या इसे जनता का सैलाब कहना उचित है। यह तो दिल्ली की कुल जनसंख्या का आधा प्रतिशत भी नहीं बैठता। एक चर्चित टीवी चैनल ने 16 नगरों में एक सर्वेक्षण किया जिसमें केवल 8 हजार व्यक्ति से अन्ना के आंदोलन सम्बंधी प्रश्न पूछे गये। प्रश्नों के आधार पर निष्कर्ष निकाल लिया गया कि देश की 70 फीसदी जनता अन्ना का समर्थन करती है। क्या 8 हजार लोगों को सम्पूर्ण देश की जनता की राय का प्रतीक माना जा सकता है ? क्या इस प्रकार के आंकड़े देश की सही तस्वीर प्रस्तुत कर रहे हैं ? वस्तुत: सैटेलाइट चैनल्स द्वारा देश की जनता को गुमराह किया जा रहा है। इस प्रकार से दुष्प्रचार से प्रजातंत्र तथा समाज दोनों को क्षति पहुंचत रही है। अत: देश के युवकों को सावधान रहना चाहिए और सही दिशा में कदम उठाना चाहिए।
प्रत्येक नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझे तथा भ्रष्टाचार को मिटाने में सहयोग करे। भ्रष्टाचार एक जटिल मसला है। इसकी जड़े बहुत गहरी हैं। अनशन के दवाब में एक बिल के पास हो जाने यह मिटने वाला नहीं है। जो लोग भ्रष्टाचार के वृक्ष को वर्षों से सींच रहे हैं, वे लोग बहुत शक्तिशाली एवं शातिर हैं। अन्ना के सहारे वे अपनी पकड़ सरकार और समाज पर मजबूत करते जा रहे हैं । विचारणीय विषय है कि इस आंदोलन पर करोड़ों रुपया फूंका जा चुका है और कितने ही करोड़ रुपये और स्वाहा होने जा रहे हैं। कुछ खास कारपोरेट घराने इसमें महत्वूपर्ण योगदान दे रहे हैं। यह प्रश्न ही विचलित करता है कि केवल मुनाफे पर निगाह रखने वाला पूंजीपति इस आंदोलन पर अपना धन क्यों लुटा रहा है ? अपने चहेते लोगों के हाथों देश की सत्ता सौंपकर यह लोग भोली-भाली जनता से वसूल करेंगे जो आज भ्रष्टाचार से मुक्ति पाना चाहती है। सपने दिखाना बहुत आसान है परंतु साकार करना बहुत ही दुश्कर है7 ऐसा न हो कि हमारी संवैधानिक व्यवस्था की भी बलि चढ़ जाये और भ्रष्टाचार का भूत और अधिक भयावह हो जाये।
वस्तुत: संसद पर अपना फैसला थोपना और अनशन की धमकी से बिल पारित कराना देश के संवैधानिक ढांचे को तहस-नहस कर देगा।
लेखक चिंतक व विचारक एवं आरबीएस महाविद्यालय आगरा के पूर्व भूगोलविभागाध्यक्ष हैं ।
मोबाइल - 9411400657
शनिवार, 13 अगस्त 2011
प्रख्यात आल¨चक नामवर सिंह ने किया उषा यादव का सम्मान
प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह ने किया उषा यादव का सम्मान
आगरा। प्रख्यात साहित्यकार एवं केएम मुंशी हिंदी विद्यापीठ, डा. भीमराव अम्बेडकर विश्घ्वविद्यालय आगरा की पूर्व प्रोफेसर एवं साहित्यिक संस्था इन्द्रधनुष की अध्यक्ष डा. उषा यादव का विगत दिवस मीरा फाउंडेशन के तत्वावधान में कला संगम, उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र इलाहाबाद में आयोजित भव्य समारोह में मीरा स्मृति सम्मान 2011 प्रख्यात आलोचक डा. नामवर सिंह ने प्रदान किया। समारोह के मुख्य अतिथि प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डा. राकेशधर त्रिपाठी व विशिष्ट अतिथि केन्द्रीय हिंदी संस्थान के कुलसचिव डा. चन्द्रकांत त्रिपाठी थे। इस अवसर पर डा. नामवर सिंह ने डा. उषा यादव के साहित्यिक अवदान की
भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा उनके साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। समारोह में न्यायमूर्ति प्रेमशंकर गुप्ता, प्रख्यात साहित्यकार दूधनाथ सिंह, ममता कालिया, आउटलुक के संपादक नीलाभ सहित प्रदेश के वरेण्य साहित्यकार उपस्थित थे। कार्यक्रम का संयोजन डा. पृथ्वीनाथ पाण्डेय व संचालन डा. विजय अग्रवाल ने किया। डा. उषा यादव के सम्मानित होने पर पद्मश्री डा. लाल बहादुर सिंह चैहान, डा. राजकिशोर सिंह, डा. महाराज सिंह परिहार, शिवसागर, डा. सुषमा सिंह, डा. राजकुमार रंजन आदि ने हर्ष व्यक्त किया है।
फोटो परिचय- इलाहाबाद के कला संगम-उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र् पर आगरा की साहित्यकार डा. उषा यादव का सम्मान करते प्रख्यात आलोचक डा. नामवर सिंह
आगरा। प्रख्यात साहित्यकार एवं केएम मुंशी हिंदी विद्यापीठ, डा. भीमराव अम्बेडकर विश्घ्वविद्यालय आगरा की पूर्व प्रोफेसर एवं साहित्यिक संस्था इन्द्रधनुष की अध्यक्ष डा. उषा यादव का विगत दिवस मीरा फाउंडेशन के तत्वावधान में कला संगम, उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र इलाहाबाद में आयोजित भव्य समारोह में मीरा स्मृति सम्मान 2011 प्रख्यात आलोचक डा. नामवर सिंह ने प्रदान किया। समारोह के मुख्य अतिथि प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डा. राकेशधर त्रिपाठी व विशिष्ट अतिथि केन्द्रीय हिंदी संस्थान के कुलसचिव डा. चन्द्रकांत त्रिपाठी थे। इस अवसर पर डा. नामवर सिंह ने डा. उषा यादव के साहित्यिक अवदान की
भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा उनके साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। समारोह में न्यायमूर्ति प्रेमशंकर गुप्ता, प्रख्यात साहित्यकार दूधनाथ सिंह, ममता कालिया, आउटलुक के संपादक नीलाभ सहित प्रदेश के वरेण्य साहित्यकार उपस्थित थे। कार्यक्रम का संयोजन डा. पृथ्वीनाथ पाण्डेय व संचालन डा. विजय अग्रवाल ने किया। डा. उषा यादव के सम्मानित होने पर पद्मश्री डा. लाल बहादुर सिंह चैहान, डा. राजकिशोर सिंह, डा. महाराज सिंह परिहार, शिवसागर, डा. सुषमा सिंह, डा. राजकुमार रंजन आदि ने हर्ष व्यक्त किया है।
फोटो परिचय- इलाहाबाद के कला संगम-उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र् पर आगरा की साहित्यकार डा. उषा यादव का सम्मान करते प्रख्यात आलोचक डा. नामवर सिंह
सदस्यता लें
संदेश (Atom)